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Cervical Screening: जानिए पैप स्मीयर और HPV DNA टेस्ट में अंतर

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पिछले साल 2020 में दुनिया भर में 5 लाख से ज्यादा महिलाओं को सर्वाइकल कैंसर (cervical cancer) हुआ और लगभग 3 लाख 42 हजार महिलाओं की इससे मौत हो गई.

सर्वाइकल कैंसर गर्भाशय (uterus) के निचले हिस्से में होता है जो योनि (vagina) में खुलता है; जिसे गर्भाशय ग्रीवा (cervix) कहा जाता है. यह तब होता है, जब गर्भाशय ग्रीवा में कोशिकाएं असामान्य रूप से बढ़ती हैं और नियंत्रण से बाहर हो जाती हैं.

सर्वाइकल कैंसर का रेगुलर स्क्रीनिंग टेस्ट और फॉलो अप के जरिए पता लगाया जा सकता है और सही समय पर इसका पता चलना, इलाज आसान बना देता है.

सर्वाइकल कैंसर की रोकथाम के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन और ह्यूमन रिप्रोडक्शन प्रोग्राम (HRP) की ओर से सर्वाइकल कैंसर स्क्रीनिंग की नई गाइडलाइन जारी की गई है.

मुख्य रूप से इसमें पैप स्मीयर टेस्ट की बजाए HPV-DNA टेस्ट को प्राथमिकता देने की सलाह दी गई है.
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कैसे की जा सकती है Cervical कैंसर की रोकथाम, WHO की नई गाइडलाइन

  1. वैश्विक स्तर पर 70% महिलाओं की सर्वाइकल (गर्भाशय ग्रीवा) बीमारियों के लिए हाई-परफॉर्मेंस टेस्ट के साथ नियमित जांच की जानी चाहिए.

  2. इनमें पॉजिटिव स्क्रीनिंग टेस्ट वाली कम से कम 90% महिलाओं को उचित उपचार मिलना सुनिश्चित किया जाना चाहिए.

  3. इसके साथ ही ह्यूमन पैपिलोमावायरस (HPV) के खिलाफ 90% एलिजिबल लड़कियों का टीकाकरण.

WHO के मुताबिक इस वैश्विक रणनीति को लागू करने से अगले 100 वर्षों में गर्भाशय ग्रीवा के कैंसर से 6.2 करोड़ से अधिक मौतों को रोका जा सकता है.

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सर्वाइकल स्क्रीनिंग टेस्ट: पैप स्मीयर और HPV DNA टेस्ट

नई गाइडलाइन में सर्वाइकल स्क्रीनिंग के लिए WHO के अनुशंसित तरीकों में कुछ महत्वपूर्ण बदलाव शामिल हैं.

विशेष रूप से, यह 'पैप स्मीयर' की बजाए एचपीवी डीएनए आधारित टेस्ट की सिफारिश करता है, वर्तमान में प्री-कैंसर का पता लगाने के लिए दुनिया भर सबसे अधिक 'पैप स्मीयर' का इस्तेमाल किया जाता है.

HPV-DNA टेस्टिंग HPV के हाई-रिस्क स्ट्रेन का पता लगाता है, जो गर्भाशय ग्रीवा के कैंसर का कारण बन सकते हैं.

ये टेस्ट हाई-रिस्क वाले कार्सिनोजेनिक HPV जीनोटाइप के एक समूह की पहचान करते हैं, जिसमें आमतौर पर 14 प्रकार (HPV 16, 18, 31, 33, 35, 39, 45, 51, 52, 56, 58 और 59, जो ग्रुप 1 कार्सिनोजेन्स हैं और HPV 66 और 68) शामिल हैं.

वहीं पैप टेस्ट से, गर्भाशय ग्रीवा में उन असामान्य कोशिकाओं का पता लगाया जाता है, जो कि कैंसर में डेवलप हो सकती हैं.

सर्वाइकल सैंपल लेने की प्रक्रिया HPV DNA टेस्टिंग और पैप स्मीयर दोनों के लिए एक समान है, हालांकि WHO के मुताबिक HPV DNA टेस्टिंग सरल है, इससे प्री-कैंसर और कैंसर से बचाव में ज्यादा सहायता मिलती है और यह अधिक लागत प्रभावी है.

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पैप स्मीयर टेस्ट में गर्भाशय ग्रीवा की कोशिकाओं में परिवर्तन देखने के लिए एक स्पैटुला जैसे उपकरण का उपयोग करके गर्भाशय ग्रीवा से कुछ कोशिकाएं निकाली जाती हैं.

