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FAQ: क्या ग्रीन पटाखों का इस्तेमाल करना सुरक्षित है?

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हम पहले से ही एक वैश्विक महामारी से जूझ रहे हैं और वायु प्रदूषण का खतरा इस साल फिर से हमारे दरवाजे पर दस्तक दे रहा है. सर्दियों में त्योहारी सीजन के साथ बिगड़ती हवा का मुद्दा जोर-शोर से उठाया जाता रहा है.

दिवाली की तैयारी के साथ आतिशबाजी नहीं करने और हवा व पर्यावरण को और नुकसान से बचाने की अपीलें की जा रही हैं. अक्सर ‘ग्रीन क्रैकर्स’ (हरित पटाखे) को एक उपाय बताया जाता है— कम से कम नुकसान के साथ दिवाली मनाने के लिए.

अक्टूबर 2018 में, सुप्रीम कोर्ट ने पटाखों की बिक्री पर पूरी तरह पाबंदी लगाने से इनकार करते हुए “सुरक्षित और ग्रीन” पटाखों की बिक्री और इस्तेमाल की छूट दी थी.

ग्रीन पटाखे क्या हैं और क्या इनका इस्तेमाल वाकई सुरक्षित है?

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ग्रीन पटाखे क्या हैं?

2018 से सुप्रीम कोर्ट के आदेश में बताई गई ग्रीन पटाखे की परिभाषा यह है कि राख के इस्तेमाल से बचा जाए ताकि 15-20% तक पर्टिकुलेट मैटर कम करने में मदद मिल सके, कम धुआं हो और 30-35% प्रदूषक कम हों. इससे नाइट्रोजन आक्साइड (NOx) और सल्फर डाईऑक्साइड (SO2) में काफी कमी होती है और सीसा, पारा, लीथियम, आर्सेनिक और एंटीमनी जैसे कोई भी प्रतिबंधित केमिकल न इस्तेमाल हों.

पटाखों से जो रोशनी होती है, वो उनमें इस्तेमाल ऑक्सीडाइजर, कलरिंग एजेंट और फ्यूल से होती है, जो बेहद जहरीले केमिकल होते हैं.

क्या ग्रीन पटाखों से हवा प्रदूषित नहीं होती?

ये घटे हुए प्रदूषक फिर भी प्रदूषक ही हैं. अगर हवा की गुणवत्ता दूसरे कारकों से पहले से ही खराब और खतरनाक है. ऐसे में क्या ये “कम प्रदूषक” प्रदूषण के स्तर को नहीं बढ़ाएंगे? हम पहले से ही ऐसे बिंदु पर हैं जहां हवा की गुणवत्ता खराब हो चुकी है. प्रदूषकों की कितनी भी अधिक मात्रा को रिलीज करना “सुरक्षित” नहीं होगा.

भले ही पटाखे सिर्फ एक दिन और दो घंटे के लिए जलाए जाते हों, लेकिन ऐसा लाखों लोगों द्वारा किया जाता है और इससे अभी भी हवा की क्वालिटी में तेज गिरावट की आशंका है. हां, इससे कुछ हद तक दूसरे पटाखों के मुकाबले कम प्रदूषण होगा, लेकिन क्या यह काफी है?

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क्या ग्रीन पटाखों से हमारी सेहत को कोई नुकसान होता है?

अपोलो अस्पताल के सीनियर पल्मोनोलॉजिस्ट डॉ राजेश चावला फिट को बताते हैं, “हो सकता है कि प्रदूषक कम हों लेकिन धुआं और धूल फिर भी होगी. आप इसे कम नहीं कर सकते हैं और पटाखे का समग्र प्रतिकूल असर भी रहेगा. कोई भी पटाखा जो धुआं और धूल पैदा करता है, लोगों की सेहत पर असर डालेगा.”

