पैन अमेरिकन हेल्थ ऑर्गनाइजेशन (PAHO) ने चेताया है कि कोरोना वायरस महामारी के दौरान एंटीबायोटिक दवाओं और अन्य रोगाणुरोधी (एंटीमाइक्रोबियल) दवाइओं के अति और बेवजह इस्तेमाल से इनके बेअसर होने का खतरा बढ़ गया है.
PAHO के मुताबिक अर्जेंटीना, उरुग्वे, इक्वाडोर, ग्वाटेमाला और पराग्वे सहित अमेरिका के कई देशों में ऐसे संक्रमण के मामलों में बढ़त देखी जा रही है, जिन पर मौजूदा दवाइयों का असर नहीं हो रहा और जिनके अस्पताल में भर्ती COVID-19 मरीजों की मौत में योगदान देने की संभावना है.
एंटीमाइक्रोबियल एजेंट उसे कहते हैं, जो सूक्ष्मजीवों के खिलाफ काम करता है, सूक्ष्मजीवों को मारता है या उनके विकास को रोकता है.
एंटीमाइक्रोबियल दवाओं को उन सूक्ष्मजीवों के अनुसार बांटा जा सकता है, जिनके खिलाफ वे मुख्य रूप से काम करते हैं, जैसे- बैक्टीरिया के खिलाफ एंटीबायोटिक्स, वायरस के खिलाफ एंटीवायरल, फंगस के खिलाफ एंटीफंगल दवाइयां.
एंटीमाइक्रोबियल रेजिस्टेंस: दवाइओं के खिलाफ रोगाणुओं की क्षमता
एंटीमाइक्रोबियल रेजिस्टेंस तब होता है, जब बीमारी करने वाले बैक्टीरिया, वायरस, फन्जाइ और परजीवी पर दवाइयां बेअसर हो जाती हैं.
यशोदा हॉस्पिटल, हैदराबाद में कंसल्टेंट पल्मोनॉलजिस्ट डॉ. चेतन राव वडेपल्ली कहते हैं कि एंटीमाइक्रोबियल रेजिस्टेंस एंटीमाइक्रोबियल एजेंट के संपर्क में आने के बावजूद सूक्ष्मजीवों के बढ़ने की क्षमता है.
ऐसा समय के साथ इन सूक्ष्मजीवों में होने वाले बदलाव के कारण होता है.
यह तब होता है जब बैक्टीरिया, फंगस, वायरस और परजीवी म्यूटेशन या जीन ट्रांसफर के जरिए समय के साथ बदलते हैं और मौजूदा दवाओं का इन पर असर नहीं होता, जिससे बीमारी का इलाज करना मुश्किल हो जाता है या एंटीमाइक्रोबियल दवाओं के हाई डोज की आवश्यकता पड़ सकती है.डॉ. चेतन राव वडेपल्ली, कंसल्टेंट पल्मोनॉलजिस्ट, यशोदा हॉस्पिटल, हैदराबाद
इससे सामान्य संक्रमणों का इलाज करना भी कठिन हो सकता है और बीमारी फैलने, गंभीर बीमारी होने और मौत का खतरा बढ़ जाता है.
एंटीमाइक्रोबियल रेजिस्टेंस क्यों बढ़ रहा है?
कई कारकों से दुनिया भर में एंटीमाइक्रोबियल रेजिस्टेंस का खतरा तेज हो गया है.
इंसानों, जानवरों और पौधों में रोगाणुरोधी दवाओं का दुरुपयोग और अति प्रयोग के कारण दवा प्रतिरोधी संक्रमण बढ़े हैं.
अस्पतालों और सामुदायिक सेटिंग्स में साफ पानी, स्वच्छता की कमी और संक्रमण की रोकथाम व नियंत्रण उपायों की कमी से दवा प्रतिरोधी संक्रमणों को बढ़ावा मिलता है.
मरीजों का अपने एंटीमाइक्रोबियल इलाज का कोर्स पूरा न करना भी एंटीमाइक्रोबियल रेजिस्टेंस के लिए जिम्मेदार हो सकता है.
क्या कोरोना महामारी से और बढ़ गया है एंटीबायोटिक दवाओं के बेअसर होने का खतरा?
एंटीबायोटिक दवाओं के दुरुपयोग और अति प्रयोग को लंबे समय से एक सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए खतरे के रूप में देखा गया है और इसका खतरा कोरोना महामारी के कारण और बढ़ गया है.
ये जानने के बावजूद कि COVID-19 वायरस के कारण होता है, बैक्टीरिया से नहीं, फिर भी कोरोना संक्रमण के दौरान के एंटीबायोटिक्स का जरूरत से अधिक और बिना वजह इस्तेमाल बढ़ा.
डॉ. चेतन राव कहते हैं कि कोरोना महामारी के दौरान दुनिया भर में एंटीबायोटिक दवाइयों का इस्तेमाल सेकेंडरी बैक्टीरियल इन्फेक्शन से जुड़ी चिंता के कारण बढ़ा.
