ADVERTISEMENTREMOVE AD

क्या लिवर को नुकसान पहुंचा रही है गिलोय, इसे लेकर विवाद क्यों है?

Published
Health News
6 min read
story-hero-img
i
छोटा
मध्यम
बड़ा
Hindi Female

हमने पिछले डेढ़ साल के दौरान एक ऐसे वायरस को मात देने के तरीके खोजने की कोशिश में गुजारे हैं, जिसके बारे में हम कुछ भी नहीं जानते थे.

हमने निश्चित रूप से लंबा सफर तय किया है– सबसे बड़ा सुबूत है, COVID-19 वैक्सीन, लेकिन वायरस से हमेशा एक कदम आगे रहने की दौड़ के बीच हमारे कुछ निशाने चूके भी हैं, कामयाबियों के बीच कई निराशाएं भी हमारे हिस्से आई हैं.

रेमडेसिविर (Remdesivir), आइवरमेक्टिन (Ivermectin) और हाइड्रोक्सीक्लोरोक्विन (Hydroxychloroquine) जैसी दवाओं को प्रयोग के तौर पर आजमाने को लेकर जोरदार उत्साह था, जो बाद में बेअसर साबित हुईं.

इस दौरान कुछ अजीब चीजें भी सामने आईं, हालांकि ये दिलचस्प थीं. इनमें गाय का गोबर (cow dung) और कॉपर मास्क ( copper masks) जैसे नुस्खे शामिल थे.

एक नुस्खा जो महामारी शुरू होने के बाद से काफी लोकप्रिय है, वह है गिलोय (Giloy).

ADVERTISEMENTREMOVE AD

लेकिन बड़े पैमाने पर इस्तेमाल किया जाने वाला यह हर्बल इम्यूनिटी बूस्टर लिवर को गंभीर नुकसान पहुंचाने की आशंकाओं को लेकर हाल ही में निशाने पर आ गया है.

गिलोय को लेकर क्या विवाद है? फिट इसे तरतीबवार समझा रहा है.

गिलोय क्या है?

टिनोस्पोरा कॉर्डिफोलिया (Tinospora cordifolia), जिसे आम बोलचाल की भाषा में गिलोय या गुडुची कहा जाता है, एक जड़ी-बूटी है जिसका सदियों से बुखार, डायबिटीज, अस्थमा, एंग्जाइटी और स्ट्रेस जैसी तमाम बीमारियों के इलाज और यहां तक सामान्य स्वास्थ्य के लिए आयुर्वेद में इस्तेमाल किया जाता रहा है.

इसका सबसे खास गुण इम्यूनिटी बूस्टिंग है.

आमतौर पर इसके औषधीय गुणों के चलते पौधे के तने से रस निकाला जाता है.

गिलोय इम्यूनिटी बूस्टर और अच्छी सेहत के सप्लीमेंट के तौर पर भी इस्तेमाल किया जाने वाला एक आम कंपोनेंट है.

0

गिलोय को लेकर कैसे शुरू हुआ यह विवाद

इसकी शुरुआत जर्नल ऑफ क्लीनिकल एंड एक्सपेरिमेंटल हेपेटोलॉजी में छपे एक अध्ययन से हुई.

यह अध्ययन मुंबई के जसलोक अस्पताल के शोधकर्ताओं ने किया और उन्होंने लिवर को गंभीर नुकसान के साथ अस्पताल में भर्ती हुए 6 मरीजों की हालत के लिए गिलोय को जिम्मेदार बताया.

आयुष मंत्रालय गिलोय के पक्ष में है

केंद्रीय आयुर्वेद, योग, प्राकृतिक चिकित्सा, यूनानी, सिद्ध, सोवा-रिग्पा और होम्योपैथी (AYUSH आयुष) मंत्रालय ने बुधवार, 7 जुलाई 2021 को एक बयान जारी कर अध्ययन के नतीजों का खंडन किया और इसे ‘पूरी तरह भ्रामक’ बताया.

बयान में आगे कहा गया कि तमाम बीमारियों के इलाज में गिलोय के असर का व्यापक अध्ययन किया गया है और वैज्ञानिक रूप से साबित किया गया है.

आयुष मंत्रालय ने बयान के एक दिन बाद बृहस्पतिवार 8 जुलाई, 2021 को एक ट्वीट के साथ दोहराया कि इस बूटी ने ‘सेहत को लेकर समग्र रूप से शानदार काम’ किया है.

