मैं पहली क्लास में थी. उस दिन मैंने ‘राजकुमारी’ की फ्रॉक पहनी हुई थी. मेरी दादी एक अच्छे लाल रिबन से मेरे बालों को बांध रही थीं. तभी वह चिल्लाईं. मेरे सिर पर एक जगह के बाल उड़ चुके थे! वास्तव में किसी को भी नहीं पता था कि हुआ क्या है. किसी तरह हमने इसे छुपाया और सेलिब्रेशन में शामिल होने के लिए चले गए.
फिल्म ‘गॉन केश’ में जब मैंने मुख्य किरदार इनाक्षी के पिता को उसे स्कूल में तंग किए जाने से बचाने के लिए सिर के बाल झड़े हिस्से को रंगते देखा तो यह मुझे अपने स्कूल के उस दिन में लेकर चला गया, जब मैं बिना बाल, क्लासरूम में पहुंची थी.
इस फिल्म में श्वेता त्रिपाठी मुख्य भूमिका में है. इसका निर्देशन कासिम खालो ने किया है. जैसे ही मैं क्लासरूम में पहुंची, वहां करीब पांच मिनट तक बिल्कुल मौन सा हो गया. ऐसा लग रहा था जैसे कि हर कोई एक महत्वपूर्ण चीज के नुकसान का शोक मना रहा था. बाल- जिसके द्वारा सुंदरता को परिभाषित किया गया है. कुछ लोग हंसे, कुछ ने सहानुभूति व्यक्त की, लेकिन मैं लकी थी उन दोस्तों के कारण जिन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता था कि मैं कैसी दिखती हूं.
तब एलोपेसिया के बारे में लोगों को तो छोड़ ही दें, डॉक्टर्स को भी मुश्किल से ही पता था. मुझे आश्चर्य नहीं हुआ जब फिल्म में एक सामान्य डॉक्टर ने इसे 'कैल्शियम और प्रोटीन की कमी' करार दिया. ऐसी स्थिति में अचानक हर कोई चिंता करने लग जाता है और सलाह देना शुरू कर देता है. फिल्म में इनाक्षी को गाजर, अंडे और दूध के आहार पर रखा गया था जबकि मुझे बालों की त्वचा (स्कैल्प) पर प्याज का रस और अंडे को रगड़ने की सलाह दी गई थी.
कई डॉक्टर्स बदलने और अजीबोगरीब दवाइयां खाने के बाद अंत में आखिर सच बात पता लगी. एलोपेसिया एक ऑटो इम्यून रोग है, जिसका इलाज नहीं किया जा सकता है.
यह एक ऐसी स्थिति है जिसके कारण बाल तेजी से झड़ते हैं. एलोपेसिया यूनिवर्सल में, एक व्यक्ति थोड़े समय में गंजा हो जाता है. स्टेरॉयड, स्कैल्प पर इंजेक्शन के दर्दनाक सेशन और मलहम बालों को अस्थायी रूप से वापस ला सकते हैं. लेकिन बेहतर दिखने की चाह में यह शरीर को नुकसान पहुंचाता है. चेहरे पर बाल उगने से लेकर ऑस्टियोपोरोसिस और कई अन्य समस्याएं हो सकती हैं. स्टेरॉयड के कई दुष्प्रभाव हो सकते हैं और वे कभी भी एलोपसिया का इलाज नहीं कर सकते हैं.
जबकि कुछ डॉक्टर केवल बीमारी का इलाज करने पर ध्यान केंद्रित करते हैं, कुछ लोग उद्धारकर्ता के रूप में आते हैं, जैसा कि फिल्म में इनाक्षी कहती हैं. और ठीक वैसा ही मेरे साथ हुआ. एक भले व्यक्ति की सलाह जिंदगी को बदलने वाली थी.
डॉक्टर ने कहा, ‘एक विग पहनें’ और उसके बाद कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. जिस आत्मविश्वास को मैंने कहीं दफना दिया था, वह वापस आ गया. दर्पण जो मेरा सबसे बड़ा दुश्मन बन गया था उसमें अचानक मुझे एक मुस्कुराहट दिखाई जो शायद अपमान और बुलिंग के बीच खो गई थी.
लेकिन निश्चित रूप से, देश क्या यह जानने की मांग नहीं कर सकता है कि क्या मैं अपनी विग पहनकर सोती थी या इसे उतार दिया था? और आंटियां बोलेंगी- तुम शादी कैसे करोगी? ठीक है, बेशक, एजुकेशन और एक अच्छी नौकरी को उस समाज में एक महिला के लिए प्राथमिकता के रूप में भी नहीं गिना जा सकता है, जहां उसे पूरे देश में ऑब्जेक्टिफाई किया गया है - चाहे वह किताबों में हो या फिल्मों में हो, नायिका या राजकुमारी या यहां तक कि संकट में पड़ी युवती को भी लंबे, घने बालों वाली होना चाहिए. इसमें कोई हैरानी की बात नहीं है कि मैं स्कूल के नाटकों में हिरोइन के रोल वाले ऑडिशनों को कभी पास नहीं कर सकी.
ऐसी स्थिति जिसका कोई स्थायी समाधान नहीं है, दोस्तों और परिवार ने मुझे दिखाया कि सुंदरता वास्तव में देखने वाले की आंखों में होती है.
'Gone Kesh' संभवतः इस स्थिति पर आधारित पहली बॉलीवुड फिल्म है. एक बार के लिए भी श्वेता त्रिपाठी या निर्देशक ने हालत का मजाक नहीं उड़ाया. इसके बजाए, उन्होंने हमें इस तथ्य के प्रति सचेत किया कि माता-पिता व करीब और प्रियजनों का थोड़ा सा समर्थन किसी भी स्थिति से लड़ने में मदद कर सकता है.
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