आज दुनिया भर में कोरोनावायरस डिजीज- 2019 (COVID-19) की चर्चा है. हर देश के डॉक्टर, मॉडलर और राजनेता इसका समाधान खोजने के लिए जूझ रहे हैं. COVID-19 के खिलाफ लड़ाई में जो सबसे महत्वपूर्ण हीरो जुटे हुए हैं, उनको अभी भी कम मान्यता मिली है. हां, वे नर्सिंग स्टाफ हैं.
इस वर्ल्ड हेल्थ डे पर नर्सों और मिडवाइव्ज के योगदान को पहचानने और सम्मानित करने का समय है, जो दुनिया को स्वस्थ रखने में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका दर्शाता है.
नर्सिंग वर्क फोर्स की चुनौतियां
COVID-19 के खिलाफ दूसरे स्वास्थ्य कर्मचारियों के साथ नर्स अग्रिम मोर्चे पर हैं. ये लोग व्यापक समुदाय की रक्षा के लिए अपने स्वास्थ्य को खतरे में डाल रहे हैं. वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन (WHO) वेस्टर्न पेसिफिक रीजन के हेल्थ केयर कर्मियों में दो-तिहाई से अधिक नर्स हैं.
2020 इंटरनेशनल ईयर ऑफ नर्स एंड मिडवाइव्ज, वर्ल्ड हेल्थ डे नर्सिंग वर्क फोर्स के काम के मुद्दों, चुनौतियों और संभावित समाधानों को सामने रखने का एक अवसर है.
देश में हर दिन लोग कोरोना संकट को लेकर प्रिंट मीडिया, सोशल मीडिया जैसे सभी प्लेटफॉर्म पर डिबेट देख रहे हैं. इस देश में लगभग हर कोई, राजनेता, डॉक्टर, बाल रोग विशेषज्ञ, स्त्री रोग विशेषज्ञ, मीडिया कर्मी, प्रोग्राम मैनेजर, सेलेब्रिटी, वीडियो-रेडियो जॉकी अपनी राय शेयर करता देखा जा सकता है. सिवाय नर्सों के, जो कोरोनोवायरस संकट के दौरान लीडरशीप के एक नए लेवल का प्रदर्शन करने में व्यस्त हैं, लेकिन उनके अनुभव मानसिक आघात की वजह बन सकते हैं.
हम में से कई लोग, जिन्होंने निपाह के प्रकोप को देखा था, उन्हें अभी भी लिनी (निपाह के खिलाफ लड़ाई में जुटी केरल की एक नर्स ) की आखिरी कुछ पंक्तियों की यादें ताजा हैं. तबीयत खराब होने पर 28 वर्षीय नर्स ने अपने पति को लिखा था, "मुझे नहीं लगता कि मैं आपसे फिर मिल सकती हूं, मुझे माफ करें." यह हेल्थकेयर की फील्ड में काम करने वालों के कठिन जीवन की वास्तविकता का एक रूपक था.
अगर आंकड़ों पर विश्वास करें तो भारत में प्रति हजार जनसंख्या पर केवल 1.7 नर्स हैं. जबकि विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार प्रति हजार जनसंख्या पर 2.5 नर्सें होनी चाहिए.
भारत के सरकारी अस्पतालों में नर्स और रोगी का अनुपात 1:20 है, जो कि अंतरराष्ट्रीय मानक 1:4 से मेल नहीं खाता है.
यह संभवतः काम के बोझ को बढ़ा देता हैं और इससे उत्साह में ऐसी कमी होती है, जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती है. स्टाफ की कमी वाली स्थिति विशेष रूप से प्राइवेट अस्पतालों में भी होती है. इसका परिणाम होता है कि काम के घंटे बढ़ जाते हैं और नर्सिंग केयर में गिरावट हो सकती है.
वे फर्स्ट लाइन ऑफ डिफेंस हैं और क्रिटिकल केयर की स्थिति से कई बार सबसे पहले यही लोग निपटते हैं. हेल्थकेयर वर्कर्स विभिन्न संचारी (communicable) रोग जैसे टीबी, हेपेटाइटिस, एचआईवी के हाई रिस्क पर होते हैं. इसके बावजूद हमारे देश में उन्हें बहुत अधिक सराहना और क्रेडिट नहीं मिलता है, जिसके लिए वे विशेष रूप से हकदार हैं.
इस बात के वास्तविक प्रमाण हैं कि नर्सिंग स्टाफ के साथ बहुत कम गरिमा वाला व्यवहार किया जाता है.
नॉर्थ इंडिया के अस्पतालों जहां COVID-19 के संदिग्ध रोगी भर्ती थे, वहां ऐसी घटनाएं देखने में आई थीं जिनमें नर्सिंग स्टाफ के खिलाफ टिप्पणियां की गईं और उन्हें परेशान किया गया. यह इन अनसुने हीरो के प्रति कुछ लोगों की मनोभावना को दर्शाता है.
