लखनऊ का रहने वाला अनुराग (बदला हुआ नाम) 11वीं का छात्र है. लॉकडाउन के बीच जब स्कूल बंद थे, तब अनुराग गलत संगत में पड़ गया. अनुराग के मुताबिक, लॉकडाउन में दोस्तों के साथ नशा करना शुरू किया, अब स्मैक की लत लग गई है. इसकी वजह से उसके माता-पिता बहुत परेशान हैं और उनकी परेशानी को देख अनुराग इस लत को छोड़ना चाहता है.
स्मैक की लत को छुड़ाने के लिए अनुराग के माता-पिता उसे लेकर लखनऊ के जिला अस्पताल में बने तंबाकू उन्मूलन केंद्र पहुंचे हैं. यह पहली बार है, जब परिवार इस जगह आया है. केंद्र पर मौजूद काउंसलर डॉ. रजनीगंधा श्रीवास्तव जब अनुराग को समझाती हैं तो बगल में बैठी अनुराग की मां रोने लगती हैं. उनके आंसू देख डॉ. रजनीगंधा भावुक सा सवाल करती हैं कि 'क्या तुम अपनी मां को ऐसे रोते देखना चाहते हो?' अनुराग बिना कुछ कहे ना में सिर हिला देता है.
नशे की लत को खत्म करने की दिशा में अनुराग का यह पहला दिन है. आने वाले वक्त में ऐसे और कई काउंसलिंग सेशन होंगे, तब जाकर अनुराग नशे से मुक्ति पा सकेगा.
अनुराग की तरह बहुत से युवा तेजी से नशे की गिरफ्त में आ रहे हैं. इसी के मद्देनजर सरकार की ओर से नेशनल टोबैको कंट्रोल प्रोग्राम (NTCP) चलाया जाता है. इसके तहत लोगों को तंबाकू के नुकसान के बारे में जागरूक किया जाता है. साथ ही Cigarettes and Other Tobacco Products Act (COTPA) को लागू कराया जाता है.
यूपी के 75 तंबाकू उन्मूलन केंद्र में से सिर्फ 26 में काउंसलर
इसके अलावा नेशनल टोबैको कंट्रोल प्रोग्राम के तहत तंबाकू उन्मूलन केंद्र भी चलाए जाते हैं, जहां लोगों को नशा छोड़ने के लिए काउंसलिंग की सुविधा दी जाती है.
उत्तर प्रदेश के 75 जिलों में तंबाकू उन्मूलन केंद्र खुले हैं, हालांकि काउंसलर सिर्फ 26 जिलों में तैनात हैं.
ऐसे में केवल 26 जिलों के तंबाकू उन्मूलन केंद्र पर लोगों को नशा मुक्ति से जुड़ी सही काउंसलिंग मिल पा रही है.
इस बारे में नेशनल टोबैको कंट्रोल प्रोग्राम के स्टेट कंसल्टेंट सतीश त्रिपाठी फिट से कहते हैं,
"यूपी में तंबाकू नियंत्रण कार्यक्रम की शुरुआत 2009 में दो जिलों (लखनऊ-कानपुर) से हुई. आज 75 जिलों में तंबाकू उन्मूलन केंद्र बने हैं. नेशनल हेल्थ मिशन की ओर से सभी 75 जिलों में काउंसलर की नियुक्ति नहीं हो पाई है. अभी 26 जिलों में हमारा पूरी तरह से कमांड है. इसके अलावा जिला अस्पताल में एनसीडी (नॉन कम्युनिकेबल डिजीज) के काउंसलर और मन कक्ष में मेंटल हेल्थ के काउंसलर भी बैठते हैं, हमने उन्हें भी ट्रेनिंग दी है."
सतीश यह भी कहते हैं कि अगर सभी 75 जिलों में तंबाकू उन्मूलन से जुड़े काउंसलर होते तो स्थिति बेहतर होती. अभी एनसीडी क्लीनिक के काउंसलर और मन कक्ष के काउंसलर को ट्रेनिंग दी गई है, लेकिन उनके पास खुद के क्लीनिक से जुड़े मामले होते हैं, ऐसे में वह पूरी तरह से तंबाकू उन्मूलन पर ध्यान नहीं दे पाते. वहीं, एनसीडी और मन कक्ष में भी काउंसलर की कमी है.
फिट की इस रिपोर्ट के मुताबिक, यूपी के 75 जिलों में से केवल 60 जिलों में मन कक्ष बन पाए हैं. इसमें से भी केवल 38 जिलों के मन कक्ष में क्लीनिकल साइकोलॉजिस्ट और 43 जिलों में सोशल वर्कर मौजूद हैं. इसके अलावा कई ऐसे मन कक्ष भी हैं, जहां एक कर्मचारी पूरा सेंटर चला रहा है.