लेकिन इसमें यह भी कहा है कि इसे डाइट में शामिल करने से पहले मेडिकल प्रेक्टिशनर की सलाह लेनी चाहिए.

गिलोय नियमित रूप से लिया जाता है, तो यह समग्र स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं के लिए जादुई असर कर सकता है. फूड एंड ड्रग एडमिस्ट्रेशन (FDA) ने भी इलाज में दवा के रूप में इसके इस्तेमाल को मंजूरी दी है.

गुडुची को डाइट में शामिल करने से पहले किसी मेडिकल प्रेक्टिशनर से सलाह करने की सलाह दी जाती है.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

आयुष मंत्रालय का कहना है कि अध्ययन में खामियां हैं

आयुष मंत्रालय ने अपने बयान में कुछ ‘खामियों’ और आयामों का जिक्र किया है, जिन पर अध्ययन में ध्यान दिया जाना चाहिए था,

  • खुराक: यह साफ नहीं है कि मरीजों ने कितनी मात्रा में और कितने समय तक सेवन किया.

  • क्या मरीजों ने जड़ी-बूटी को दूसरी दवाओं के साथ लिया था.

  • मरीजों की मेडिकल हिस्ट्री क्या है.

वे यह भी दावा करते हैं कि अध्ययनकर्ताओं ने साबित नहीं किया है कि मरीजों द्वारा ली गई जड़ी-बूटी असल में गिलोय थी, या उन्होंने गलती से जड़ी-बूटी को दूसरी चीजों के साथ मिला दिया, जो कि हो सकता है कि नुकसानदायक रही हों.

2018 में किए गए एक अध्ययन में पाया गया कि करीब 35 प्रतिशत वेबसाइट्स टिनोस्पोरा कॉर्डिफोलिया (Tinospora cordifolia या गिलोय) और टिनोस्पोरा क्रिस्पा (Tinospora crispa) के बीच सटीक अंतर करने में नाकाम रहीं, जो लिवर को नुकसान पहुंचाने वाली (हेपेटोटॉक्सिसिटी) गिलोय से मिलती-जुलती जड़ी-बूटी है.
ADVERTISEMENTREMOVE AD

कोच्चि के एक हेपेटोलॉजिस्ट डॉ. सायरियक एब्बी फिलिप्स फिट से बातचीत में कहते हैं, “यह अध्ययन सिर्फ छह मरीजों की एक श्रृंखला है, जिनकी जसलोक अस्पताल में पहचान की गई है, लेकिन यह इकलौता अध्ययन नहीं है. गिलोय की वजह से लिवर को नुकसान पहुंचने का मामला पहले भी पाया गया है.”

वह बीएमसी कंप्लीमेंटरी मेडिसिन एंड थेरेपीज में छपे एक अध्ययन का हवाला देते हैं, जिसमें 68 वर्षीय महिला की केस स्टडी बताई गई है. महिला को गिलोय लेने के दौरान एक्यूट हेपेटोसेल्युलर इंजरी हो गई थी, और फिर इसे लेना बंद करने के एक महीने बाद उसकी हालत में सुधार हुआ.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

क्या गिलोय से लिवर को नुकसान पहुंच सकता है?

आयुर्वेदिक डॉक्टर एक तरफ इस बात पर कायम हैं कि यह जड़ी-बूटी नुकसानदायक नहीं है. हालांकि वे यह भी चेतावनी देते हैं कि जड़ी-बूटी को किसी विशेषज्ञ की देखरेख में ही लेना चाहिए.

“अल्कलॉइड (जैसे गिलोय) और एक्टिव कॉस्टीट्यूएंट्स वाली दवाओं का सेवन करते समय जरूरी है कि उन्हें सही गुणवत्ता से तैयार किया गया हो और इन्हें विशेषज्ञ के मार्गदर्शन के बिना नहीं लिया जाना चाहिए क्योंकि किसी आम इंसान को पता नहीं चल सकता है कि यह असली जड़ी बूटी है या नहीं.”
डॉ. स्मिता नरम, आयुर्वेदिक फिजिशियन, को-फाउंडर, आयुशक्ति

डॉ. नरम चेतावनी देते हुए कहती हैं, “यह ध्यान रखना जरूरी है कि गुडुची को आसपास की किसी भी जगह या अनजान जगह से नहीं लिया जाना चाहिए. गिलोय जड़ी-बूटियों की कई किस्में होती हैं, जिन्हें अलग-अलग तरीकों से तैयार और इस्तेमाल करने की जरूरत होती है.”

