वायरल हेपेटाइटिस ऐसी बीमारी है, जिससे पीड़ित लोगों की संख्या दुनिया भर में एचआईवी से 10 गुना अधिक है. इस पब्लिक हेल्थ इश्यू पर तुरंत एक्शन लेने की जरूरत है. हेपेटाइटिस (लिवर की बीमारी) पांच प्रकार के वायरस (A, B, C, D और E) से फैलता है. इसमें से हेपेटाइटिस B सबसे अधिक संक्रामक और घातक है.
एक्टर अमिताभ बच्चन भी हेपेटाइटिस बी से प्रभावित रहे हैं. वह इसके बारे में बताते हैं कि कैसे उनकी जिंदगी सिर्फ 25 फीसदी लिवर के सहारे ही चल रही है.
इन सभी वायरस के शुरुआती लक्षण लगभग समान हैं, जो इस बीमारी के वायरस की पहचान को मुश्किल बनाता है. इसके लक्षणों में थकान, जी मिचलाना, उल्टी, पेट में दर्द, पीलिया शामिल है.
भारत में 90 फीसदी से अधिक मामलों में उपचार के समय वायरस के प्रकार की पहचान नहीं हो पाती है. डॉक्टर संक्रमण खत्म करने के लिए लक्षण के आधार पर ही इलाज का सहारा लेते हैं.
अगर ये पता न चले कि लिवर हेपेटाइटिस के कौन से वायरस से संक्रमित हो रहा है, तो काफी नुकसान पहुंचता है. यहां तक कि ये घातक भी हो सकता है. खासकर अगर इस वायरस से होने वाले लक्षण हेपेटाइटिस बी के हों.
ज्यादा खतरनाक क्यों है हेपेटाइटिस B का संक्रमण?
किसी भी अन्य हेपेटिक वायरस की तुलना में हेपेटाइटिस B इंफेक्शन के कारण लिवर की बीमारी से मौत की आशंका कहीं अधिक होती है. अगर इसका इलाज ना कराया जाए, तो यह गंभीर रूप ले सकता है. यह लिवर को बुरी तरह से क्षतिग्रस्त कर सकता है. इससे लिवर सिरोसिस और लिवर कैंसर भी हो सकता है.
भारत में करीब पांच करोड़ लोग हेपेटाइटिस बी से ग्रस्त हैं. देश में हेपेटाइटिस B के मामलों में कमी लाने की जितनी जिम्मेदारी डॉक्टरों और हेल्थकेयर प्रोफेशनल्स की है, उतनी ही आम लोगों की भी है.
यहां हेपेटाइटिस B के बारे में कुछ बातें हैं, जिन्हें आपको जरूर जानना चाहिए. इससे आप अपने आप को हेपेटाइटिस बी से सुरक्षित रख सकेंगे.
अपने आप को हेपेटाइटिस B के वायरस से बचाएं
इसलिए जैसे ही लक्षण दिखाई देते हैं, वायरल के प्रकार की जांच और तीव्र व गंभीर हेपेटाइटिस बी वायरस (एचबीवी) इंफेक्शन में अंतर करना महत्वपूर्ण हो जाता है, जिससे रोगी तुरंत सही तरीके का इलाज शुरू करा सके.
हेपेटाइटिस इंफेक्शंस होने की स्थिति में बेहतर है कि हेपटोलॉजिस्ट, लिवर बीमारियों के स्पेशलिस्ट डॉक्टर को दिखाएं.
एचबीवी (HBV) से संक्रमित होने वाले कुल लोगों में से आधे में कोई लक्षण दिखाई नहीं देते हैं. यहां तक कि उन्हें संक्रमण के बारे में भी पता नहीं होता है. इसका मतलब है कि वे लोग वायरस के एक्टिव कैरियर्स होते हैं और अन्य लोगों को संक्रमित कर सकते हैं.