मिलर्स रोड, बेंगलुरु स्थित मनिपाल हॉस्पिटल में इंटरनल मेडिसिल कंसल्टेंट डॉ. प्रमोद वी सत्या कहते हैं कि कोरोना संक्रमण में एंटीबायोटिक दवाइयों की जरूरत नहीं होती जब तक कि बैक्टीरियल इन्फेक्शन का कोई सबूत न हो.
हालांकि COVID-19 के मरीजों में दूसरे इन्फेक्शन होने का डर और कोरोना की दवा न होने के नाते एंटीबायोटिक्स जरूरत से ज्यादा प्रेस्क्राइब किए गए.
एक अध्ययन के अनुसार, COVID-19 संक्रमण के साथ अस्पताल में भर्ती 72% रोगियों को ब्रॉड-स्पेक्ट्रम एंटीमाइक्रोबियल दवाएं दी गईं, जबकि वार्डों में भर्ती केवल 7% और ICU में भर्ती 14% रोगियों को वास्तव में सेकेंडरी बैक्टीरियल संक्रमण था.डॉ. चेतन राव
कई एक्सपर्ट्स की ओर से कोरोना महामारी के कारण एंटीमाइक्रोबियल रेजिस्टेंस के और बदतर होने की चिंता पहले ही जताई जा चुकी है.
लेकिन एंटीमाइक्रोबियल रेजिस्टेंस के पैटर्न पर अभी क्या अंतर देखा गया है, इस पर डॉ. प्रमोद वी सत्या कहते हैं कि एंटीमाइक्रोबियल रेजिस्टेंस के पैटर्न में 2018-19 के मुकाबले अभी कोई प्रगति नहीं देखी गई है, हालांकि PAHO की डायरेक्टर कैरिसा एटियेन के मुताबिक महामारी के दौरान एंटीमाइक्रोबियल दवाओं के दुरुपयोग और अति प्रयोग का पूरा प्रभाव स्पष्ट होने में महीनों या साल लग सकते हैं.
एंटीमाइक्रोबियल रेजिस्टेंस: दुनिया भर के लिए ये चिंता का मुद्दा क्यों है?
बीमारी करने वाले सूक्ष्मजीवों की ये क्षमता सामान्य संक्रमणों को भी घातक बना सकती है. खासकर दुनिया भर में सुपरबग्स का प्रसार चिंताजनक है, जो ऐसे इन्फेक्शन करते हैं, जिनका इलाज मौजूदा एंटीमाइक्रोबियल से नहीं किया जा सकता है.
इससे वो दवाइयां बेअसर हो सकती हैं, जिन पर हम आम संक्रमणों के इलाज के लिए निर्भर हैं.
विश्व स्वास्थ्य संगठन एंटीमाइक्रोबियल रेजिस्टेंस को 10 सबसे बड़े वैश्विक स्वास्थ्य के खतरों में से एक मानता है.
ड्रग-रेजिस्टेंट बीमारियां पहले से ही दुनिया भर में हर साल कम से कम 7 लाख मौतों का कारण बनती हैं.
डॉ. चेतन राव कहते हैं,
एंटीमाइक्रोबियल रेजिस्टेंस से लंबी बीमारी के परिणामस्वरूप लंबे समय तक अस्पताल में रहना, अधिक महंगी दवाओं की आवश्यकता जैसी वित्तीय चुनौतियों के अलावा विकलांगता और यहां तक कि मौत का जोखिम भी हो सकता है.
डॉ. चेतन राव कहते हैं कि कई नॉन-मेडिकल प्रैक्टिशनर द्वारा इनका प्रेस्क्रिप्शन, बिना डॉक्टरी पर्चे पर एंटीबायोटिक दवाओं का आसानी से मिलना और खुद से दवा लेने के कारण इनका अति प्रयोग और दुरुपयोग हो रहा है.
एंटीमाइक्रोबियल रेजिस्टेंस को कैसे रोक सकते हैं?
बीमार पड़ने पर डॉक्टर को दिखाएं.
एंटीबायोटिक या कोई भी एंटीमाइक्रोबियल सिर्फ डॉक्टर के कहने पर ही लें.
किसी ट्रीटमेंट में दवाई का इस्तेमाल खुद से न रोकें, ट्रीटमेंट का कोर्स जरूर पूरा करें.
इन्फेक्शन से बचाव के सारे उपाय अपनाएं.
डॉ. चेतन राव कहते हैं, "स्थानीय प्रतिरोध (resistance) डेटा को ध्यान में रखते हुए, एंटीबायोटिक दवाओं को जिम्मेदारी से और संयम से उपयोग करने की जरूरत है. एंटीमाइक्रोबियल के अति उपयोग को रोकने के लिए सही ढंग से यह निर्धारित करना महत्वपूर्ण है कि मरीज को बैक्टीरियल इन्फेक्शन है या वायरल इन्फेक्शन."
(इनपुट- रॉयटर्स, विश्व स्वास्थ्य संगठन, IANS)
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