किसी भी तरह के वायु प्रदूषकों की मात्रा में अचानक बढ़ोतरी से सेहत की समस्याएं तेजी से बढ़ सकती हैं. यह बच्चों, बुजुर्गों और सांस की समस्याओं वाले लोगों को बड़े पैमाने पर प्रभावित करता है. इसके चलते बच्चे समस्याग्रस्त फेफड़ों के साथ जन्म लेते हैं.

और बाकी आबादी के लिए वायु प्रदूषण से कैंसर, डायबिटीज और सांस व हार्ट संबंधी बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है.

दिवाली, क्रिसमस और नए साल जैसे उत्सव के दिनों को छोड़कर, साल भर और शादियों जैसे मौकों पर पटाखों को जलाने पर कोई रोक नहीं है.

“सुप्रीम कोर्ट पटाखों पर ही क्यों नहीं पाबंदी लगा देती? हम बहुत सारी समस्याओं से जूझ रहे हैं और इतने सारे लोगों को इस वजह से परेशान होता देखते हैं. जश्न मनाने के दूसरे तरीके भी हैं.”
डॉ राजेश चावला

हम ऐसे बिंदु पर हैं जहां हम वायु प्रदूषण का और बढ़ना बर्दाश्त नहीं कर सकते. इसलिए, अगर हम प्रदूषण को बढ़ाने वाले इस एक कारक को भी नियंत्रित कर सकते हैं, तो हम यह पूरे असरदार ढंग से क्यों नहीं कर रहे हैं?

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भारत में राज्य सरकारें इस साल पटाखों के मामले में अपने नियम बना रही हैं. दिल्ली में कितनी छूट है?

राजस्थान में कोविड-19 के मद्देनजर त्योहारी सीजन के दौरान पटाखों की बिक्री और इनको चलाने पर पाबंदी लगाई गई है.

पीटीआई की रिपोर्ट के अनुसार राजस्थान के मुख्यमंत्री ने राज्य में पटाखों की बिक्री और पटाखे चलाने पर सख्त कार्रवाई के निर्देश भी दिए हैं. उन्होंने कहा है कि ऐसे हालात में लोगों को दिवाली पर आतिशबाजी से बचना चाहिए.

दिल्ली सरकार ने 5 अक्टूबर को सूचना दी कि 7 नवंबर से 30 नवंबर तक सभी पटाखों पर पाबंदी लगाने की सूचना दी, जिसमें ग्रीन पटाखे भी शामिल हैं. दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल ने कहा कि बढ़ते पॉल्यूशन और कोरोना के मामलों में बढ़ोतरी के बीच दिल्ली में पटाखों पर पाबंदी का फैसला लिया गया.

ओडिशा में 10 नवंबर से 30 नवंबर तक पटाखों पर पाबंदी है, पश्चिम बंगाल में इस बार काली पूजा, दिवाली और छठ के दौरान पटाखे बेचने और जलाने पर पाबंदी लगाई गई.

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वहीं नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने 5 अक्टूबर को पटाखों पर रोक वाली याचिका पर 9 नवंबर तक के लिए फैसला सुरक्षित रख लिया है. एनजीटी ने 23 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में पटाखों पर प्रतिबंध लगाने के अपने फैसले को प्रदूषण के संकट और कोविड-19 महामारी की दोहरी मार के बीच सुरक्षित रखा है.

एनजीटी ने 4 अक्टूबर को 23 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के ऐसे 122 शहरों की ओर इशारा करते हुए, जिनमें लगातार खराब वायु गुणवत्ता रही है, कहा था कि इस अवधि के दौरान पटाखों के उपयोग पर प्रतिबंध लगाने की दिशा पर विचार करना पड़ सकता है.

इन शहरों में दिल्ली, वाराणसी, भोपाल, कोलकाता, नोएडा, मुजफ्फरपुर, मुंबई, जम्मू, लुधियाना, पटियाला, गाजियाबाद, वाराणसी, कोलकाता, पटना, गया, चंडीगढ़ शामिल हैं.

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