पैप स्मीयर टेस्ट कैंसर, प्रीकैंसर, ह्यूमन पैपिलोमावायरस (HPV), इन्फ्लेमेशन (सूजन), या संक्रमण से होने वाले सेलुलर परिवर्तनों का पता करने में मदद करता है. ये अब तक सर्वाइकल कैंसर स्क्रीनिंग का पारंपरिक तरीका रहा है.

पिछले 15 सालों में स्क्रीनिंग के नए टेस्ट आए हैं, जिसमें एसिटिक एसिड (VIA) और HPV DNA बेस्ड टेस्ट जैसे मॉलिक्यूलर टेस्ट शामिल हैं.

डॉक्टर गर्भाशय ग्रीवा पर एक डायल्यूट एसिटिक एसिड सॉल्यूशन लगा कर भी टेस्ट कर सकते हैं, जिससे असामान्य क्षेत्र सफेद हो जाते हैं. फिर असामान्य क्षेत्र की जांच की जा सकती है. इसे विजुअल इन्सपेक्शन विद एसिटिक एसिड (VIA) कहते हैं. ये इसका इस्तेमाल मेनोपॉज के बाद या जब परिवर्तन क्षेत्र दिखाई न दे, तब उपयुक्त नहीं होता.

विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक जहां HPV DNA टेस्ट का इंतजाम नहीं हो सका है, वहां पैप स्मीयर टेस्ट के जरिए स्क्रीनिंग जारी रहनी चाहिए.

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WHO सर्वाइकल कैंसर प्रिवेंशन के लिए इस स्ट्रैटजी की सलाह देता है:

  • प्राइमरी स्क्रीनिंग टेस्ट के लिए HPV DNA टेस्टिंग

  • रेगुलर सर्वाइकल कैंसर स्क्रीनिंग 30 साल की उम्र से शुरू करनी चाहिए, हालांकि HIV पॉजिटिव महिलाओं को इसकी शुरुआत 25 साल की उम्र से करनी चाहिए

  • अगर प्राइमरी स्क्रीनिंग टेस्ट HPV DNA टेस्ट है, तो स्क्रीनिंग इंटरवल हर 5 से 10 साल होना चाहिए, HIV पॉजिटिव महिलाओं के लिए लिए ये अंतराल हर 3 से 5 साल का होना चाहिए.

  • जहां पर HPV DNA टेस्टिंग ऑपरेशनल नहीं है, वहां VIA या साइटोलॉजी (पैप स्मीयर) के जरिए हर तीन साल पर रेगुलर स्क्रीनिंग की सलाह दी जाती है.

  • जिन महिलाओं का HPV DNA प्राइमरी स्क्रीनिंग टेस्ट पॉजिटिव आए और फिर triage (दोबारा) टेस्ट निगेटिव आए, उन्हें 24 महीने बाद दोबारा HPV DNA टेस्ट कराना चाहिए और इसके निगेटिव आने के बाद रेगुलर स्क्रीनिंग इंटरवल (जो कि 5 से 10 साल है) फॉलो किया जाना चाहिए. वहीं HIV के साथ जी रही महिलाओं, जिनका HPV DNA प्राइमरी स्क्रीनिंग टेस्ट पॉजिटिव आए और फिर triage यानी दूसरा टेस्ट निगेटिव आए, उन्हें 12 महीने बाद दोबारा HPV DNA टेस्ट कराना चाहिए और इसके निगेटिव आने के बाद रेगुलर स्क्रीनिंग इंटरवल (जो कि 3 से 5 साल है) फॉलो किया जाना चाहिए.

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  • वहीं जिन महिलाओं का cytology primary screening test पॉजिटिव आने के बाद colposcopy के नतीजे नॉर्मल आएं, उन्हें 12 महीने बाद HPV DNA testing करानी चाहिए और इसके निगेटिव आने के बाद रेगुलर स्क्रीनिंग इंटरवल फॉलो किया जाना चाहिए. प्राइमरी स्क्रीनिंग टेस्ट पॉजिटिव आने के बाद कोल्पोस्कोपी (colposcopy) के जरिए ये निश्चित किया जाता है कि प्रभावित हिस्से में असामान्यता है या नहीं.

  • 50 की उम्र के बाद लगातार दो स्क्रीनिंग का नतीजा निगेटिव आने के बाद WHO रेगुलर स्क्रीनिंग को रोकने की सलाह देता है.

कई तरह की प्राथमिक जांच और ट्राइएज (दूसरा) टेस्ट का उपयोग करके सर्वाइकल स्क्रीनिंग और उपचार किया जा सकता है, इसके कई संभावित कॉम्बिनेशन या एल्गोरिदम हैं.

विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक सभी महिलाओं को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि वे अपने लोकल हेल्थ अथॉरिटी की सिफारिशों के अनुरूप नियमित रूप से सर्वाइकल कैंसर स्क्रीनिंग टेस्ट करवाएं.

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सर्वाइकल कैंसर के रिस्क फैक्टर

(फोटो: iStock)

यह निर्धारित करने का कोई निश्चित तरीका नहीं है कि किसी भी प्रकार के कैंसर का कारण क्या है, हालांकि कुछ जोखिम कारक हैं, जो सर्वाइकल कैंसर की आशंका बढ़ा सकते हैं:

  1. ह्यूमन पैपिलोमावायरस (HPV) सर्वाइकल कैंसर के विकास के प्रमुख जोखिमों में से एक है. HPV के 150 से अधिक प्रकार के स्ट्रेन हैं, जिनमें से दो - HPV-16 और HPV-18 सर्वाइकल कैंसर से सबसे ज्यादा जुड़े हैं, 70% से ज्यादा सर्वाइकल कैंसर के केस इन दो स्ट्रेन जुड़े हो सकते हैं.

  2. धूम्रपान - तंबाकू में पाए जाने वाले रसायन धूम्रपान करने वाली महिलाओं को सर्वाइकल कैंसर के खतरे में डाल सकते हैं. इसमें सेकेंड हैंड स्मोक की भूमिका भी हो सकती है.

  3. कमजोर प्रतिरक्षा प्रणाली - जिन महिलाओं में ह्यूमन इम्युनोडेफिशिएंसी वायरस (एचआईवी) होता है, वे एचपीवी संक्रमणों से प्रभावी ढंग से लड़ने में सक्षम नहीं हो सकती हैं, इस प्रकार उन्हें तेजी से सर्वाइकल कैंसर होने का खतरा होता है.

  4. स्वास्थ्य देखभाल तक पहुंच का अभाव - जिन महिलाओं की नियमित स्वास्थ्य देखभाल और कैंसर जांच तक पहुंच नहीं हो सकती है, वे उच्च जोखिम में हो सकती हैं.

  5. पारिवारिक इतिहास - परिवार में किसी को सर्वाइकल कैंसर होना भी एक जोखिम कारक है

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किन महिलाओं को है सर्वाइकल कैंसर का ज्यादा खतरा?

  • जिनकी सेक्शुअल एक्टिविटी जल्दी शुरू हो गई हो

  • जिनकी ज्यादा डिलीवरी हुई हो

  • जिनके मल्टीपल सेक्शुअल पार्टनर्स हैं

  • जिनके पार्टनर्स के मल्टीपल सेक्शुअल पार्टनर्स हैं

वो लक्षण जो सर्वाइकल कैंसर का संकेत हो सकते हैं

सर्वाइकल कैंसर का समय पर पता चल सके, इसके लिए जरूरी है कि हर महिला अपने शरीर से परिचित हो और उसके लिए सामान्य क्या है, इसके बारे में जागरूक हो.

इसलिए, एक महिला को अपने मासिक धर्म के समय, अवधि और भारीपन पर पूरा ध्यान देना चाहिए, और क्या वह नियमित रूप से पीठ या पेट में दर्द का अनुभव करती है, इस पर ध्यान देना चाहिए और डॉक्टर से सलाह लेनी चाहिए.

ये लक्षण सर्वाइकल कैंसर का संकेत हो सकते हैं:

  • वजाइना में खुजली या जलन महसूस होना

  • पीठ के निचले हिस्से या पेट में दर्द

  • बेवजह थकान महसूस करना

  • पेशाब में खून, पेशाब के दौरान दर्द होना, जल्दी-जल्दी पेशाब लगना

  • पेट फूलना (ब्लोटिंग)

  • वजाइना से बदबूदार डिस्चार्ज

  • पेट के निचले हिस्से में दर्द

  • मलाशय से रक्तस्राव, दस्त, या मलाशय में दर्द जैसे लक्षण

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सर्वाइकल कैंसर का खात्मा करने में वैक्सीनेशन के जरिए काफी मदद मिल सकती है. HPV वैक्सीन उपलब्ध हैं, लेकिन इसके बारे में ज्यादा जागरुकता नहीं है. एचपीवी वैक्सीन के साथ स्क्रीनिंग जारी रखना भी महत्वपूर्ण है. वहीं सेफ सेक्शुअल प्रैक्टिस, कंडोम या बैरियर कॉन्ट्रासेप्टिव के इस्तेमाल से सेक्शुअली ट्रांसमिस्टेड इंफेक्शन का रेट कम होगा, तो सर्वाइकल कैंसर का रिस्क भी घटेगा.

(इनपुट- विश्व स्वास्थ्य संगठन, आईएएनएस)

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