नर्सों को रोगियों के साथ-साथ उनके रिश्तेदारों की तरफ से गाली गलौज के साथ ही संभावित मानसिक उत्पीड़न का भी खतरा रहता है. नर्सों द्वारा रोगियों को दी जाने वाली सेवाओं को न केवल समाज से, बल्कि कभी-कभी मेडिकल फील्ड में भी अन्य हेल्थ केयर प्रोफेशनल्स से भी उचित मान्यता नहीं मिलती है. उन्हें किसी भी वैध या न्यायसंगत कारण का हवाला दिए बिना अपने क्षेत्र में लीडर या एडमिनस्ट्रेटर्स के रूप में स्वीकार नहीं किया जाता है.
नर्सों से अक्सर अपेक्षा की जाती है या उन्हें अन्य काम करने के लिए मजबूर किया जाता है, जो शायद उनके रूटीन प्रोफेशन से जुड़े नहीं हो सकते हैं. इसमें उनको बिलिंग, रिकॉर्ड कीपिंग, इन्वेंट्री, कपड़े धोने, डाइट, फिजियोथेरेपी, बीमा आदि जैसी ट्रेनिंग दी जाती है. इससे क्वालिटी पेशेंट केयर टाइम कम हो जाता है.
अस्पतालों और क्लीनिकों में उदासीन नेतृत्व के साथ ही ऑक्युपेशनल हेल्थ सेफ्टी में बेहतर ट्रेनिंग नहीं मिलने के कारण नर्सों को विभिन्न तरह के स्वास्थ्य से जुड़े खतरे की आशंका बनी रहती है.
नर्सें क्लिनिकल स्किल के साथ गौरव व प्रतिष्ठा का प्रतीक हैं. उनमें इमोशनल इंटेलिजेंस और जिम्मेदारियों की भावना का बेहतरीन कॉम्बिनेशन होता है.
विश्व स्तर और स्थानीय स्तर पर रोग पैटर्न के संक्रमण में वृद्धि के साथ स्वास्थ्य परिदृश्य के स्वरूप को बदलने में नर्सें सबसे आगे होने वाली हैं.
नए संक्रामक रोगों के सामने आने और उनके फिर से उभरने, की स्थिति में तकनीक अहम होती जा रही है. आयुष्मान भारत और यूनिवर्सल हेल्थ केयर देखने को मिल रहा है, NABH को बढ़ावा मिल रहा है. अधिकारों के प्रति रोगियों में लिटरेसी बढ़ रही है, पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप बढ़ रही है और हेल्थ केयर का कॉर्पोरेटाइजेशन भी हो रहा है. इसके साथ ही COVID-19 जैसे संक्रमण की उत्पत्ति भी हुई है. ऐसे में नर्सों को हेल्थ केयर परिदृश्य में बदलाव लाने में सबसे आगे होना चाहिए.
बेहतर भविष्य के लिए क्या कदम उठाने होंगे?
सभी चुनौतियों के बावजूद नर्सिंग पेशे का भविष्य बेहतरीन हो सकता है, लेकिन इसके लिए नर्सिंग के सभी स्तरों पर परिवर्तनकारी नेतृत्व में लक्षित प्रयासों की आवश्यकता होती है, जो छोटे पब्लिक हेल्थकेयर (PHC) से लेकर बड़े कॉर्पोरेट अस्पतालों में तैनात लोगों की नेतृत्व क्षमता को अधिकतम करता है. युवा नर्सिंग स्कॉलर्स के लिए समय की जरूरत है कि वे अधिक व्यावहारिक और सक्रिय होकर नए क्षेत्रों जैसे बेहतर पेशेंट एंगेजमेंट, एकीकरण के लिए अगले स्तर की शिक्षा और कुशल व्यावसायिक मॉडल को सीखने, बेहतर प्रबंधन, फाइनेंस और एडमिनिस्ट्रेशन की समझ विकसित करके उद्यमी, मैनेजर और एडमिनिस्ट्रेटर्स बनें.
उन्हें अपेक्षित क्लिनिकल प्रयासों का सहयोग करने के लिए तकनीक की बेहतर समझ का भी लाभ उठाना चाहिए.
उन्हें रिसर्च, पब्लिक हेल्थ मैनेजमेंट और हॉस्पिटल एडमिनिस्ट्रेशन और मैनजेमेंट जैसे क्षेत्रों का पता लगाने की आवश्यकता है. नर्सों को भी बेहतर हेल्थ रिजल्ट्स प्राप्त करने के लिए टीम का सक्रिय हिस्सा होने पर गर्व की भावना महसूस करनी चाहिए.
WHO इस बात के लिए प्रशंसा का पात्र है कि उसने विश्व स्वास्थ्य दिवस 2020 के बड़े विषय में नर्सों को शामिल किया. मुझे पूरी उम्मीद है और चाहता हूं कि मिडवाइव्स के साथ-साथ राष्ट्र की भलाई के लिए आशा जैसी अन्य फ्रंट लाइन कार्यकर्ताओं को उनकी सेवाओं को लेकर आवश्यक सराहना और मान्यता मिले.
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