इन आंकड़ों से अंदाजा लगाया जा सकता है कि जिन मन कक्ष के काउंसलर के भरोसे तंबाकू उन्मूलन का काम सौंपा गया है, वहां पहले से काउंसलर की कमी है. यानी राज्य के 26 जिलों के अलावा 49 जिलों में तंबाकू उन्मूलन का काम जैसे तैसे हो रहा है.
एक बात यह भी है कि जो व्यक्ति जिस चीज का एक्सपर्ट होता है, उसे अच्छे से कर पाता है. नशा मुक्ति के काउंसलिंग में भी यही बात लागू होती है. लखनऊ के तंबाकू उन्मूलन केंद्र की काउंसलर डॉ. रजनीगंधा श्रीवास्तव का भी यही मानना है.
डॉ. रजनीगंधा फिट से कहती हैं, "मुझे नहीं लगता मेरा काम कोई मुझसे बेहतर कर पाएगा. इसलिए तंबाकू उन्मूलन केंद्र पर इससे जुड़े काउंसलर ही होने चाहिए. वो मरीज को बेहतर वक्त दे पाएंगे, उन्हें अच्छी तरह समझा पाएंगे. ऐसा नहीं कि कोई एक या दो बार में नशा छोड़ देगा, यह लंबी प्रक्रिया है और करीब 6 महीने से ज्यादा का वक्त लग सकता है. ऐसे में अगर संबंधित काउंसलर रहे तो अच्छा रहेगा."
रजनीगंधा ने साल 2015 से अब तक 1500 से ज्यादा लोगों को नशे से मुक्त कराया है. उनके मुताबिक उन्होंने करीब 20 हजार लोगों को काउंसलिंग दी है. इसमें से 4 हजार मामले नियमित तौर पर तंबाकू उन्मूलन केंद्र पर आते रहे और करीब 1500 लोग नशा छोड़ चुके हैं.
इसके अलावा यूपी के 26 तंबाकू उन्मूलन केंद्रों पर भी बड़ी संख्या में लोग नशा छोड़ने के लिए आ रहे हैं. 2020-21 में इन 26 केंद्रों पर करीब 54 हजार लोग आए. वहीं, 2019-20 में 82 हजार से ज्यादा लोग नशा छोड़ने की चाह लिए इन 26 केंद्रों तक पहुंचे हैं.
नेशनल टोबैको कंट्रोल प्रोग्राम के स्टेट कंसल्टेंट सतीश त्रिपाठी कहते हैं, "नशा छोड़ने के लिए भारत सरकार एक हेल्पलाइन नंबर चलाती है. इस हेल्पलाइन पर सबसे ज्यादा मामले यूपी से रजिस्टर होते हैं, पिछले तीन-चार साल का यही ट्रेंड रहा है. कोरोना के बीच ऐसे मामले और बढ़े हैं. ऐसे में अगर हमारे सभी तंबाकू उन्मूलन केंद्रों पर काउंसलर हों, तो हम और अच्छे से काम कर पाएंगे."
लोग कोरोना की वजह से धूम्रपान छोड़ना चाहते हैं: सर्वे
हाल ही में फाउंडेशन फॉर ए स्मोक-फ्री वर्ल्ड की ओर से एक सर्वे किया गया. इसके मुताबिक, कोरोना की वजह से धूम्रपान करने वालों में इसे छोड़ने की इच्छा बढ़ रही है.
भारत में सर्वे में शामिल 1,500 धूम्रपान करने वालों में से दो-तिहाई धूम्रपान छोड़ना चाहते हैं. इसमें से 66% ने संकेत दिया कि उन्होंने इसे छोड़ने पर विचार किया था और 63% ने वास्तव में छोड़ देने का प्रयास किया. सर्वे में शामिल लोगों में से कुछ का ये भी मानना है कि धूम्रपान कोरोना वायरस से संक्रमित होने के खतरे को बढ़ा सकता है.
इस सर्वे से साफ होता है कि भारत में बड़ी तादाद में युवा धूम्रपान से निजात पाना चाहते हैं. ऐसे में जनसंख्या के आधार पर भारत के सबसे बड़े राज्य यूपी में अगर तंबाकू उन्मूलन केंद्रों में सुधार किया जाए तो बेहतर नतीजे मिल सकते हैं.
यह सुधार जल्द करने होंगे क्योंकि हर साल तंबाकू की वजह से देश में लाखों लोग जान गवां रहे हैं. 2016-17 के ग्लोबल एडल्ट टोबैको सर्वे के मुताबिक, भारत में तंबाकू की वजह से हर साल 13 लाख से ज्यादा लोगों की मौत होती है.
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