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इंडियन साइंस कांग्रेस या साइंस फिक्शन कांग्रेस!

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अब क्यों न कॉलेजों के सभी साइंस और मेडिसिन की किताबों की जगह हमारी धार्मिक पुस्तकें पढ़ाई जाएं. आखिरकार, इस तरह स्टूडेंट को साइंस की उत्पत्ति को लेकर बेहतर जानकारी हासिल होगी क्योंकि मूल कोशिकाओं (स्टेम सेल्स) पर रिसर्च, टेस्ट ट्यूब बेबीज, प्लास्टिक सर्जरी ये सभी हमारी पौराणिक कथाओं से आए हैं.

है न? कम से कम 106वें इंडियन साइंस कांग्रेस में शामिल हुए कुछ मुख्य स्पीकर्स यही मानते होंगे.

तभी यहां आंध्र यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर (वीसी) जी नागेश्वर राव ने दावा किया कि कौरवों का जन्म स्टेम सेल टेक्नोलॉजी के जरिए हुआ और वे टेस्ट ट्यूब बेबीज थे. फिर, जाहिर है कि स्टेम सेल रिसर्च की जानकारी, टेस्ट ट्यूब फर्टिलाइजेशन, इनके बारे में हजारों साल पहले महाकाव्य महाभारत के दौर से ही पता है. तब आज वैज्ञानिक किस पर रिसर्च कर रहे हैं?

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ऐसा कुछ हजार सालों पहले हुआ था. इस देश में ये विज्ञान था. महाभारत में कहा गया है, 100 अंडे फर्टिलाइज्ड हुए और उन्हें 100 घड़ों में रखा गया. क्या वो टेस्ट ट्यूब बेबीज नहीं थे? इस देश में स्टेम सेल पर रिसर्च हजारों साल पहले से मौजूद है.
जी नागेश्वर राव, वीसी, आंध्र यूनिवर्सिटी

सोचिए, ये बयान एक बड़े वैज्ञानिक और किसी राज्य की यूनिवर्सिटी के वीसी ने भारत के सबसे पुराने साइंस एसोसिएशन के आयोजन में दिया.

अगर भारत के प्रधानमंत्री प्लास्टिक सर्जरी को लेकर कह सकते हैं कि ये तब से है, जब भगवान गणेश के मानव धड़ पर हाथी का सिर लगाया गया, फिर कौरवों को टेस्ट ट्यूब बेबीज बताने वाले वीसी राव का बयान ठीक ही है.

अगर इंटरनेट महाभारत के समय से ही है, जैसा कि त्रिपुरा के मुख्यमंत्री बिप्लव देब ने हमें बताया, फिर टेस्ट ट्यूब बेबीज को लेकर क्या समस्या हो सकती है.

क्या ये सामान्य ज्ञान नहीं है कि जेनेटिक साइंस प्राचीन काल से ही है? नहीं, तो आप ये कैसे सोच सकते हैं कि “महाभारत में कर्ण का जन्म अपनी मां की कोख से बाहर हुआ”? (पीएम का दूसरा बयान)

साइंस कांग्रेस पर ही वापस आते हैं. ये पहली बार नहीं था, जब कॉन्फ्रेंस में किसी स्पीकर ने ऐसे महान दावे किए हों.

बुढ़ापा न आने का चमत्कार: 103वें साइंस कांग्रेस के एक पेपर में कहा गया था कि अगर आप टाइगर के चमड़े पर बैठकर योग करते हैं, तो आप बूढ़े नहीं होंगे या फिर आप उम्रदराज होने की प्रक्रिया को ही उलट सकते हैं.

ऐलकेमिस्ट: एक और साइंस कांग्रेस में एक स्पीकर ने दावा किया था कि पवित्र गाय के शरीर में एक ऐसा बैक्टीरिया होता है, जो खाने को 24 कैरेट सोने में बदल देता है.

एक और प्रेजेंटेशन में कहा गया था कि ऑटाप्सी पुराने समय से हो रही हैं, तब डेड बॉडी को तीन दिन के लिए पानी में छोड़ दिया जाता था.

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इसके बावजूद नोबल प्राइज जीत चुके वेंकटरमन रामाकृष्णन ने फोरम को सर्कस करार दिया. ओह, क्या ये ईशनिंदा से कम है.

हमारे मंत्री और उनके द्वारा नियुक्त स्कॉलर्स ने प्राचीन धार्मिक ग्रंथों के वैज्ञानिक उपलब्धियों को सामने लाने के लिए बहुत मेहनत की है.

खबर है कि केंद्रीय मंत्री महेश शर्मा ने स्कॉलर्स की एक कमेटी की अध्यक्षता की थी, जहां सभी ने इस पर बात की थी कि प्राचीन हिंदू लेख तथ्य हैं, मिथ नहीं. फिर इन लेखों में वैज्ञानिक चमत्कार कुछ और कैसे हो सकते हैं, बल्कि ये तो आधुनिक मेडिकल साइंस के नींव हैं.

सरकार ने साइंस कांग्रेस के कार्यक्रम को बड़ा बनाने के लिए कई प्रयास किए. विदेशों से जाने-माने वैज्ञानिकों और नोबेल विजेताओं को बुलाया. अगर यहां प्राचीन हिंदू विज्ञान का दावा नहीं किया जाता, तो कहां किया जाता?

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