दुनियाभर में कोरोना से लड़ने का एकमात्र तरीका फिलहाल वैक्सीन है. वैक्सीन के दोनों डोज पा चुके लोगों को थोड़ी राहत है कि अन्य सुरक्षा उपायों को अपनाते हुए वो बचाव कर सकते हैं.
लेकिन क्या वैक्सीन की 2 डोज इस वायरस को हराने के लिए काफी है?
ये सवाल उभर रहा है क्योंकि दुनियाभर में कोरोना के लगातार आते नए वेव और तमाम नए वैरिएंट्स चिंता बढ़ा रहे हैं. भारत सरकार ने 16 जनवरी 2021 से कोरोना के खिलाफ वैक्सीनेशन ड्राइव की शुरुआत की थी. पहले चरण में स्वास्थ्य कर्मियों और फ्रंटलाइन वर्कर्स को प्राथमिकता के आधार पर वैक्सीन लगाई गई थी. इस आधार पर माना जा सकता है कि ज्यादातर स्वास्थयकर्मियों को अब तक दोनों वैक्सीन डोज लग चुके हैं. लेकिन इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के आंकड़ों के मुताबिक कोरोना की दूसरी लहर में 269 डॉक्टर अपनी जान गंवा चुके हैं, हालांकि ये साफ नहीं है कि इनमें से कितने डॉक्टर्स ऐसे हैं, जो वैक्सीन की दोनों डोज ले चुके थे. इसके अलावा हाल ही, डॉक्टर केके अग्रवाल की मौत के बाद सवाल खड़े हुए. उनकी मौत वैक्सीन के दोनों डोज लगने के बावजूद हुई.
केंद्र सरकार का कहना है कि वैक्सीन की 2 डोज के बाद मौत के मामलों पर ICMR नजर रख रही है.
तो क्या बेहतर बचाव के लिए वैक्सीन की तीसरी डोज लगवानी होगी?
भारत में वैक्सीन की 2 डोज के बीच अंतराल रखा गया है. ये दोनों डोज मिलकर ही वैक्सीन की 'प्राइम डोज' कहलाती है. अगर कुछ समय बाद कोई और भी डोज लगाने को दिया जाए तो वो बूस्टर डोज कहलाती है.
27 मई को कोविड-19 वैक्सीन पर केंद्र सरकार की टास्क फोर्स के अध्यक्ष और नीति आयोग के मेंबर डॉ वीके पॉल ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि-"अलग-अलग वैक्सीन की बूस्टर डोज की जरूरत और समय को लेकर जानकारी जुटाई जा रही है. अगर इसकी जरूरत होगी तो प्रोटोकॉल, गाइडलाइंस उपलब्ध कराए जाएंगे."
फिट से बातचीत में वायरोलॉजिस्ट डॉ शाहिद जमील समझाते हैं- "अभी कोरोना वैक्सीन की 2 डोज ट्रायल में टेस्ट हुई है. आगे जरूरत हो सकती है लेकिन ये सिद्ध करने के लिए स्टडी होनी चाहिए. हालांकि, इतनी जल्दी बूस्टर डोज की जरूरत नहीं है. इम्यूनोलॉजी का विज्ञान भी ये नहीं कहता. इतनी जल्दी बूस्टर डोज लेने का कोई फायदा नहीं होता.
"जब हम पहली डोज लेते हैं तो हमारा इम्यून सिस्टम पहली बार उस वायरस के पार्ट को देखता है और इम्यून रिस्पॉन्स पैदा होता है जिसे हम 'प्राइमरी इम्यून रिस्पॉन्स' कहते हैं. उसमें 2 हफ्ते में एंटीबॉडी बननी शुरू होती है और 4 से 20 हफ्तों के बीच एंटीबॉडी घटने लगती है. अलग-अलग एंजाइम्स के लिए ये गति अलग-अलग होती है. जब वो घटने लगती है तो हम बूस्टर शॉट देते हैं जिससे 'सेकेंडरी इम्यून रिस्पॉन्स' आता है. वो सेकेंडरी इम्यून रिस्पॉन्स ज्यादा देर तक रहती है. इससे काफी हाई लेवल की एंटीबॉडी बनती है, और ज्यादा समय तक बनी रहती है. एंटीबॉडी बनाने वाली सेल या टी-सेल एक 'मेमोरी कंपार्टमेंट' बना लेती है जो आगे काम आते हैं. एक बार रिस्पॉन्स नीचे आ गया और इंफेक्शन हो जाता है तो वो इंफेक्शन मेमोरी रिस्पॉन्स को जल्दी से उभार देता है और 1 -2 दिनों में हमें सुरक्षा मिल जाती है. तीसरी डोज का इस मेमोरी रिस्पॉन्स या सेकेंडरी रिस्पॉन्स पर कोई फर्क नहीं पड़ता. लेकिन, 2-5 साल बाद ये घटते मेमोरी रिस्पॉन्स को कंसोलिडेट कर सकता है."फिट से बातचीत में वायरोलॉजिस्ट डॉ शाहिद जमील
वो आगे कहते हैं- कोरोना नई बीमारी है और ये डेटा उपलब्ध नहीं है कि कितनी देर बाद मेमोरी रिस्पॉन्स घटती है, इसके लिए स्टडी की जरूरत है.
