हाइपरटेंशन या हाई ब्लड प्रेशर को, लंबे समय से अधेड़ उम्र के लोगों की बीमारी समझा जाता रहा है. आम सोच हमें यकीन दिलाती है कि सिर्फ बड़े और बूढ़े लोग ही हाई ब्लड प्रेशर का शिकार हो सकते हैं, लेकिन आंकड़ों को गहराई से देखने पर पता चलता है कि दुनिया भर में बच्चों में भी इसका जोखिम है.
जसलोक हॉस्पिटल एंड रिसर्च सेंटर में बाल रोग विभाग के डायरेक्टर डॉ फजल नबी फिट को बताते हैं, “हाइपरटेंशन किसी भी उम्र में हो सकता है. यह बच्चों में दुर्लभ नहीं है, लेकिन अक्सर इस पर किसी का ध्यान नहीं जाता है. अध्ययन बताते हैं कि भारतीय बच्चों में इसकी मौजूदगी 11.7% तक हो सकती है.”
ऐसा मानना कि बच्चों में हाइपरटेंशन अक्सर दुर्लभ होता है, इसका मतलब यह है कि इसका समय पर पता नहीं लगाया जाता है. फिट ने यह समझने के लिए डॉक्टरों से बात की है कि यह कितनी चिंताजनक स्थिति हो सकती है और हम इसकी रोकथाम कैसे कर सकते हैं.
हाई ब्लड प्रेशर/ हाइपरटेंशन क्या है?
हाई ब्लड प्रेशर या हाइपरटेंशन तब होता है, जब ब्लड वेसेल वाल (रक्तवाहिका की दीवार) पर ब्लड का दबाव बहुत ज्यादा होता है. इससे समस्या पैदा होती है क्योंकि हार्ट ज्यादा जोर से पंप कर रहा होता है और वाहिकाएं बहुत दबाव में होती हैं. यह हार्ट, रक्त वाहिकाओं और साथ ही दूसरे अंगों को नुकसान पहुंचा सकता है.
लगभग 20 प्रतिशत भारतीयों को हाई ब्लड प्रेशर है और कार्डियोवस्कुलर (दिल से जुड़ी) बीमारियों में मौत का प्रमुख कारण है– जो कि देश में मौत का प्रमुख कारण है.
बच्चों में हाइपरटेंशन का जल्द पता लगना कितना जरूरी है?
फोर्टिस हॉस्पिटल, शालीमार बाग में पीडियाट्रिक कार्डियोलॉजी के प्रिंसिपल कंसल्टेंट डॉ सुशील आजाद बताते हैं कि बचपन का ब्लड प्रेशर, चाहे वह नॉर्मल हो या हाई, बड़े होने पर ब्लड प्रेशर की भविष्यवाणी करता है. इसलिए, किशोरावस्था में बरकरार हाई ब्लड प्रेशर बड़े होने पर हार्ट संबंधी गंभीर घटनाओं का संकेत दे सकता है.
डॉ. नबी सहमति जताते हैं, “हाइपरटेंशन का जल्द पता लगाना महत्वपूर्ण है क्योंकि लंबे समय तक हाई ब्लड प्रेशर कई अंगों– दिल, दिमाग, किडनी और आंखों को नुकसान पहुंचा सकता है. ज्यादातर मामलों में, इसके कोई लक्षण नहीं होते हैं, लेकिन कुछ मामलों में इसमें सिरदर्द, धुंधला दिखना, चक्कर आना या दिल का तेज धड़कना हो सकता है.”
बच्चों में हाई ब्लड प्रेशर का कैसे पता लगाया जा सकता है?
डॉ सुशील आजाद बताते हैं कि बड़ों की तरह बच्चों में भी हाइपरटेंशन का पता उम्र के हिसाब से ब्लड प्रेशर कफ्स का इस्तेमाल करके किया जाता है और बच्चे की उम्र, जेंडर और लंबाई के आधार पर मानक ब्लड प्रेशर चार्ट उपलब्ध होते हैं.
ब्लड प्रेशर कफ्स कैसे काम करते हैं? डॉ नबी बताते हैं, “जब बीपी कफ हाथ या पैर पर लगने के बाद फुलता है (छोटे शिशुओं में), यह लार्ज आर्टरी (बड़ी धमनी) को कसता है, जिससे खून का बहाव एक पल के लिए थम जाता है. हवा धीरे-धीरे उससे बाहर निकलती है और खून फिर से आर्टरी (धमनी) में बहना शुरू हो जाता है, तो ब्लड प्रेशर को मापा जाता है. दो संख्याएं हैं जो बीपी तय करने में मदद करती हैं- सिस्टोलिक - जब हार्ट पंप करता है और डायस्टोलिक जब हार्ट इस बीच आराम करता है.”
हाई ब्लड प्रेशर के लिए बच्चों की जांच कब-कब करानी चाहिए?
