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जब भूख से शरीर काम करना बंद कर देता है: भुखमरी बेहद दुखद है

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दिल्ली के मंडावली इलाके में आठ साल, चार साल और दो साल की तीन बहनें मृत पाई गईं. ये घटना काफी परेशान करने वाली थी. शुरुआती पोस्टमार्टम में संकेत मिला कि यह भुखमरी का मामला है.

प्रारंभिक पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार इन लड़कियों की मौत कुपोषण/भुखमरी और इससे होने वाली परेशानी से हुई थी. जैसा कि इन लड़कियों ने पिछले आठ दिनों से खाना नहीं खाया था. 23 जुलाई की रात को इनका शरीर कथित रूप से सदमे की स्थिति में पहुंच गया था.

जीटीबी हॉस्पिटल में हुई दूसरी ऑटोप्सी में कहा गया कि यह कुपोषण का अलग तरह का केस है. जिसमें शरीर में फैट का कोई नामोनिशान नहीं है.

आपके शरीर का क्या होगा जब यह लंबे समय तक किसी भी तरह का पोषण नहीं लेगा? किस तरह से यह काम करना बंद कर देगा?

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भुखमरी क्या है?

भुखमरी एक विशिष्ट घटना या बीमारी नहीं है
(फोटो:iStock)

गैस्ट्रोएंटरोलॉजिस्ट और मैक्स सुपर स्पेशिएलिटी हॉस्पिटल, दिल्ली के प्रोग्राम डायरेक्टर डॉ. अश्विनी सेत्या कहते हैं, भुखमरी कोई एक विशिष्ट घटना या बीमारी नहीं है

यह प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट्स और अन्य ऐसे पोषक तत्वों के कमी की प्रक्रिया है, जहां एक बिंदु पर जिंदा रहना मुश्किल हो जाता है. अत्यधिक कुपोषण से भुखमरी हो सकती है. भुखमरी की प्रकिया में अलग-अलग शरीर विभिन्न तरीके से प्रतिक्रिया करते हैं.
डॉ. अश्विनी सेत्या

तो वास्तव में क्या होगा जब एक आदमी का शरीर भोजन न खाए, या लंबे समय के लिए खाने को नकार दे.

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भोजन क्यों महत्वपूर्ण है?

हमारे शरीर को काम करने के लिए एनर्जी की जरूरत है. उसे ये एनर्जी उस भोजन से मिलती है, जो हम खाते हैं. शरीर भोजन को कार्बोहाइड्रेट्स, प्रोटीन और फैट्स के रूप में बदल देता है. कार्बोहाइड्रेट्स आगे ग्लूकोज में बदल जाता है. जो हमारे रक्तप्रवाह में जाता है.

ग्लूकोज हमारे शरीर में एनर्जी का प्रमुख सोर्स है. हमारा शरीर ग्लूकोज को तुरंत प्रयोग कर लेता है या इसे स्टोर कर लेता है. डाइट के ये एलिमेंट्स अन्य एसिड और इंजाइम्स पाचन नली (गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल ट्रैक्ट) में एक दूसरे के साथ मिल जाते हैं. यहां ये अलग-अलग टुकड़ों में परिवर्तित हो जाते हैं. इसके बाद शरीर के विभिन्न अंग इन्हें आसानी से ले लेते हैं. भोजन वह चीज है, जो शरीर के सभी अंगों को सक्रिय रखती है.

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क्या होगा जब शरीर को भोजन ना मिले?

जब हम रेगुलर समय से भोजन करते रहते हैं, तो ग्लूकोज के जरिये हमारे शरीर को एनर्जी की सप्लाई होती रहती है. सामान्य रूप में ग्लूकोज से हमें छह घंटे तक एनर्जी मिलती है. इसके बाद हमें भूख लगने लगती है या हम चिड़चिड़ापन महसूस करने लगते हैं. भोजन की भरपाई करने के लिए हमारा शरीर ग्लूकोज लेवल को रिस्टोर करने लगता है.

बिना भोजन के 24 से 72 घंटे

हमारा शरीर बहुत लचीला है, जब इसे भोजन नहीं मिलता है, तो यह शरीर में मौजूद नेचुरल फैट को एनर्जी में बदलने लगता है.

डॉ. सेत्या कहते हैं कि एक दिन भूखे पेट रहने को भुखमरी के समान नहीं माना जा सकता है.

लेकिन हां, बच्चे जब पूरा दिन नहीं खाते हैं, तो उनमें कुछ लक्षण दिखाई देने लगते हैं. एक दिन भूखे रहने से बच्चे चिड़चिड़े या उदासीन हो सकते हैं.
डॉ. अश्विनी सेत्या

मेटाबॉलिक टर्म में, जब आप पूरा दिन नहीं खाते हैं तब आपका शरीर उस अवस्था में पहुंचना शुरू कर देता है, जिसे किटोसिस कहते हैं. इस प्रोसेस से आपके शरीर को एक या दो दिन तक एनर्जी मिल सकती है.

एक बार जब कार्बोहाइड्रेट्स की सप्लाई रुक जाती है, शरीर एनर्जी के लिए फैट को बर्न करना शुरू कर देता है. जब शरीर एनर्जी के लिए कीटोन्स प्रोड्यूस करना शुरू कर देता है, तो यह प्रक्रिया किटोसिस कहलाती है. इस प्रक्रिया से शरीर को एक या दो दिन के लिए एनर्जी मिलती है.
डॉ. अजय अग्रवाल, डिपार्टमेंट ऑफ इंटरनल मेडिसिन, फोर्टिस हॉस्पिटल, नोएडा.
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जबकि किटोसिस वजन को नियंत्रित रखने के लिए कीटो डाइट के रूप में भी प्रयोग किया जाता है. लेकिन यह सामान्य रूप से उन लोगों द्वारा किया जाता है, जो हेल्दी हैं और संतुलित आहार ले रहे हैं.

