कोरोनावायरस डिजीज-2019 (COVID-19) के इलाज में मलेरिया की जिस दवा के कारगर होने की उम्मीद के साथ दुनिया भर में ट्रायल किए जा रहे थे, उस पर वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन (WHO) ने फिलहाल रोक लगा दी है.
भारत की नोडल सरकारी एजेंसी इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) ने WHO को खत लिखा है. खत में ICMR ने डब्ल्यूएचओ को भारतीय और अंतरराष्ट्रीय परीक्षणों के बीच खुराक के मानकों में अंतर का हवाला दिया है.
ICMR का कहना है कि कोविड-19 के गंभीर मरीज जो फिलहाल आईसीयू में भर्ती हैं, उनके इलाज के लिए भारत सरकार के तय प्रोटोकॉल के मुताबिक खुराक दी जाती है.
उन्हें पहले दिन सुबह और रात को 400-400 एमजी HCQ का डोज दिया जाता है. इसके बाद अगले 4 दिनों के लिए सुबह और शाम 200-200 एमजी डोज दिया जाता है. 5 दिन में कोरोना के गंभीर मरीज को HCQ की कुल 2400 मिलीग्राम ही डोज के तौर पर दी जाती है.
न्यूज एजेंसी ANI से बात करते हुए एक ऑफिसर ने ICMR और स्वास्थ्य मंत्रालय के WHO के आकलन से असहमत होने के पीछे की वजह बताई है कि भारत और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर दिए गए डोज में काफी अंतर है. उन्होंने कहा कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कोविड-19 के मरीजों को दी जाने वाले डोज में- 800 मिलीग्राम x 2 लोडिंग डोज के 6 घंटे के अंतराल पर 400 मिलीग्राम x 2 डोज हर दिन 10 दिनों के लिए है. वहीं, 11 दिनों में एक मरीज को दी जाने वाली कुल डोज 9600 मिलीग्राम है, जो भारत में मरीजों को दी जा रही खुराक से चार गुना ज्यादा है.
ये भी दावा किया है कि इससे पता चलता है कि HCQ का डोज भारतीय इलाज के प्रोटोकॉल में ज्यादा असरदार और अच्छा है. उन्होंने कहा कि कोरोना के मरीज दवा का कम डोज दिए जाने पर भी ठीक हो रहे हैं. HCQ दवाओं के जरिए कोविड-19 मरीजों के ठीक होने से मिली शुरुआती सफलता को लेकर ही आईसीएमआर ने डब्ल्यूएचओ को खत लिखकर असहमति जताई है.
(ANI इनपुट के साथ)
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