हमारी छींक, खांसी और यहां तक कि बोलने के दौरान बाहर निकले ड्रॉपलेट्स कितनी दूर तक जा सकते हैं, इसे लेकर कोरोना महामारी की शुरुआत के बाद बीते महीनों कई स्टडीज हुई हैं.
अब हालिया रिसर्च में कहा गया है कि खांसी होने पर कफ की एक बूंद हवा में 2 मीटर प्रति सेकंड की रफ्तार से 6.6 मीटर तक जा सकती है और हवा सूखी होने पर इससे भी ज्यादा दूरी तक जा सकती है.
सिंगापुर के रिसर्चर्स ने वायरल ट्रांसमिशन को समझने के लिए द्रव भौतिकी के महत्वपूर्ण पहलुओं को शामिल किया. ये पेपर 'फिजिक्स ऑफ फ्लुइड्स' नाम के जर्नल में आया है.
इसलिए मास्क और सोशल डिस्टेन्सिंग है जरूरी
अध्ययन के लेखक फोंग येव लियोंग ने कहा,
"मास्क पहनने के अलावा, हमने सोशल डिस्टेन्सिंग को प्रभावी पाया है क्योंकि खांसी के दौरान व्यक्ति के मुंह से निकली छोटी बूंद का असर कम से कम एक मीटर की दूरी पर खड़े व्यक्ति पर कम होता है."
एक बार की खांसी में कई आकार के ड्रॉपलेट बड़ी मात्रा में निकलते हैं.
वैज्ञानिकों ने पाया कि गुरुत्वाकर्षण बल के कारण बड़ी बूंदें जल्द ही जमीन पर बैठ जाती हैं, लेकिन ये भी पाया कि खांसने पर बिना हवा के भी बूंदें एक मीटर तक जा सकती हैं. मध्यम आकार की बूंदों से छोटी बूंदें बनती हैं, जो हल्की होने के नाते आसानी से और आगे जा सकती हैं.
वहीं इन बेहद छोटी बूंदों में वायरल लोड बढ़ सकता है, जिससे वायरस के फैलने का खतरा बढ़ जाता है.
वहीं इन ड्रॉपलेट से बने एरोसॉल सांस के जरिए आसानी से फेफड़ों तक पहुंच सकते हैं.
वैज्ञानिकों की ये खोज हवा की रफ्तार, नमी और तापमान जैसे पर्यावरणीय कारकों पर निर्भर करती है.
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