लेकिन फिर भी शरीर में कीटोन्स का हाई लेवल में मौजूद होना अच्छे संकेत नहीं हैं. इससे डिहाइड्रेशन यानी शरीर में पानी की कमी हो सकती है. साथ ही ये खून के कैमिकल कंपोजिशन में भी महत्वपूर्ण रूप से बदलाव ला सकता है.

72 घंटे के बाद बिना भोजन के

सामान्य तौर पर हमारा शरीर एनर्जी के लिए पूरी तरह से कीटोन्स पर निर्भर रहने से पहले शरीर में मौजूद ग्लूकोज को पूरी तरह से निकालने का प्रयास करता है. शुरुआत में कीटोन्स पर निर्भरता 30 फीसदी होती है, जो 72 घंटे तक नहीं खाने की स्थिति में धीरे-धीरे बढ़कर 70 फीसदी तक पहुंच जाती है.

72 घंटे के बाद शरीर हमारे मसल्स में मौजूद प्रोटीन को तोड़ना शुरू करता है. इसका रिजल्ट मसल्स लॉस के रूप में आता है. इस दौरान वजन बहुत कम हो जाता है. इसमें एक व्यक्ति अपने शरीर के कुल वजन का 18 फीसदी तक खत्म कर लेता है.

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भुखमरी के शारीरिक प्रभाव

बिना भोजन और पानी के जिंदा रहने से शरीर पर गंभीर साइड इफेक्ट्स हो सकते हैं.
(फोटो:iStock)

डॉ. अग्रवाल बताते हैं कि बिना भोजन और पानी के रहने से शरीर पर गंभीर साइड इफेक्ट्स हो सकते हैं.

भुखमरी के कुछ लक्षण

  • अत्यधिक थकान
  • अधिक पसीना आना, प्यास लगना
  • मांसपेशियों में कमजोरी से तेजी से वजन कम होना
  • शरीर में पानी की कमी यानी डिहाइड्रेशन
  • चक्कर आना
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बच्चों में यह प्रभाव कहीं अधिक होता है.

बच्चों में मेटाबॉलिक रेट काफी अधिक होता है, इसलिए उनका शरीर स्टोर किए हुए ग्लूकोज को तेजी से यूज करता है. इसके परिणाम स्वरूप उनकी काफी एनर्जी खत्म हो जाती है. लंबे समय तक नहीं खाने से उन्हें गंभीर गैस्टराइसिस (ऐसी स्थिति जिसमें पेट की परत में सूजन आ जाती है) हो सकता है. इससे लिवर या किडनी फेल हो सकती है और कभी-कभी शरीर के सभी अंग ही काम करना बंद कर देते हैं.
डॉ. अजय अग्रवाल, डायरेक्टर, डिपार्टमेंटऑफ इंटरनल मेडिसिन, फोर्टिस हॉस्पिटल, नोएडा

क्या तीनों लड़कियां भुखमरी से मर सकती हैं?

हालांकि, आंकड़े दर्शाते हैं कि भारत में भुखमरी से मौत होना असामान्य नहीं है. डॉ. सेत्या बताते हैं कि लड़कियों की मौत के पीछे अन्य कारण भी हो सकते हैं.

सामान्य रूप से भोजन की कमी के कारण जब एक व्यक्ति के शरीर का वजन का 40 फीसदी कम हो जाता है. इस स्थिति को मेडिकल भाषा में गंभीर रूप से भूखा कहते हैं. अधिकतर ऐसे मामलों में जब स्थिति न बदले तो मौत की आशंका बढ़ जाती है.
डॉ. अश्विनी सेत्या

लेकिन इसके बावजूद, मौत एक प्रक्रिया है और यह अचानक नहीं आ सकती है. और निश्चित रूप से एक साथ तो बिल्कुल नहीं, जिस तरह से छोटी बच्चियों के मामले में कहा जा रहा है.

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भारत में भूख और भुखमरी के आंकड़े

भले ही शहर के बीचों बीच हुई इस त्रासदी में राजधानी का नाम आया हो, लेकिन भारत बच्चों के मामले में सभी मानकों पर असफल है. इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार भारत में हर साल 15 लाख बच्चों की मौत होती है. इसमें से तीन लाख से अधिक बच्चे भूख के कारण अपनी जान गंवाते हैं.

ग्लोबल हंगर इंडेक्स 2017 (जीएचआई) के अनुसार 119 देशों में भारत का स्थान 100वां है. अपने अन्य दक्षिण एशियाई पड़ोसियों की तरह भारत में भूख एक गंभीर समस्या है. देश के 15.2 फीसदी नागरिक कुपोषित हैं और पांच साल से कम उम्र के 38.7 फीसदी बच्चों का ठीक ढंग से विकास नहीं हो पाया है.

देशों की जीएचआई रैंक चार मानकों- कुपोषण, शिशु मृत्यु, अति कुपोषण और बच्चों का ठीक तरीके से विकास नहीं होना, पर आधारित है. इसमें भारत का स्कोर 31.4 था, जो देश को ‘गंभीर’ की कैटेगरी में रखता है.

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