डॉक्टरों के अनुसार, बेहतर होगा कि तीन साल से ज्यादा उम्र के सभी बच्चों की सालाना बीपी जांच कराई जाए. अगर बच्चा हाई-रिस्क में है, उदाहरण के लिए, अगर वह डायबिटीज, क्रॉनिक किडनी डिजीज या मोटापे का शिकार है, तो हर नियमित विजिट पर बेहतर हो कि जांच कराई जाए.
पैदाइश में समस्या होने या जन्म लेने के बाद की अवधि में अस्पताल में ज्यादा समय रहने वाले बच्चों को तीन साल से पहले स्क्रीनिंग की जरूरत हो सकती है.
बच्चों में हाइपरटेंशन का पता लगाना क्यों ज्यादा मुश्किल है?
डॉ नबी बताते हैं कि बच्चों के ब्लड प्रेशर की जांच करना मुश्किल हो सकता है क्योंकि अगर वे घबरा जाते हैं तो इसमें उतार-चढ़ाव हो सकता है.
जो बच्चे डॉक्टर के क्लीनिक में बेचैन हो जाते हैं, उनके ब्लड प्रेशर को कहीं और मापा जा सकता है, जैसे घर पर या स्कूल की नर्स द्वारा. कई बार, बच्चे को लगातार निगरानी के लिए पूरे दिन और रात कफ पहनना पड़ता है.
वे कहते हैं, “तो इस तरह अलग विजिट में तीन बीपी का औसत एक बच्चे में हाई ब्लड प्रेशर का पता लगाने में मदद कर सकता है.”
बच्चों में हाई ब्लड प्रेशर की क्या वजहें होती हैं?
डॉ सुशील आजाद बताते हैं कि अगर कोई दूसरा जुड़ा हुआ कारण नहीं है तो हाई ब्लड प्रेशर प्राइमरी/ एसेंशियल में से कोई भी हो सकता है; या जब किडनी की बीमारी, हृदय रोग, फेफड़ों की समस्या, मोटापा, अंतःस्रावी बीमारी जैसी दूसरी वजहें होती हैं, तो ये सेकेंडरी हो सकता है.
वह कहते हैं. “मोटापा, शारीरिक गतिविधि में कमी, हाई ब्लड प्रेशर की फैमिली हिस्ट्री, नींद की बीमारी बच्चे को हाई ब्लड प्रेशर के लिए ज्यादा प्रभावित होने वाला बनाते हैं.”
बच्चों में हाइपर टेंशन का इलाज कैसे किया जाता है?
डॉ फजल नबी का कहना है कि इलाज इस बात पर निर्भर करेगा कि मामला एसेंशियल हाइपरटेंशन का है या सेकेंडरी हाइपरटेंशन का है. अगर समस्या दूसरे जुड़े हुए कारण से होती है, तो ब्लडप्रेशर को सामान्य करने के लिए उस कारण को दुरुस्त करने की जरूरत होती है
डॉ आजाद कहते हैं कि प्रबंधन का शुरुआती इलाज बिना दवा के उपायों का इस्तेमाल करना जैसे कि मोटापे के मरीज के वजन में कमी लाना, नियमित व्यायाम (हफ्ते में पांच बार कम से कम 30 से 50 मिनट का मध्यम से कठोर व्यायाम), डाइट में बदलाव, तनाव में कमी, डिस्लिपिडेमिया (ब्लड में कोलेस्ट्रोल या फैट का असामान्य रूप से बढ़ जाना) को रोकना, स्मोकिंग, शराब, कैफीन या बच्चों के मामले में एनर्जी ड्रिंक से परहेज करना. अगर यह छह महीने तक काम नहीं करता है और बीपी ऊंचा बना रहता है, तो हमें दवाएं शुरू कर देना चाहिए.
बच्चों को हाई ब्लड प्रेशर से कैसे बचाया जा सकता है?
डॉ आजाद कहते हैं कि हेल्दी लाइफ स्टाइल के तरीकों को बढ़ावा देने और हर तरह से सेहत में सुधार के लिए उचित डाइट और गतिविधियां अपनाने के लिए परिवारों को शिक्षित करने से हाइपरटेंशन का रिस्क कम हो सकता है.
डॉ नबी बचाव के लिए कुछ बुनियादी सुझाव देते हैं:
फल, सब्जियों और लो-फैट डेयरी उत्पाद के साथ हेल्डी डाइट लें
नमक का सेवन सीमित करें
पैकेज्ड फूड और सोडा, चाय, कॉफी, एनर्जी ड्रिंक ना लें
शराब और स्मोकिंग से बचें
60 मिनट नियमित व्यायाम करें
अगर लाइफ स्टाइल में बदलाव काम नहीं करता है, तो एंटी-हाइपरटेंशन दवाएं शुरू की जा सकती हैं, जो अल्पकालिक यानी शॉर्ट-टर्म और दीर्घकालिक यानी लॉन्ग-टर्म इलाज के लिए सुरक्षित साबित हुई हैं.
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