ADVERTISEMENTREMOVE AD

गिलोय की रासायनिक संरचना के बारे में बात करते हुए, डॉ. फिलिप्स कहते हैं, “गिलोय में ढेर सारे केमिकल होते हैं– अल्कलॉइड, ग्लाइकोसाइड, टेरपेनोइड्स और बहुत से केमिकल.”

पौधों में मौजूद एल्कलॉइड और ग्लाइकोसाइड का इस्तेमाल जहां कई तरह की दवाएं बनाने के लिए किया जाता है, वहीं इनका इस्तेमाल जहर बनाने के लिए भी किया जाता है.

वह कहते हैं, “इसलिए इन केमिकल के अनुपात से हम जान सकते हैं कि अंतिम उत्पाद कम या ज्यादा मात्रा के आधार पर असल में लिवर को नुकसान की वजह बन सकते हैं.”

ADVERTISEMENTREMOVE AD

गिलोय का इम्यूनिटी बूस्टर गुण

“गिलोय में किसी व्यक्ति की इम्यूनिटी को ठीक करने की क्षमता होती है. लेकिन हो सकता है कि इम्यूनिटी को बढ़ावा देना किसी के लिए हमेशा फायदेमंद न हो.”
डॉ. सायरियक एब्बी फिलिप्स, हेपेटोलॉजिस्ट

डॉ. फिलिप्स एक अध्ययन की ओर ध्यान दिलाते हैं, जो बताता है कि गिलोय से IgG बढ़ाने में मदद मिलती है. IgG खून में एक तरह का इम्युनोग्लोबुलिन है.

यह खासकर उन लोगों के लिए खतरनाक हो सकती है, जिन्हें ऑटोइम्यून बीमारी है.

डॉ. फिलिप्स कहते हैं, “अब, दिलचस्प बात यह है कि ऑटोइम्यून बीमारियों वाले मरीज में हम जो खास चीज देखते हैं, वह है IgG में बढ़ोतरी. ब्लड में IgG में बढ़ोतरी ऑटोइम्यून हेपेटाइटिस से जुड़ी है, जैसा कि जसलोक के मामले में अध्ययनकर्ताओं ने जिक्र किया है.”

ADVERTISEMENTREMOVE AD

निष्कर्ष

एक तरफ जहां ऐसे अध्ययन हैं, जो गिलोय के इम्यूनिटी बूस्टर गुणों के बारे में बताते हैं, शोध और केस स्टडी एक्यूट लिवर डैमेज, पीलिया और हेपेटाइटिस के साथ संबंध की ओर भी इशारा करते हैं.

जड़ी-बूटी से जुड़े फायदों और खतरों को पूरी तरह से स्थापित करने के लिए अभी और शोध की जरूरत है.

यहां याद रखना जरूरी है कि आयुर्वेदिक या प्राकृतिक चिकित्सा के मामले में भी खुद अपना डॉक्टर बनना खतरनाक हो सकता है.

दवा के तौर पर इस्तेमाल की जाने वाली प्राकृतिक जड़ी-बूटियों में भी केमिकल होते हैं और गलत तरीके से लेने पर या दूसरी दवाओं के साथ प्रतिक्रिया करने पर इसके साइड इफेक्ट हो सकते हैं.

उदाहरण के लिए, चूंकि गिलोय में ब्लड शुगर लेवल के स्तर को कम करने की क्षमता होती है, इसलिए इसे ब्लड ग्लूकोज कम करने वाली दवा के साथ लेते समय सावधानी बरतने की सलाह दी जाती है.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

पहले से किसी बीमारी की मौजूदगी या कोई शारीरिक दशा भी तय कर सकती है कि केमिकल आपके शरीर में कैसे प्रतिक्रिया करेगा और क्या असर डाल सकता है.

इन सभी वजहों से अपने जड़ी-बूटी को हासिल करने के माध्यम की पड़ताल करना और लाइसेंस प्राप्त प्रोफेशनल द्वारा तय मात्रा में ही दवा लेना बहुत जरूरी है.

(ये लेख आपकी सामान्य जानकारी के लिए है, यहां किसी तरह के इलाज का दावा नहीं किया जा रहा है, सेहत से जुड़ी किसी भी समस्या के लिए फिट आपको डॉक्टर से संपर्क करने की सलाह देता है.)

(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
अधिक पढ़ें
×
×