डायबिटीज के मरीजों को लंबे समय तक अपनी सेहत दुरुस्त बनाए रखने के लिए समय-समय पर कुछ चेकअप कराना जरूरी होता है. डायबिटिक लोगों के लिए कुछ रेगुलर जांच की सिफारिश की जाती है ताकि उनकी अच्छी सेहत बरकरार रहे और अगर कुछ दिक्कत नजर आए, तो जल्द से जल्द उसे दूर करने के उपाय किए जा सकें.
बेंगलुरु के फोर्टिस हॉस्पिटल में कंसल्टेंट एंडोक्राइनोलॉजिस्ट डॉ. श्रीनिवास मुनिगोटी डी डायबिटिक लोगों के लिए जरूरी रेगुलर टेस्ट के बारे में बताते हैं:
1. फास्टिंग और पोस्टप्रैंडियल ब्लड शुगर
ब्लड शुगर लेवल का हेल्दी रेंज में रहना जरूरी है क्योंकि अगर ग्लूकोज का लेवल बहुत कम हो, तो हम सामान्य रूप से सोचने और कार्य करने की क्षमता खो सकते हैं. अगर ये बहुत अधिक हो जाता है और ऊंचा बना रहता है, तो समय के साथ शरीर को नुकसान या जटिलताएं पैदा कर सकता है.
डॉ. मुनिगोटी के मुताबिक फिजिशियन के बताए अनुसार आपको खाने के पहले और खाने के बाद का ब्लड शुगर टेस्ट कराना चाहिए.
2. HbA1c (औसत ब्लड शुगर की जांच)
HbA1c पिछले 8-12 हफ्तों का औसत ब्लड शुगर होता है. हर 3 से 6 महीने में ये टेस्ट कराने की सिफारिश की जाती है.
अध्ययनों से पता चलता है कि A1c को टारगेट के करीब रखने से डायबिटीज से जुड़ी जटिलताओं के विकास को रोकने में मदद मिल सकती है.
3. किडनी की जांच
समय के साथ बढ़े हुए ब्लड शुगर से किडनी को नुकसान हो सकता है. किडनी की जांच के लिए यूरिन टेस्ट और ब्लड टेस्ट कराए जा सकते हैं. इसमें यूरिन टेस्ट के जरिए माइक्रोएल्ब्यूमिन की जांच करी जाती है. ये टेस्ट किडनी डैमेज के शुरुआती लक्षणों का पता लगाने के लिए किया जाता है.
इसके अलावा, ब्लड टेस्ट में क्रिएटिनिन वैल्यू और ग्लोमेरुलर फिल्टरेशन रेट (GFR) की जांच की जा सकती है, जो यह भी बता सकता है कि किडनी कितनी अच्छी तरह काम कर रही है.
4. आंखों का चेकअप
अगर ब्लड शुगर लेवल लंबे समय तक बढ़ा रहे, तो यह आंखों को नुकसान पहुंचा सकता है. हाई ब्लड शुगर रेटिना की छोटी रक्त वाहिकाओं को प्रभावित करता है, इससे आंख के पिछले हिस्से को नुकसान होने का खतरा होता है, जिसे डायबिटिक रेटिनोपैथी भी कहा जाता है.
अगर आंखों में कोई दिक्कत नहीं है, तो भी डायबिटिक लोगों को साल में 1-2 बार आंखों का चेकअप कराने की सलाह दी जाती है.
सेंटर फॉर साइट ग्रुप ऑफ आई हॉस्पिटल्स, नई दिल्ली के मेडिकल डायरेक्टर और चेयरमैन डॉ. महिपाल सचदेव इस लेख में बताते हैं, “डायबिटीज के बढ़ते मामलों के साथ यह आकलन किया गया है कि डायबिटिक रेटिनोपैथी डायबिटीज के 3 में से 1 मरीज को प्रभावित करती है और यह कामकाजी उम्र के वयस्कों में दृष्टिहीनता का मुख्य कारण है. डायबिटीज के कारण होने वाली दृष्टिहीनता को रोकने के लिए जल्दी डायग्नोसिस और सही समय पर इलाज सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है."
