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कोरोना: बच्चों के टीकाकरण में देरी? इन 6 सवाल के जवाब जान लें

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देश में लॉकडाउन तीसरी बार बढ़ा दिया गया है. लॉकडाउन और कोरोना वायरस संक्रमण के डर के चलते माता-पिता बच्चों का टीकाकरण नहीं करवा रहे हैं. बच्चे के शरीर में किसी बीमारी के खिलाफ इम्युनिटी यानी रोग प्रतिरोधक क्षमता पैदा करने के लिए टीकाकरण किया जाता है.

हमने बच्चों के टीकाकरण को लेकर आम सवालों के जवाब जानने की कोशिश की ताकि मां-बाप नवजातों को लेकर किसी डर या आशंका के बीच न रहें. इन सवालों का जवाब दे रहे हैं बाल रोग विशेषज्ञ डॉक्टर राहुल नागपाल, जो दिल्ली में फोर्टिस राजन ढाल हॉस्पिटल के पीडियाट्रिक डिपार्टमेंट हेड हैं.

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क्या इस समय बच्चों को टीके(वैक्सीन) के लिए हॉस्पिटल/क्लीनिक ले जा सकते हैं?

जहां तक हो सके बच्चों को हॉस्पिटल न ले जाएं. कुछ टीके तय समय के भीतर देने होते हैं और कुछ बूस्टर वैक्सीन होती हैं. कोरोना वायरस लॉकडाउन के चलते टीकाकरण में देरी होगी, ये तय है. हम पैरेंट्स से फोन पर बातचीत करते हैं और बेहद जरूरी है तो उन्हें कुछ निर्देश दिए जाते हैं कि उन्हें क्या सावधानियां बरतनी होंगी.

क्लीनिक/ हॉस्पिटल आने वाले पैरेंट्स को क्या सावधानियां बरतने की सलाह दी जाती है?

पूरा समय लेकर आएं. डॉक्टर से फोन पर कंसल्ट करके आएं ताकि भीड़ न हो. एक ही अटेंडेंट जाएं. पहले बच्चों के साथ मां-बाप, मेड भी आती थीं लेकिन फिलहाल ऐसा नहीं करना चाहिए. क्लीनिक आने वाले मास्क पहन कर आएं, आते ही सैनिटाइज करें. कुछ क्लीनिक के अंदर फुटवीयर पहनकर आना मना है. 2 साल के ऊपर के बच्चों को भी मास्क पहनना जरूरी है. पहले से ही वैक्सीन कार्ड लैपटॉप, फोन पर होते हैं, ये इलेक्ट्रॉनिकली ही अपडेट किए जा रहे हैं ताकि कलम के इस्तेमाल की जरूरत न पड़े. पूरे एहतियात, मास्क, ग्लव्स पहनकर बच्चे की एक जरूरी जनरल चेकअप के बाद वैक्सीन लगाई जाती है. पहले बच्चे को वैक्सीन लगाते वक्त नर्स भी साथ होतीं थीं लेकिन अब कई क्लिीनिक में सिर्फ बच्चे के साथ अटेंडेंट ही होते हैं. ‘मिनिमल एक्सपोजर, मिनिमल टच, मिनिमल इंटरवेंशन’ पर जोर दिया जा रहा है, जिसमें कम से कम संपर्क से काम चलाया जा सके.

टीके को कितने समय तक टाला जा सकता है?

पहले 9 महीने वाली वैक्सीन, जिन्हें प्राइमरी वैक्सीन कहते है, उन्हें कुछ हद तक ही टाला जा सकता है. दूसरा- बूस्टर वैक्सीन होते हैं जिन्हें हम लॉकडाउन के बाद तक भी टाल सकते हैं. BCG, पोलियो, हेपेटाइटिस का टीका तो जन्म के समय ही दे दिया जाता है. पहले साल में DPT, पोलियो की 3 डोज दी जाती हैं. इसकी पहली डोज हम जन्म के बाद 6 हफ्ते पर शुरू करते हैं, लेकिन 8 हफ्ते तक टाल सकते हैं. तीनों डोज के बीच का गैप 1 महीने का रखा जाता है. इसे हम ज्यादा से ज्यादा 2 हफ्ते तक और बढ़ा सकते हैं. खसरे की वैक्सीन हम 9 से 12 महीने के बीच दे सकते हैं. एक फ्लू की वैक्सीन होती है जो जन्म के छठे महीने में दी जाती है. ये बच्चों के लिए काफी जरूरी है. सातवें महीने तक इसे लगवा ही लेना चाहिए. रोटावायरस जैसी वैक्सीन 7 महीने से पहले लगानी ही पड़ती है. 7 महीने के बाद इस वैक्सीन का कोई फायदा नहीं है. एक साल से ज्यादा उम्र के बच्चों के मामले में बदलाव किए जा सकते हैं. लेकिन 1 साल तक सावधानी और समय पर ध्यान देना ही पड़ेगा.

क्या एक साथ कई टीके लगाए जा सकते हैं?

जन्म के समय बेसिक टीके लगा दिए जाते हैं. कोरोना वायरस के खतरों को ध्यान में रखते हुए अब कोशिश की जा रही है कि एक बार टीके लगवाने आ रहे बच्चों को ‘कॉम्बिनेशन वैक्सीन’ लगा दें, यानी एक दिन में जितना टीका मुमकिन और सुरक्षित हो.

क्या टीकाकरण में देरी को लेकर कोई गाइडलाइन फॉलो की जा रही है?

अगर टीकाकरण टाल रहे हैं तो बाद में ‘कैचअप इम्युनाइजेशन शेड्यूल’ को अपनाया जाता है. WHO ने वैक्सीन में देरी को लेकर एक चार्ट जारी किया है. डॉक्टर उसी के हिसाब से अपना काम कर रहे हैं. इसमें आगे चलकर गैप को कम करना पड़ जाता है. बच्चों को 6 हफ्ते की जगह 4 हफ्ते में ही बुलाना पड़ता है.

क्या इससे शिशु मत्यु दर बढ़ सकता है?

ये समय के हिसाब से ही पता चलेगा. खतरे को लेकर सबके मन में एक डर है. पहले के मुकाबले क्लीनिक में आधे से भी बेहद कम बच्चे आ रहे हैं. हालांकि फोन और टेलीमेडिसीन पर निर्भरता बढ़ गई है. जिन्हें बेहद जरूरी है वैसे ही लोग वैक्सीन लगवाने आ रहे हैं.

भारत में एक साल की उम्र तक के बच्चों के टीकाकरण का समय

बता दें, कई विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि टीकाकरण में देरी से दूसरी बीमारियों का खतरा बढ़ सकता है. विश्व स्वास्थ्य संगठन(WHO) ने बयान में कहा है कि, "टीकाकरण एक जरूरी स्वास्थ्य सेवा है जो फिलहाल COVID-19 महामारी से प्रभावित हो सकता है. ये खसरे जैसे रोग जो वैक्सीन प्रिवेंटेबल डिजीज(VPD) हैं, जिन्हें वैक्सीन से रोका जा सकता है, उसकी संभावना को बढ़ाएगा."

वहीं यूनिसेफ की एक रिपोर्ट कहती है कि साउथ एशिया में करीब 41 लाख बच्चों का नियमित टीकाकरण नहीं हो पाया है. कोरोना वायरस के चलते हो रही दिक्कतों की वजह से अब ये ज्यादा चिंताजनक है. इनमें 97% बच्चे भारत, पाकिस्तान और अफगानिस्तान से हैं.

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