भारत इस समय एक साथ तीन-तीन चुनौतियों का सामना कर रहा है: पहली दो चुनौतियां हैं- तंबाकू का खतरा और कैंसर रोग, जबकि तीसरी चुनौती है COVID-19 महामारी, जिससे लड़ाई अभी भी जारी है.
ऐसा अनुमान है कि तंबाकू के उपयोग से भारत में हर साल लगभग 13.5 लाख लोग असमय मौत के मुंह में समा जाते हैं.
जैसा कि हम सभी महामारी की संभावित तीसरी लहर के लिए अपने आप को तैयार कर रहे हैं, ऐसे में हम भारत में खतरनाक कैंसर रोग को नजरअंदाज नहीं कर सकते या लाखों युवाओं को तंबाकू का उपयोग कर अपने भविष्य को खतरे में नहीं डालने दे सकते.
तंबाकू नियंत्रण के लिए सार्वजनिक स्वास्थ्य उपायों को बढ़ावा देने और उन्हें कोविड-19 रोकथाम रणनीति में शामिल करने के लिए तंबाकू के उपयोग और कोविड-19 की गंभीरता के बीच की कड़ी को समझना होगा.
तंबाकू से कैंसर का बढ़ता खतरा
हमारे देश में कुल कैंसर मामलों में तंबाकू-संबंधित कैंसर की संख्या सबसे ज्यादा है. 2020 के दौरान देश में तंबाकू से जुड़े कैंसर मामलों की संख्या 27 प्रतिशत से अधिक थी, राष्ट्रीय कैंसर रजिस्ट्री कार्यक्रम के मुताबिक इस संख्या में 2025 तक 12 प्रतिशत या 15.7 लाख की वृद्धि होगी.
भारतीय तंबाकू का बिना धुएं वाले विभिन्न रूपों से इस्तेमाल करते हैं, जो साल में हर 100,000 पर 10 मामलों की उच्च दर के साथ दुनिया में ओरल कैंसर की प्रमुख वजह में से एक है.
सभी तंबाकू उत्पादों में कैंसर पैदा करने वाले केमिकल्स (कार्सिनोजेंस) और टॉक्सिंस के साथ ही साथ एक नशीला पदार्थ, निकोटीन भी होता है.
यह सभी पदार्थ रक्तवाहिकाओं में प्रवेश करते हैं और हमारे शरीर की कोशिकाओं के डीएनए को नुकसान पहुंचाते हैं. क्षतिग्रस्त डीएनए कैंसर ट्यूमर में परिवर्तित हो सकता है. धुआं रहित तंबाकू उत्पादों में 28 से अधिक कार्सिनोजेंस होते हैं.
मध्य प्रदेश में एक युवा पत्नी और मां सुनीता तोमर धुआंरहित तंबाकू का उपयोग करने की वजह से मुंह के कैंसर से पीडि़त हो गई. इससे उसके स्वास्थ्य पर बहुत बुरा असर पड़ा. बीमारी की जांच के एक साल के भीतर 28 साल की उम्र में उसकी मौत हो गई. वह अपने पीछे दो छोटे-छोटे बच्चों को छोड़ गई.
भारत में किशोरों द्वारा तंबाकू उपयोग का ट्रेंड बढ़ता जा रहा है, जो चिंताजनक है. ग्लोबल एडल्ट टोबैको सर्वे GATS 2016-17 में यह संख्या लगभग 11 प्रतिशत थी. आंकड़ों से यह भी पता चला कि 15 से 24 वर्ष की उम्र के बीच के लोगों ने बहुत कम उम्र में ही धूम्रपान शुरू कर दिया था.
एक कैंसर सर्जन होने के नाते, मेरे सामने हर साल ऐसे कई कैंसर के मामले आते हैं, जो लोगों के जीवन और उनकी आजीविका दोनों को काफी नुकसान पहुंचाते हैं.
स्मोकिंग करने वालों में कोरोना संक्रमण से गंभीर COVID का जोखिम ज्यादा
मैं तंबाकू से होने वाले व्यापक नुकसान और इसके परिणामस्वरूप, बढ़ते तंबाकू-संबंधित कैंसर मामलों का गवाह हूं. हम जिन मरीजों का इलाज करते हैं, वे हमें तंबाकू के जानलेवा प्रभाव की निरंतर याद दिलाते हैं.
इसलिए यह महत्वपूर्ण है कि हम तंबाकू के खतरों से लड़ने के तरीकों पर अपना ध्यान बनाए रखें. कोविड-19 महामारी तंबाकू या कैंसर को अनदेखा करने का समय नहीं है - यह हमें अपने प्रयासों को दोगुना करने का अवसर देती है.
विशेषज्ञों ने भी इस बात की पुष्टि की है कि धूम्रपान करने वालों में कोविड-19 की वजह से गंभीर लक्षण विकसित होने या मौत होने की आशंका अधिक होती है क्योंकि यह मुख्य रूप से फेफड़ों पर हमला करता है.
पिछले साल कोविड-19 संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन लगाया गया था, जिसने भारत के तमाम हिस्सों में कैंसर देखभाल आपूर्ति को प्रभावित किया.
कई मरीजों को चिकित्सा देखभाल के लिए चुनौतियों का सामना करना पड़ा. जिससे, उन्हें कैंसर की बीमारी होने का पता देर से चला और उपचार शुरू करने में भी देरी हुई.
