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हवा में जहर घोल रहा जीवाश्म ईंधन का दहन, 2018 में हुई 80 लाख मौतें

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Health News
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जीवाश्म ईंधन को जलाने से होने वाले वायु प्रदूषण से हर साल 80 लाख से ज्यादा मौतें होती हैं. हार्वर्ड यूनिवर्सिटी, यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन और दूसरी यूनिवर्सिटीज के रिसर्चर्स की ओर से की गई एक स्टडी में ये बात सामने आई है.

जीवाश्म ईंधन, विशेष रूप से कोयला, पेट्रोल और डीजल का जलना PM 2.5 का एक प्रमुख स्रोत है, जो वैश्विक मृत्यु दर और बीमारी में योगदान करता है.
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इससे पहले भी कई रिसर्च में वायु प्रदूषण से सेहत और मृत्यु दर पर पड़ने वाले प्रभाव की स्टडी हुई हैं. वहीं एनवायरमेंटल रिसर्च जर्नल में पब्लिश की गई इस स्टडी में जीवाश्म ईंधन के दहन से होने वाले वायु प्रदूषण पर फोकस किया गया और पाया कि जीवाश्म ईंधन से होने वाला प्रदूषण दुनिया भर में 5 में से 1 मौत के लिए जिम्मेदार है.

स्टडी में अनुमान लगाया गया है कि साल 2012 में दुनिया भर में 1 करोड़ 2 लाख प्रीमैच्योर मौतें जीवाश्म ईंधन के दहन से उत्सर्जित PM 2.5 से संबंधित रहीं.

चीन (39 लाख मौतें), भारत (25 लाख मौतें) और पूर्वी अमेरिका के कुछ हिस्से, यूरोप और दक्षिण पूर्व एशिया इसका सबसे ज्यादा असर पाया गया.

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शोधकर्ताओं ने पाया कि वैश्विक स्तर पर जीवाश्म ईंधन से उत्सर्जित पर्टिकुलेट मैटर के एक्सपोजर का साल 2012 में कुल मौतों में 21.5 प्रतिशत का योगदान था, वहीं चीन में वायु गुणवत्ता के लिए किए गए सख्त उपायों के बाद 2018 में ये गिरकर 18% तक हो गया.

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इस स्टडी में जीवाश्म ईंधन प्रदूषण से होने वाली मौतों की सबसे ज्यादा दर चीन और भारत में पाई गई, लेकिन हर देश जीवाश्म ईंधन के दहन से होने वाले वायु प्रदूषण के प्रभावों से जूझ रहा है.

साल 2012 के आंकड़ों के मुताबिक भारत में 30.7% मौतों का कारण जीवाश्म ईंधन से होने वाले वायु प्रदूषण को माना जा सकता है.

भारत में प्रदूषण के स्रोतों पर नियंत्रण लगाया गया है, लेकिन दिल्ली जैसी घनी आबादी वाले शहरों में वायु गुणवत्ता में सुधार के प्रमाण अभी तक नहीं मिले हैं.

धूल या जंगल की आग जैसे PM 2.5 के स्रोतों की तुलना में जीवाश्म ईंधन के दहन को कंट्रोल किया जा सकता है.

ऊर्जा के स्वच्छ स्रोतों के इस्तेमाल से वायु प्रदूषण और इससे जुड़ी मौतों की संख्या घटाने में काफी मदद मिलेगी, इसका सबूत चीन के उपायों से मिल चुका है.

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