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COVAXIN: फेज 3 का डेटा लैंसेट में जारी, वैक्सीन एफिकेसी से जुड़ी बड़ी बातें

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Health News
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भारत बायोटेक (Bharat Biotech) की COVID-19 वैक्सीन COVAXIN को विश्व स्वास्थ्य संगठन की ओर से 3 नवंबर को इमरजेंसी यूज की मंजूरी मिलने के बाद अब मेडिकल जर्नल द लैंसेट में पब्लिश हुई एफिकेसी एनालिसिस में Covaxin को कोरोना वायरस डिजीज के खिलाफ 77.8 प्रतिशत प्रभावी बताया गया है.

COVID-19 के खिलाफ भारत बायोटेक की कोरोना वैक्सीन Covaxin के क्लीनिकल ट्रायल के तीसरे फेज में वैक्सीन की सेफ्टी और एफिकेसी एनालिसिस का डेटा समीक्षा के बाद लैंसेट में पब्लिश किया गया है.

लैंसेट पीयर-रिव्यू में कहा गया कि ये एनालिसिस लक्षण वाले 130 कोविड मामलों पर आधारित है. वैक्सीन ग्रुप में 24 और प्लसीबो ग्रुप में 106 लोग कोरोना पॉजिटिव पाए गए.

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Covaxin की एफिकेसी से जुड़ी मुख्य बातें:

  • Covaxin लक्षण वाले COVID-19 के खिलाफ 77.8% प्रभावी रही

  • गंभीर COVID-19 के खिलाफ Covaxin को 93.4% प्रभावी पाया गया

  • बिना लक्षण वाले COVID-19 के खिलाफ वैक्सीन से 63.6% सुरक्षा देखी गई

  • डेल्टा वेरिएंट के खिलाफ 65.2% सुरक्षा पाई गई

  • SARS-CoV-2 वायरस के दूसरे वेरिएंट के खिलाफ 70.8% सुरक्षा देखी गई

  • सेफ्टी एनालिसिस से पता चलता है कि रिपोर्ट की गई प्रतिकूल घटनाएं प्लेसीबो के समान थीं, 12% में कॉमन साइड इफेक्ट देखे गए और 0.5% से कम में गंभीर प्रतिकूल घटनाएं रहीं

  • ट्रायल 18 वर्ष से अधिक आयु के 24,419 प्रतिभागियों पर किया गया

  • ये तीसरे फेज का ट्रायल एक डबल-ब्लाइंड प्लेसीबो टेस्ट था, जिसका मतलब है कि न तो शोधकर्ता, न ही प्रतिभागियों को पहले से पता था कि कौन प्लेसीबो प्राप्त कर रहा और किसे वैक्सीन दी गई.

कैसे तैयार हुई है कोवैक्सीन

कोवैक्सीन (Covaxin) इनएक्टिवेटेड वैक्सीन है. इनएक्टिवेटेड वैक्सीन तैयार करने के लिए बीमारी करने वाले वायरस या बैक्टीरिया को केमिकल या फिजिकल प्रोसेस से इनएक्टिव (मारा) किया जाता है.

बीमारी करने वाले वायरस को इनएक्टिव किया जाता है

(फोटो: भारत बायोटेक)
इनएक्टिव किए जाने से उस पैथोजन यानी रोगाणु (वायरस या बैक्टीरिया) की अपनी संख्या बढ़ाने की क्षमता खत्म हो जाती है, यानी वो बीमार नहीं कर सकता लेकिन पैथोजन बरकरार रहता है ताकि इम्यून सिस्टम उसकी पहचान कर सके.
  • Covaxin तैयार करने के लिए भारत बायोटेक ने कोरोना वायरस का इस्तेमाल किया है, जिसे पुणे स्थित नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी (NIV) ने आइसोलेट किया था.

  • एक केमिकल के जरिए इन्हें निष्क्रिय किया गया यानी ये वायरस रेप्लिकेट (अपनी संख्या बढ़ाना) नहीं हो सकते, लेकिन स्पाइक सहित इनकी प्रोटीन बनी रहती है.

  • निष्क्रिय कोरोना वायरस को एक एल्यूमीनियम कंपाउड के साथ मिलाया गया, जिसे एक सहायक (adjuvant) कहा जाता है. ये वैक्सीन के प्रति प्रतिक्रिया को बढ़ावा देने के लिए इम्यून सिस्टम को और मजबूत करता है. एक तरह से ये वैक्सीन को बेहतर तरीके से काम करने में मदद करता है.

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