बाकी आधे लोगों में वायरस के संपर्क में आने के बाद लक्षण दिखाई देने में एक से चार महीने तक का समय लग सकता है. इस दौरान ये संक्रमित लोग भी एचबीवी ट्रांसमिशन साइकिल का हिस्सा हो सकते हैं. यह इस वायरस की खतरनाक खासियत है, जिससे इसको नियंत्रित करना बहुत कठिन हो जाता है.
असुक्षित सेक्स और इंफेक्टेड टैटू या एक्यूपंक्चर निडिल्स को इंफेक्शन का प्रमुख ट्रांसमिशन रूट माना जाता है. हालांकि इंफेक्शन होने की कई अन्य वजह भी हैं.
उदाहरण के लिए नाई के रेजर से एक छोटा सा कट भी वायरस को शरीर में पहुंचाने के लिए काफी है. अगर इस ब्लेड का प्रयोग पहले किसी एचबीवी संक्रमित व्यक्ति पर किया गया हो.
यह कई व्यक्तियों को जोखिम में डालता है. एचबीवी नियंत्रण के लिए आम लोगों के बीच और स्थानीय समुदाय में दोबारा प्रयोग किए जाने वाले उपकरणों के स्टरलाइजेशन के बारे में जागरुकता फैलाने की जरूरत है.
हेपेटाइटिस B इंफेक्शन का इलाज
ज्यादातर वयस्कों में HBV का acute infection होता है, जो शरीर द्वारा खत्म कर दिया जाता है और आगे chronic HBV होने की सिर्फ 5 फीसदी आशंका रहती है.
हेपेटाइटिस B वैक्सीन ने क्रोनिक एचबीवी मामलों में कमी लाने में बड़ी भूमिका निभाई है. यह वैक्सीन क्रोनिक इंफेक्शन से बचाव में 95 फीसदी प्रभावी है. यह 20 साल के लिए गंभीर एचबीवी से बचाव करती है.
वर्तमान में हमारे पास कोई भी ऐसा एंटीवायरल नहीं है, जो हेपेटाइटिस बी को पूरी तरह से ठीक कर सके. लेकिन हमारे पास दवा है जिससे कि जिंदगी भर ओरल एंटीवायरल्स के जरिये इससे सुरक्षित रहा जा सकता है. यह वायरल के लोड को कम और बीमारी की गति को धीमा करता है.
यही कारण है कि हमें आवश्यक रूप से बच्चों, किशोरों और गर्भवती महिलाओं के फुल वैक्सीनेशन कवरेज पर लगातार जोर देना चाहिए. वायरस के एक्सपोजर और ट्रांसमिशन को रोकने के लिए हमें इसके खतरों के प्रति जागरुकता कार्यक्रम चलाने चाहिए.
भारत ने साल 2030 तक वायरल हेपेटाइटिस को खत्म करने का लक्ष्य निर्धारित किया है. इसके लिए सरकार ने कई इनिशिएटिव, जिनमें सबसे उल्लेखनीय इंटीग्रेटेड इनिशिएटिव फॉर प्रिवेंशन एंड कंट्रोल ऑफ वायरल हेपेटाइटिस है.
यह तीन साल का कार्यक्रम है, जिसका मकसद देश में 100 हेपेटाइटिस ट्रीटमेंट सेंटर और 665 टेस्टिंग सेंटर खोलना है.
जैसे-जैसे हम 2030 के अपने लक्ष्य को पाने का प्रयास तेज करेंगे, हमें इस बीमारी के खतरे की पहचान करने वाले अधिक से अधिक लोगों की जरूरत होगी.
(डॉ राकेश पटेल, एमबीबीएस, एमडी- जनरल मेडिसिन, डीएम- गैस्ट्रोएंट्रोलॉजी, डीएनबी- जनरल मेडिसिन. डॉ. पटेल को गैस्ट्रोएंट्रोलॉजिस्ट के रूप में 24 साल का अनुभव है.)
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