ADVERTISEMENTREMOVE AD

मरीजों को कौन लूट रहा है, अस्पताल या डीलर?

Published
story-hero-img
i
छोटा
मध्यम
बड़ा

क्या आप जानते थे कि जिस सिरिंज के लिए आप 10 रुपये देते हैं, अस्पताल को उसकी कीमत 4-5 रुपये पड़ती है? क्या आप जानते थे कि एक बार घुटने के प्रत्यारोपण में जहां मरीज को 1,00,00 रुपये का खर्चा आता है वहीं, अस्पताल को यह 65,000 रुपये में पड़ता है?

हृदय रोग के इलाज में स्टेंट की कीमत पर रोक लगाने वाली सरकारी एजेंसी राष्ट्रीय औषधि मूल्य निर्धारण प्राधिकरण (एनपीपीए) का कहना है, 'अस्पताला खुदरा विक्रेता नहीं हैं.' प्राधिकरण ने यह भी कहा कि अस्पताल सेवा प्रदाता हैं, उन्हें अपने द्वारा की जा रही प्रक्रिया के लिए भुगतान लेना चाहिए और इस्तेमाल किए जा रहे चिकित्सकीय उपकरणों पर लाभ नहीं कमाना चाहिए.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

हालांकि, यह केवल स्टेंट की बात नहीं है बल्कि कई ऐसे चिकित्सकीय उपकरण हैं जिनके लिए मरीज बहुत ज्यादा कीमत चुकाते हैं. ये उपकरण इन्हें आयात करने से लेकर अस्पताल पहुंचने तक कई हाथों से होकर गुजरते हैं और हर स्तर पर इनकी कीमत बढ़ती जाती है.

एक मेडिकल आपूर्तिकर्ता के मुताबिक हड्डी रोग से जुड़े प्रत्यारोपण, मोतियाबिंद की सर्जरी के लिए आंखों के लेंस से लेकर सिरिंज और सुई जैसी सस्ती चीजों तक- इन सभी की कीमत मरीजों तक पहुंचते - पहुंचते 400% - 500% तक बढ़ जाती है.

द क्विंट से बातचीत करते हुए एपीपीए के अध्यक्ष भूपेंद्र सिंह ने बताया:

हम अन्य उपकरणों को लेकर भी आंकड़े इकट्ठे कर रहे हैं और इस स्थिति से निपटने के लिए मजबूती से आगे बढ़ेंगे.

हर स्तर पर कीमत कैसे बढ़ती है

भारतीय चिकित्सा उपकरण उद्योग संघ के समन्वयक राजीव नाथ के मुताबिक वर्तमान में अस्पताल मरीजों के लिए जो सुई मंगा रहे हैं, उसकी कीमत अब तक सबसे ज्यादा है.

हर स्तर पर कीमतें कैसे बढ़ती हैं इसका एक अग्रणी हड्डी रोग संबंधी प्रत्यारोपण आपूर्तिकर्ता और निर्माता द्वारा हमें दी गई सूची से पता चलता है. कंपनी के प्रबंध निदेशक का कहना है कि उपकरणों के आयात से लेकर उनके मरीजों को पहुंचने तक कीमतों में 400%—600% की बढ़ोतरी हो जाती है.

हमने ज्यादातर उपायोग होने वाले घुटनों और नितंबों के प्रत्यारोपण और टाइटेनियम प्लेट्स को लेकर डीलर (या वितरक) की कीमत, अस्पताल को बिक्री की कीमत और एमआरपी (जो कीमत अस्प्ताल मरीज से वसूलता है) की तुलना की.

ADVERTISEMENTREMOVE AD
उपकरणों के आयात की कीमतें उस कीमत की कम से कम आधी होती हैं जिस पर आपूर्तिकर्ता या डीलर उन्हें खरीदता है. फिर अपना मुनाफा निकालने के बाद आपूर्तिकर्ता उपकरणों को निजी अस्पतालों को बेचता है और अस्पताल मरीजों से उपकरण की सीधे दोगुनी कीमत वसूलते हैं.

उपकरणों की निर्माण कीमत उन्हें आयात की गई कीमत से और भी कम होगी.

अस्पताल को एक नितंब प्रत्यारोपण की लागत 70,000 रुपये जबकि मरीज को इसके लिए 1,00,000 रुपये चुकाने पड़ते हैं. मैक्स और फोर्टिस जैसे अग्रणी निजी अस्पतालों में प्रत्यारोपण के लिए एमआरपी (जो कीमत अस्पताल मरीज से लेते हैं) को लेकर की गई वास्तविकता जांच में इस बात की पुष्टि हुई है.

'अत्यधिक कीमत रोकने के लिए अस्पताल में कोई नियम नहीं'

आपूर्तिकर्ता के कीमत कम करने के बावजूद भी अस्पताल की कीमतें बहुत ज्यादा हैं. एनपीपीए द्वारा इस मुनाफाखोरी पर शिकंजा कसा गया है, जो कहता है, 'अस्पताल सेवा प्रदाता हैं, खुदरा विक्रेता नहीं' और इसलिए वह उपकरण पर मुनाफा नहीं काम सकते.

हालांकि, एम्स प्रशासन से एक वरिष्ठ डॉक्टर का कहना है कि अस्पतालों पर निगरानी रखने और स्वास्थ्य उद्योग में हो रही इस मनमानी पर रोक लगाने के लिए कोई नियम नहीं है.

निजी अस्पताल अपनी मनमर्जी से कीमत वसूलते हैं क्योंकि कोई उन पर नजर रखने वाला नहीं है. उनके लिए कोई नियम नहीं है.
वरिष्ठ डॉक्टर, अस्पताल प्रशासन, एम्स
ADVERTISEMENTREMOVE AD

एनपीपीए के हृदय रोग संबंधी स्टेंट की कीमतों की सीमा तय करने के बाद उपकरणों की एक कृत्रिम कमी होने की खबरें आ रही हैं. एजेंसी ने अब एक आपातकालीन प्रावधान लागू किया है और विनिर्माताओं को स्टेंट्स का उत्पादन और आपूर्ति बनाए रखने का निर्देश दिया है.

लेकिन, वर्तमान प्रणाली में प्रावधान न होने के कारण यह अस्पष्ट है कि सरकार ये कैसे सुनिश्चित करेगी कि अस्पताल निर्देशों का पालन करें और कीमते घटाएं.

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
×
×