5. ब्लड लिपिड चेक
साल में एक बार ब्लड लिपिड वैल्यू, कोलेस्ट्रॉल (LDL और HDL) और ट्राइग्लिसराइड्स का टेस्ट कराना चाहिए. टाइप 2 डायबिटीज वाले लोगों में ये अक्सर संतुलन से बाहर होते हैं. बहुत अधिक LDL या पर्याप्त HDL नहीं होने से हृदय और मस्तिष्क की रक्त वाहिकाओं के बंद होने का खतरा बढ़ जाता है.
मुंबई स्थित एशियन हार्ट इंस्टीट्यू में सीनियर इंटरवेंशनल कार्डियोलॉजिस्ट डॉ. तिलक सुवर्णा कहते हैं कि डायबिटीज में इंसुलिन रेजिस्टेंस के नाते कोलेस्ट्रॉल और ट्राइग्लिसराइड का प्रोडक्शन बढ़ता है, जिससे दिल से जुड़ी समस्याओं का जोखिम बढ़ता है.
6. कार्डियक स्क्रीनिंग
डॉ. श्रीनिवास मुनिगोटी डी कहते हैं कि डायबिटिक लोगों को अपने फिजिशियन की सलाह पर जरूरत के मुताबिक समय-समय पर कार्डियक स्क्रीनिंग करानी चाहिए.
मुंबई के एशियन हार्ट इंस्टीट्यूट में सीनियर कार्डियोलॉजिस्ट डॉ. संतोष कुमार डोरा कहते हैं,
डायबिटीज से जूझ रहे लोगों को कार्डियोवैस्कुलर बीमारियों का ज्यादा जोखिम होने के नाते ऐसे लोगों को समय-समय पर कार्डियक चेकअप जरूर कराने चाहिए भले ही कोई कार्डियक लक्षण न नजर आएं.
इससे मौजूदा कार्डियोवैस्कुलर बीमारी की जल्द पहचान की जा सकती है और जटिलताएं बढ़ने से पहले जरूरी उपाय और इलाज शुरू किया जा सकता है.
7. पैरों की जांच
हाई ब्लड शुगर के कारण खराब सर्कुलेशन और तंत्रिका क्षति पैरों में सुन्नता कर सकती है. इसके कारण किसी उपचार या जख्म भरने की गति भी धीमी पड़ सकती है, जिससे पैरों में घाव और संक्रमण खतरनाक हो सकते हैं. सबसे बुरे हालत में प्रभावित पैर को अलग तक करना पड़ सकता है.
8. ओरल चेकअप
इंटरनेशनल डायबिटीज फेडरेशन के मुताबिक अगर ब्लड ग्लूकोज ठीक से मैनेज न किया जाए, तो डायबिटीज वाले लोगों में मसूड़ों की सूजन (पीरियडोंटाइटिस) का जोखिम बढ़ जाता है, ये दांतों के टूटने का एक प्रमुख कारण है. इसका समय पर पता लगाने के लिए रेगुलर ओरल चेकअप कराया जाना चाहिए. मसूड़ों में सूजन या ब्रश करते वक्त खून आने जैसे लक्षणों को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए.
9. हड्डियों की जांच
अगर आपकी उम्र 50 साल से ज्यादा है, तो समय-समय पर कराए जाने वाले मेडिकल टेस्ट की लिस्ट में बोन डेन्सिटी टेस्ट को भी जोड़ देना चाहिए. डायबिटीज वाले लोगों को ऑस्टियोपोरोसिस और फ्रैक्चर होने का जोखिम अधिक होता है.
मैक्स हेल्थकेयर में एंडोक्राइनोलॉजी और डायबिटीज डिपार्टमेंट के चेयरमैन डॉ. अंबरीश मित्तल के मुताबिक हड्डियों की कमजोरी का ये रिस्क उम्र के साथ डायबिटीज की अवधि पर भी निर्भर करता है. इसका रिस्क डायबिटीज के 5 साल बाद से बढ़ना शुरू हो जाता है.
(ये लेख आपकी सामान्य जानकारी के लिए है, यहां किसी बीमारी के इलाज का दावा नहीं किया जा रहा. स्वास्थ्य से जुड़ी किसी भी समस्या के लिए फिट आपको डॉक्टर से संपर्क करने की सलाह देता है.)
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