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जानिए कितनी खतरनाक हो सकती है कुछ पल की आतिशबाजी 

आतिशबाजी या पटाखों से उत्पन्न प्रदूषण सुरक्षित स्तर से सैकड़ों गुना अधिक रहता है

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दिवाली से पहले पटाखों की बिक्री पर सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुनाते हुए कहा है कि बाजार में कुछ शर्तों के साथ पटाखे बिकेंगे. कोर्ट ने पटाखों की ऑनलाइन बिक्री पर पूरी तरह से बैन लगाया है और दिवाली पर शाम 8 से 10 बजे तक ही पटाखे फोड़ने का निर्देश दिया है.

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पटाखों की बिक्री को लेकर कोर्ट की शर्त

  1. लाइसेंस वाले दुकानदार ही पटाखे बेचेंगे
  2. प्रदूषण फैलाने वाले और तेज आवाज वाले पटाखों पर रहेगा बैन
  3. ग्रीन और सेफ पटाखे ही जला सकेंगे

आतिशबाजी की समयसीमा तय की गई

  1. दिवाली के दिन रात 8 से 10 बजे तक जला सकेंगे
  2. न्यू ईयर के पटाखों के लिए रात 11.55 से 12.30 तक का समय होगा

सुप्रीम कोर्ट ने भले ही कुछ शर्तों के साथ पटाखों की बिक्री की मंजूरी दे दी है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि कुछ देर की खुशी देने वाली पटाखों की आतिशबाजी आपको कितना नुकसान पहुंचाती है.

पटाखे में मौजूद नाइट्रस ऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड जैसे प्रदूषक अस्थमा और ब्रोंकाइटिस जैसे सांसों से जुड़ी दिक्कतों को जन्म देते हैं.
डॉ नवीन डंग
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ये बात सही है कि पटाखे ही वायु प्रदूषण का एकमात्र कारण नहीं हैं, लेकिन प्रदूषण बढ़ाने में इनके हिस्से को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है.

आतिशबाजी या पटाखों से उत्पन्न प्रदूषण सुरक्षित स्तर से सैकड़ों गुना अधिक रहता है.

इंडियास्पेंड की 29 अक्टूबर, 2017 की रिपोर्ट के मुताबिक विश्व स्वास्थ्य संगठन’ (WHO) द्वारा सिफारिश की गई पार्टीकुलेट मैटर 2.5 ( पीएम ) की तय सुरक्षा सीमा की तुलना में लोकप्रिय पटाखे जैसे फूलझड़ी, सांप टेबलेट, अनार, पुल पुल, लड़ी या लाड़ और चकरी, 200 से 2,000 गुना ज्यादा PM 2.5 का उत्सर्जन करते हैं.

पीएम 2.5 मानव बालों से 30 गुना ज्यादा महीन होता है, जो मानव अंगों और ब्लड फ्लो में जमा होते हैं, जिससे बीमारी और मौत का खतरा बढ़ जाता है. 
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एक स्वतंत्र अनुसंधान संस्थान, ‘चेस्ट रिसर्च फाउंडेशन ऑफ इंडिया’ के निदेशक संदीप सालवी कहते हैं, “पटाखों को जलाने के दौरान उत्पन्न अत्यधिक वायु प्रदूषकों के कारण अस्थमा, आंखों और नाक की एलर्जी, सांस से जुड़ा संक्रमण, न्यूमोनिया और दिल के दौरे का खतरा बढ़ जाता है.”

कमजोर प्रतिरक्षा और कमजोर श्वसन प्रतिक्रियाओं वाले बच्चों में विशेष रूप से जोखिम ज्यादा होता है.

‘चेस्ट रिसर्च फाउंडेशन ऑफ इंडिया’ के वरिष्ठ वैज्ञानिक स्नेहा लिमये ने इंडिया स्पेंड को बताया कि

बच्चे, विशेष रूप से, फुलझड़ी, पुल पुल और सांप की गोली मुश्किल से एक फुट या दो फुट की दूरी से जलाते हैं और ऐसा करते हुए वे धुएं के कणों की एक बड़ी मात्रा सांस के जरिए लेते हैं, जो उनके फेफड़ों तक पहुंचती है.

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