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1 डोज और इंफेक्शन के बाद नहीं लगवाएंगे वैक्सीन-विज,क्या ये सही है?

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हरियाणा के स्वास्थ्य मंत्री अनिल विज ने 1 मार्च को कहा कि उन्हें कोविड-19 वैक्सीन की जरूरत नहीं है क्योंकि वैक्सीन ट्रायल के दौरान उनका एंटीबॉडी काउंट चेक किया गया था, तो वो बहुत हाई था.

उन्होंने ट्वीट कर कहा, "मैं कोविड वैक्सीन नहीं लगवा पाऊंगा क्योंकि कोविड होने के बाद मेरी एंटीबॉडी 300 बनी है जो कि बहुत ज्यादा है. शायद मैंने जो ट्रायल वैक्सीन लगवाई थी इसमें उसका भी योगदान हो. मुझे अभी वैक्सीन की जरूरत नहीं है."

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तो क्या कोविड संक्रमितों के लिए वैक्सीन जरूरी नहीं है?

बता दें कि 20 नवंबर को कोवैक्सीन वैक्सीन ट्रायल में हिस्सा लेने के बाद 5 दिसंबर को विज के कोरोना संक्रमित होने की जानकारी सामने आई.

भारत सरकार के गाइडलाइंस के मुताबिक COVID-19 संक्रमण से ठीक होने के बावजूद, कोविड वैक्सीन का कंप्लीट शेड्यूल लेने की सलाह दी गई है क्योंकि इससे बीमारी के खिलाफ एक मजबूत इम्यून रिस्पॉन्स विकसित करने में मदद मिलेगी.

वहीं अमेरिका के सेंटर फॉर डिजीज एंड कंट्रोल(CDC) के मुताबिक "Covid-19 के साथ जुड़े गंभीर स्वास्थ्य जोखिमों और इस तथ्य के कारण कि Covid-19 रिइंफेक्शन संभव है, आपको पहले से ही Covid-19 संक्रमण था- इस बात की परवाह किए बिना आपको वैक्सीन लगवानी चाहिए."

ट्रायल में हिस्सा लेने के बाद विज के कोरोना वायरस से संक्रमित होने की जानकारी 2 हफ्ते में ही आ गई थी.

अशोका यूनिवर्सिटी के त्रिवेदी स्कूल ऑफ बायोसाइंसेज के डायरेक्टर और वायरोलॉजिस्ट डॉ. शाहिद जमील ऐसे केसेज के बारे में कहते हैं-

“इंफेक्शन होने के बावजूद वैक्सीन लेनी चाहिए क्योंकि ये बूस्टर का काम करेगी. अगर वैक्सीन लेने के बाद इंफेक्शन होता है, तो ये प्राकृतिक रूप से वैक्सीन की दूसरी डोज मिलने जैसा है. लेकिन इन दोनों डोज के बीच गैप कम रहा तो जो एंटीबॉडी तैयार होती है वो ज्यादा लंबे समय तक नहीं रहती.”

वो आगे कहते हैं-"इन 2 डोज के बीच 4 सप्ताह का अंतराल होना जरूरी है. अब जो स्टडी आ रही हैं उससे लगता है कि अंतराल का समय और ज्यादा- करीब 8 से 12 सप्ताह का होना चाहिए. अगर एक डोज लेने के 4 से 5 सप्ताह के बाद इंफेक्शन हुआ तब ये इंफेक्शन बूस्टर का काम करता है लेकिन अगर इंफेक्शन जल्दी हुआ हो तो बेहतर होगा कि समय से वैक्सीन की डोज और ले लें.”

विज द्वारा एंटीबॉडी काउंट का जिक्र किया गया है. इसे लेकर डॉ जमील एक अहम बात जोड़ते हैं-

“300 एंटीबॉडी काउंट है, तो जरूरी नहीं कि वो 3 महीने बाद भी उतनी ही हों. सिर्फ एंटीबॉडी पैमाना नहीं होता, टी-सेल की भी जांच जरूरी है और इसके लिए भी डोज के बीच अंतराल होना चाहिए.”
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ICMR के सेंटर फॉर एडवांस्ड रिसर्च, जो कि सरकारी फंड पर चलने वाली संस्था है, में वायरोलॉजी के पूर्व चीफ डॉ. जैकब टी जॉन कहते हैं- “अनिल विज का फैसला साइंटिफिक तरीके से सही है. अगर उन्हें एंटीबॉडी काउंट की जानकारी है तो वो इंतजार कर सकते हैं. एक साल बाद अगर उनकी एंटीबॉडी काफी कम लेवल पर पहुंच जाती है तो उन्हें सिर्फ एक बूस्टर डोज की जरूरत होगी क्योंकि वो संक्रमण की वजह से प्राकृतिक रूप से इम्यून हो चुके हैं.”

हालांकि ये आम लोगों के लिए व्यवहार्य नहीं है कि वो संक्रमण के बाद हमेशा अपना एंटीबॉडी लेवल चेक कराएं.

स्वास्थ्य विशेषज्ञों के मुताबिक- संक्रमण के बाद वैक्सीनेशन टाला जा सकता है, लेकिन लंबे समय में ये रिस्की भी हो सकता है.
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डॉ शाहिद जमील कहते हैं- “खून में एंटीबॉडी को इंटरनेशनल यूनिट (IU) में मापा जाता है. इसकी रेंज 0 से 1000 होती है. आमतौर पर 10 IU को कट ऑफ माना जाता है. 10 और 1000 के बीच के स्तर को सुरक्षात्मक माना जाता है. हालांकि ये हमेशा सहसंबंधित(Correlate) नहीं हो सकता है. 10 से नीचे के काउंट वाले लोग भी टी-सेल के जरिये मिलने वाली इम्यूनिटी के माध्यम से बीमारी से बच सकते हैं जो एंटीबॉडी द्वारा नहीं मापा जाता है.”

“सबसे अच्छे इम्यून सिस्टम के लिए ये सलाह दी जाती है कि थ्रेसहोल्ड लेवल 10 के करीब पहुंचने के बाद एंटीबॉडी को ड्रॉप होने दें. दूसरा बूस्टर डोज तब सबसे प्रभावी होता है. हालांकि ये सभी व्यक्ति पर समान रूप से लागू हो, ऐसा जरूरी नहीं है. एंटीबॉडी टेस्ट ज्यादातर बड़े पैथोलॉजी लैब में व्यावसायिक रूप से किया जाता है. लेकिन प्राइवेट डोमेन में ये करीब-करीब वैक्सीन की लागत से दोगुना होता है.
डॉ शाहिद जमील”

दरअसल, आम लोगों के लिए एंटीबॉडी की जांच के बाद, काउंट देखना और फिर वैक्सीन लेना - ये आर्थिक तौर पर व्यवहार्य नहीं है. ऐसे में हरेक व्यक्ति को वैक्सीन लेने की सलाह दी जाती है. जिन्हेंं संक्रमण नहीं हुआ है उनके लिए बचाव के तौर पर और जो संक्रमण से उबर चुके हैं, उनके लिए बूस्टर डोज के तौर पर.

WHO भी इसकी सिफारिश करता है.

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