दावा
वॉट्सएप पर आए एक सवाल में हमसे पूछा गया कि क्या चिकन खाने से कैंसर का खतरा बढ़ सकता है.
सोशल मीडिया पर इसी तरह के और भी सवाल हैं.
सही या गलत?
अपोलो हॉस्पिटल में कैंसर सर्जरी के हेड डॉ समीर कौल स्पष्ट करते हैं कि चिकन और कैंसर के बीच इस तरह के किसी संबंध को लेकर कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है.
किसी भी स्टडी में लीन मीट (चिकन, मछली और बत्तख) और कैंसर रिस्क के बीच इस तरह का संबंध नहीं पाया गया है.डॉ समीर कौल
वो बताते हैं कि दरअसल मछली में तो कैंसर का रिस्क घटाने की क्षमता देखी गई है.
हालांकि, वो चेताते हैं कि यही बात रेड मीट या प्रोसेस्ड मीट के लिए नहीं कही जा सकती है.
रेड मीट और कैंसर के बीच लिंक पाया गया है, खासकर कोलोरेक्टल, प्रोस्टेट, प्रैंक्रियाज का कैंसर. प्रोसेस्ड मीट से खतरा और बढ़ जाता है.डॉ कौल
इस तरह के लिंक का अध्ययन करने के लिए पर्याप्त शोध किया गया है. विश्व स्वास्थ्य संगठन के साथ-साथ अमेरिकन इंस्टीट्यूट ऑफ कैंसर रिसर्च ने विशेष रूप से रेड मीट और प्रोसेस्ड मीट के सेवन के कार्सिनोजेनिसिटी (कैंसर का कारण बनने की क्षमता) का मूल्यांकन किया है.
रेड मीट: जैसे गाय, बछड़ा, सुअर, मेमना, घोड़ा और बकरी का मांस.
WHO की रिपोर्ट रेड मीट के सेवन को इंसानों के लिए संभावित कार्सिनोजेनिक बताती है. रिपोर्ट के मुताबिक इस बात के पुख्ता सबूत हैं कि प्रोसेस्ड मीट से इंसानों में कैंसर होता है, विशेषकर कोलोरेक्टल या आंत का कैंसर.
निष्कर्ष
वैज्ञानिक प्रमाण के अभाव में ये कहना कि चिकन खाने से कैंसर हो सकता है, ठीक नहीं हैं. वहीं डॉ कौल मीट को उच्च तापमान पर न पकाने की सलाह देते हैं और साथ ही मीट की क्वालिटी का ख्याल रखने को कहते हैं क्योंकि रेड मीट और प्रोसेस्ड मीट (चिकन भी) सेहत के लिए फायदेमंद नहीं होते हैं.
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