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जीका वायरस कर रहा है बच्चों की आंखों पर असर

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Health News
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लैटिन अमेरिका और कैरेबियाई देशों में कहर फैलाने वाला जीका वायरस अब चीन और ऑस्ट्रेलिया में दस्तक दे चुका है. हजारों सालों से बंदरों में फैलने वाला यह वाइरस अब इंसानों तक भी पहुंच चुका है. पर अभी तक इससे हीमोरेजिक फीवर या मृत्यु नहीं हो रही है. कम से कम हालिया समय तक तो नहीं.

अब तक इसे नवजातों में दिमाग के छोटे होने से जोड़कर देखा जा रहा था, पर अब इसका असर आखों के खराब होने तक भी पहुंच गया है. जर्नल ऑफ अमेरिकन मेडिकल असोसिएशन (JAMA) के एक ताजा शोध के मुताबिक, इस वाइरस के कारण बच्चों में धीरे-धीरे दृष्टि खोने से लेकर नवजातों में अंधापन तक हो सकता है.

खतरनाक होता जा रहा है जीका

वाइरोलोजिस्ट्स जीका से होने वाले नुकसान पर लगातार आंकड़े दे रहे हैं. (प्रतीकात्मक तस्वीर: रॉयटर्स)
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JAMA ने ब्राजील में छोटे सिर के साथ जन्मे 29 बच्चों पर शोध किया. इनमें से एक-तिहाई यानी 10 बच्चों की एक या दोनों आखों की रेटिना में खराबी पाई गई. सबसे आम दिक्कत थी बच्चों की आंख के पिछले हिस्से में काले धब्बों वाले जख्म, रेटिना के बड़े हिस्से में टिशू डैमेज या फिर रेटिना के नीचे की रक्तवाहिनी में खराबी.

अभी ये बच्चे कितना या कितना कम देख सकते हैं, यह नहीं कहा जा सकता, पर डॉक्टर्स का कहना है कि आंख में किसी भी तरह का जख्म होना नुकसानदेह है. सबसे बुरा यह है कि इस नुकसान को ठीक नहीं किया जा सकता, पर जितनी जल्दी इसका पता चल सके उतना बेहतर है.

अभी यह साफ नहीं हो सका है कि सामान्य आकार के सिर के साथ पैदा हुए उन बच्चों में आंखों की खराबी देखी जा रही है या नहीं, जो जीका वाइरस से एक्सपोज हो चुके हैं.

जीका से प्रभावित देश रंगीन किए गए हैं.
(फोटो: CDC Atlanta)

जीका सिर्फ 20 फीसदी मामलों में ही लक्षण दिखाता है, इसलिए अमेरिका में डॉक्टर्स सलाह दे रहे हैं कि प्रेग्नेंसी के समय जो महिलाएं जीका प्रभावित देशों में गईं हैं, वे अपने बच्चों की जांच कराएं.

इससे पहले कि आप घबरा जाएं, यह याद रखना जरूरी है कि हर शोध की अपनी सीमाएं होती हैं — इस मामले में भी सेंपल साइज काफी छोटा था और सभी बच्चों की जांच एक ही अस्पताल में की गई थी.

जीका का खतरा क्यों बड़ा है?

धीरे-धीरे लक्षण सामने आने और धीमी प्रतिक्रिया के मामले में जीका इबोला की तरह है. दोनों ही मामलों उस तरह की जनसंख्या को बीमारियों का शिकार बनना पड़ा, जो इसके लिए तैयार नहीं थी.

पिछली बार इबोला से निपटने में देरी से काम करने के लिए वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन को आलोचना का शिकार होना पड़ा था, लेकिन इस बार WHO ने जीका को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर एक पब्लिक हेल्थ इमरजेंसी घोषित कर दिया.

अभी जीका के लिए कोई भी वैक्सीन या इलाज मौजूद नहीं है.
(प्रतीकात्मक तस्वीर: रॉयटर्स)

अब यह देखना बाकी है कि WHO विश्व स्तर पर बढ़ रही इस नई मुसीबत से निपट पाता है या नहीं. पर अमेरिका में वैज्ञानिक यह जानने की कोशिश कर रहे हैं कि एक आम जुकाम जैसे लक्षण पैदा करने वाला यह वाइरस माइक्रोसिफेली या आंखों की खराबी जैसी बीमारी कैसे पैदा कर देता है.

अभी तक जीका के बारे में कुछ भी पता नहीं है. वैक्सीन, इलाज या दवाइयां ढूंढने से पहले वैज्ञानिकों को यह पता करना होगा कि आखिर यह वाइरस काम कैसे करता है.

‘क्या जीका के खिलाफ इम्युनिटी बनाई जा सकती है?’, ‘गर्भवती महिला के शरीर में वाइरस के घुसने पर प्लेसेंटा की सेल्स क्या प्रतिक्रिया देती है?’, ‘जीका और डेंगू में जेनेटिक स्तर पर क्या भिन्नता है?’, ‘माइक्रोसिफेली जैसी बीमारी पैदा करने की वजह कहीं जीका में हुआ कोई जेनेटिक म्यूटेशन तो नहीं?’, ये कुछ ऐसे सवाल हैं, जिनका जवाब तलाशना सबसे जरूरी है.

वैज्ञानिक इस नए वाइरस पर लगातार काम कर रहे हैं, पर वे कब तक उस के बारे में सब जान पाएंगे, यह कह पाना मुश्किल है.

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