वैक्सीन लगवाने के बाद भी संक्रमण का खतरा?
शाहिद जमील कहते हैं- " जो भी कोरोना वैक्सीन उपलब्ध है, किसी कंपनी ने उसे लेकर दावा नहीं किया है कि आपको इंफेक्शन नहीं होगा. वैक्सीन लेने के बाद आपको गंभीर बीमारी नहीं होगी. इन 2 अंतर को समझना चाहिए. इंफेक्शन और बीमारी दोनों अलग चीजें हैं."
एस्ट्राजेनेका की वेबसाइट पर दावा किया गया है कि "वैक्सीन के फेज-3 ट्रायल के नतीजों में पाया गया है कि वैक्सीन आपको कोविड-19 के गंभीर संक्रमण, अस्पताल जाने और मौत से 100% सुरक्षा प्रदान करती है."
हालांकि, दुनिया के कई कोरोना वैक्सीन मैन्यूफैकचरर तीसरे डोज को अहम बता रहे हैं.
क्या कह रही हैं वैक्सीन बनाने वाली कंपनियां और एक्सपर्ट?
भारत की स्वदेशी वैक्सीन कोवैक्सीन ने तीसरी डोज- बूस्टर डोज को लेकर ट्रायल शुरू कर दिए हैं.
ये ट्रायल दिल्ली स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान में हो रहा है. ट्रायल में ये बूस्टर डोज दूसरी डोज लेने के 6 महीने के अंतराल पर लगेगी. इसलिए कोवैक्सीन के दूसरे फेज के ट्रायल में हिस्सा लेने वाले लोगों पर ही ये ट्रायल होगा.
फाइजर के सीईओ अल्बर्ट बौर्ला और बायोएनटेक के सीईओ उगुर साहिन ने शुरुआती वैक्सीनेशन के बाद 12 महीनों के भीतर तीसरे शॉट की संभावित जरूरत पर जोर दिया है.
मॉडर्ना के सीईओ स्टीफल बैंसेल ने 23 मई को एक इंटरव्यू में कहा कि ज्यादा से ज्यादा लोगों को कोरोना के नए वैरिएंट के जोखिम से बचने के लिए बूस्टर शॉट के तौर पर कोरोना की तीसरी डोज लेनी जरुरी है.
“हम मानते हैं कि हमारी वैक्सीन एक समयसीमा तक प्रभावी होगी, बावजूद इसके कोरोना के उभरते नए वैरिएंट खतरा बढ़ा सकते हैं. इसलिए हमें गर्मियों के अंत तक उन जोखिम वाले सभी लोगों को वैक्सीन की तीसरी डोज लगानी चाहिए, विशेष रूप से नर्सिंग होम के कर्मचारियों को, जिन्होंने साल की शुरुआत में पहली डोज ली थी.”स्टीफल बैंसेल
अमेरिका के टॉप इंफेक्शियस डिजीज एक्सपर्ट डॉ एंथनी फाउची भी कह चुके हैं कि कोरोना वायरस से लड़ाई में बूस्टर डोज बहुत महत्वपूर्ण साबित होगी.
उन्होंने कहा कि "जिन लोगों को कोरोनावायरस के खिलाफ वैक्सीन लगाई गई है, उन्हें सुरक्षित रहने के लिए बूस्टर शॉट की जरूरत होगी. हालांकि, शॉट कब दिया जाना चाहिए ये अभी भी स्पष्ट नहीं है."