पहले से उपचार करवा रहे मरीजों को अपने उपचार में बाधा हुई या उन्हें उपचार को टालना पड़ा, जिससे रोग को और घातक होने का मौका मिला.
कैंसर उपचार में कई जटिलताएं हैं, जब स्वास्थ्य देखभाल संसाधनों को महामारी के नियंत्रण के लिए उपयोग में लाया जाता है, तब कैंसर मरीज परेशान हो सकते हैं.
ऐसे चुनौतीपूर्ण वर्ष के दौरान भी, हमारे पास तंबाकू-मुक्त भारत की दिशा में, विशेषकर हमारे युवाओं को इस जानलेवा उत्पाद के उपयोग के प्रति जागरूक कर, बड़े प्रयास करने के लिए एक अवसर है.
महामारी ने हमें अपने युवाओं को तंबाकू सेवन से होने वाले स्वास्थ्य खतरों के बारे में सचेत करने का एक नया अवसर प्रदान किया है.
भारत के 5 से 25 प्रतिशत किशोर तंबाकू का इस्तेमाल कर रहे
तंबाकू उद्योग के लिए, भारत का युवा एक आकर्षक बाजार बन गया है.
एक अनुमान के मुताबिक वर्तमान में भारत के 5 से 25 प्रतिशत किशोर तंबाकू का उपयोग करते हैं या कर रहे हैं.
इससे अधिक चिंताजनक यह है कि हमारे किशोरों के बीच तंबाकू का बहुत शुरुआती उम्र में उपयोग करना भी कैंसर मामलों में वृद्धि का एक प्रमुख कारण है.
इससे आजीवन तंबाकू की लत लग सकती है और अन्य बीमारियों के साथ फेफड़ों के कैंसर का जोखिम बढ़ सकता है.
तंबाकू और सुपारी- गुटखा, पान मसाला, खैनी और मावा में एक सामान्य सामग्री- एक जानलेवा मिश्रण है. दोनों ही नशे की लत और कैंसर जनक पदार्थ हैं, जिन्हें अक्सर हमारे युवाओं के बीच एक माउथ फ्रेशनर के रूप में भ्रामक मार्केटिंग के जरिए बेचा जाता है.
खुली सिगरेट की बिक्री भी युवाओं के लिए इस आदत को आसान और किफायती बनाती है.
हम क्या कर सकते हैं?
यह दुखद बात है कि एक समाज के रूप में हम अपने बच्चों को निशाना बनने दे रहे हैं. हम इस मुद्दे पर अब ध्यान देना शुरू कर रहे हैं. किशोरों में तंबाकू की महामारी को नियंत्रित करने के लिए उम्र-विशिष्ट उपायों को अपनाना महत्वपूर्ण है.
हम स्कूलों और कॉलेजों में वर्कशॉप और सार्वजनिक जागरुकता अभियानों, जो तंबाकू सेवन के घातक प्रभाव को प्रदर्शित एवं व्यक्त कर सकते हैं, के माध्यम से जनता को संवेदनशील बना सकते हैं. यह हमारे युवाओं को पूरी तरह से इस आदत को अपनाने से रोकने में मदद कर सकता है.
युवाओं को तंबाकू सेवन से रोकने का एक तरीका यह भी हो सकता है कि प्रमुख नागरिक और मशहूर हस्तियां तंबाकू ब्रांड्स का प्रचार बंद कर दें.
इस प्रकार का प्रचार एक तरह से तंबाकू उद्योग को तंबाकू विज्ञापन, प्रचार और स्पॉन्सरशिप को विनियमित करने वाले भारत के कानून से दूर ले जाते हैं.
हाल ही में, ऑनलाइन स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म तंबाकू सेवन को उसके स्वास्थ्य संबंधी खतरों की चेतावनी के बिना चित्रित कर रहे हैं- जो पूरी तरह से कानून के विपरीत है.
हमारे शरीर में एक भी अंग ऐसा नहीं है, जो तंबाकू के सेवन से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से बुरी तरह प्रभावित न हो.
एक चिकित्सक के रूप में, मैं अपने युवाओं को चेतावनी देने की जिम्मेदारी महसूस करता हूं.
हमें कोविड-19 के खिलाफ अपनी लड़ाई के साथ तंबाकू के खिलाफ मुहिम जारी रखनी होगी और इससे जुड़ी बीमारियों के मामलों को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए.
तंबाकू-संबंधित बीमारियों की रोकथाम की जा सकती है. जैसा कि कोरोना महामारी ने रोकथाम के स्वास्थ्य उपायों को अपनाने के महत्व के बारे में बताया है, ऐसे में हमारे पास तंबाकू के खतरे को फैलने से रोकने का एक अवसर है.
हमारे देश में दुनिया की सबसे बड़ी किशोर और युवा आबादी है, वे देश का भविष्य हैं. उन्हें तंबाकू के खतरों से बचाने में मदद करना हमारी प्रमुख जिम्मेदारी होनी चाहिए.
(प्रोफेसर डॉ. पंकज चतुर्वेदी मुंबई में टाटा मेमोरियल सेंटर के सेंटर फॉर कैंसर एपिडेमायोलॉजी में डिप्टी डायरेक्टर और हेड नेक सर्जन हैं.)
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