यूके ने 7 वैक्सीन के बूस्टर डोज पर शुरू की स्टडी
BBC की रिपोर्ट के मुताबिक यूके में सरकार वर्किंग एज और 75 साल से ज्यादा उम्र के लोगों से तीसरे डोज के ट्रायल में शामिल होने का आग्रह कर रही है ताकि पता लगाया जा सके कि कोविड वैक्सीन का तीसरा डोज नए वैरिएंट्स से बचाव करने में सक्षम है या नहीं.
इसके लिए कोव-बूस्ट(Cov-Boost study) के तहत वहां मंजूर किए गए 7 वैक्सीन के बूस्टर डोज पर स्टडी चल रही है.
रिपोर्ट के मुताबिक, साउथेम्प्टन यूनिवर्सिटी में ट्रायल के चीफ इन्वेस्टिगेटर प्रो शाऊल फॉस्ट कहते हैं कि, "ऐसा हो सकता है कि कुछ आयु समूहों को बूस्टर की जरूरत न हो और कुछ को हो."
साथ ही उन्होंने ये भी कहा- "हम ये कहने की कोशिश नहीं कर रहे हैं कि एक वैक्सीन दूसरे से बेहतर है. इसका मकसद ये पता लगाना है कि क्या बूस्टर अभियान होना चाहिए और किस वैक्सीन का इस्तेमाल करना चाहिए."
हालांकि, भारत में हेल्थ एक्सपर्ट्स का मानना है कि फिलहाल, मौजूद COVID-19 वैक्सीन की 2 डोज अभी भी दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में उभर रहे वेरिएंट के खिलाफ प्रभावी हैं.
माना जा रहा है कि अगर वैक्सीन-प्रतिरोधी म्यूटेशन हो जाए, इसके खिलाफ तैयारी के मद्देनजर वैक्सीन मेकर तीसरी बूस्टर डोज की तैयारी शुरू कर रहे हैं. साथ ही कोरोना के खिलाफ वैक्सीन कितने समय तक एंटीबॉडी सुरक्षा देती है, ये भी अभी साफ नहीं है.
बूस्टर डोज का मिलता है फायदा?
रिसर्च से पता चला है कि बूस्टर शॉट्स आपके शरीर को वायरस या बैक्टीरिया को पहचानने और अपना बचाव करने के लिए प्रशिक्षित करते हैं. वैक्सीन के प्रकार और मैन्यूफैक्चरर के आधार पर, आपको अपने पहले शॉट के सप्ताह, महीने या साल भर बाद भी बूस्टर शॉट मिल सकते हैं.
बूस्टर डोज इम्यून सिस्टम को तुरंत एक्टिव कर सकती है. ये 'इम्यूनोलॉजिकल मेमोरी' के आधार पर काम करता है जहां इम्यून सिस्टम उस वैक्सीन को याद रखता है जो शरीर को पहले लग चुकी है. ऐसे में बूस्टर डोज इम्यून सिस्टम को तुरंत एक्टिव कर देता है, जिसका प्रभाव ज्यादा देखने को मिलता है.
पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया में प्रोफेसर और लाइफकोर्स एपिडेमियोलॉजी के प्रमुख डॉ गिरिधर आर बाबू ने ET को दिए एक इंटरव्यू में कहा है कि "वैक्सीन से सुरक्षा कितने समय तक चलती है, इसके आधार पर ये तय करने की जरूरत है कि बूस्टर कब दिया जाना है. लेकिन इसे अभी देखने और स्टडी करने की जरूरत है कि क्या बूस्टर बीमारी से ज्यादा प्रभावी ढंग से लड़ने में मदद करेंगे?"
वहीं एक और एक्पसर्ट का कहना है कि तीसरी डोज भविष्य में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है लेकिन वर्तमान में, इस दावे का समर्थन करने के लिए पर्याप्त डेटा नहीं है. फ्लू शॉट्स की तरह, किसी को हर साल बूस्टर शॉट्स की जरूरत हो सकती है, लेकिन ये धारणा बनाना जल्दबाजी होगी क्योंकि बीमारी (कोविड -19) अपने आप में बहुत नई है और वैक्सीन को सामने आए एक साल भी नहीं हुआ है. हमें ज्यादा डेटा और स्टडी की जरूरत है.
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