(यह लेख फिट की #DecodingPain सीरीज का हिस्सा है. इस सीरीज में हम दर्द की हर परत– अहसास, वजह, इससे जुड़े कलंक, दवा और ट्रीटमेंट के बारे में गहराई से जानेंगे.)
आप दर्द के अहसास को रोकने के लिए क्या उपाय करेंगे?
क्या आप रहस्यमय जड़ी-बूटियों का काढ़ा पीएंगे? क्या मधुमक्खियों से खुद को डंक मरवाएंगे? क्या आप किसी से अपने शरीर में दसियों छोटी सुइयां चुभवाएंगे?
और क्या इनमें से कोई नुस्खा सच में काम करता है?
एक्यूपंक्चर (Acupuncture) उन चंद पारंपरिक वैकल्पिक चिकित्सा पद्धतियों में से एक है, जो आधुनिक चिकित्सा जगत के संदेहों से ऊपर उठने में कायमाब हुई हैं और जिसे मुख्यधारा के चिकित्सा क्षेत्र द्वारा हिचकिचाहट के साथ स्वीकार कर लिया गया है.
इस बात के वैज्ञानिक प्रमाण हैं कि एक्यूपंक्चर chronic pain यानी सालों के पुराने दर्द (और कई बीमारियों) का इलाज कर सकती है, लेकिन शक की परछाईं अभी भी प्राचीन चाइनीज पद्धति पर मंडरा रही है कि यह किस तरह काम करती है, यह अभी भी पूरी तरह साफ नहीं है.
इस लेख में, फिट इस बात की तह तक जाता है कि एक्यूपंक्चर असल में क्या है, यह कैसे काम करती है.
प्राचीन चीन के लोगों की ऊर्जा मार्ग की थ्योरी
प्राचीन चीनियों का मानना था कि शरीर ऊर्जा मार्गों (Energy Pathways) से बना है, जिसे मेरिडियन सिस्टम (meridian system) के तौर पर जाना जाता है. इन रास्तों से ऊर्जा, या चाइनीज भाषा में Qi (जिसका उच्चारण ‘ची’ chee है) प्रवाहित होती है.
MBBS डॉक्टर से मेडिकल एक्यूपंक्चरिस्ट बने डॉ. एस. रंजन कहते हैं, “हमारे इस भौतिक शरीर में हमारे पास ऊर्जा है, और तमाम ऊर्जा मार्ग हैं जिनके जरिए यह पूरे शरीर में प्रवाहित होती है.”
दिल्ली में डॉ. निहारिका एक्यूपंक्चर क्लीनिक की निदेशक डॉ. निहारिका बताती हैं, "इन रास्तों में रुकावट से ऊर्जा के प्रवाह में रुकावट आती है जो हर तरह की गड़बड़ी को जन्म देती है.”
एक्यूपंक्चर लगभग 5000 वर्षों से अधिक पुरानी है, और चीन में प्राचीन काल में माना जाता था कि इसका इस्तेमाल न केवल बीमारी को ठीक करता है, बल्कि इसे समग्र अच्छे स्वास्थ्य (holistic good health) के ट्रीटमेंट के रूप में भी इस्तेमाल किया जाता था.
दिल्ली के एक और एक्यूपंक्चरिस्ट डॉ. आदिल खान का कहना है कि एक्यूपंक्चर इंसान की प्राकृतिक रूप से ठीक होने की क्षमता को बढ़ाकर काम करता है.
दर्द में एक्यूपंक्चर: यह कैसे काम करता है?
एक्यूपंक्चर के डॉक्टर दर्द और किसी भी शारीरिक बीमारी की व्याख्या ऊर्जा मार्गों में मामूली बदलावों के नतीजे के तौर पर करते हैं.
डॉ. एस. रंजन बताते हैं कि शरीर के मेरिडियन सिस्टम में ‘प्रेशर पॉइंट्स’ में बेहद बारीक सुइयों को चुभोकर वे “रास्तों को अनब्लॉक” कर सकते हैं.
डॉ. खान इस तरीके को आधुनिक तंत्रिका विज्ञान (neurology) से जोड़कर देखते हैं.
“हम सेंट्रल नर्वस सिस्टम को उत्तेजित करते हैं, जो नसों को सक्रिय करता है और रीढ़ की हड्डी के जरिए दिमाग को संकेत भेजता है, और फिर दिमाग से यह प्रभावित अंगों में भेजा जाता है.”डॉ. आदिल खान, एक्यूपंक्चरिस्ट
वे आगे बताते हैं, “हम नसों को उत्तेजित कर इन केमिकल्स को रिलीज करते हैं. यह सब एक्यूपंक्चर सुइयों को खास बिंदुओं पर चुभोने से होता है.”
एक्यूपंक्चर दर्द के ‘गेट कंट्रोल’ (gate control) सिद्धांत की तरह काम करता है, जिसकी चर्चा फिट ने पिछले लेख में की थी– जिसमें माना जाता है कि दर्द रीढ़ की हड्डी के ‘गेट’ से गुजरता है.
“एक्यूपंचर कई क्षेत्रों में काम करता है. यह न्यूरोट्रांसमीटर को उत्तेजित करके काम करता है, सीधे हमारे पेन रिसेप्टर्स पर काम करता है, साथ ही दिमाग के पेन सिग्नल्स के रास्ते को नियंत्रित करता है. यह एंडोर्फिन्स के रिलीज होने में भी मदद करता है.”डॉ. निहारिका
क्रोनिक पेन में एक्यूपंक्चर
डॉ. खान कहते हैं, बात जब पुराने दर्द (chronic pain) की हो तो बुनियादी वजह का पता लगाना जरूरी होता है.
“सबसे पहले हम साथ बैठते हैं और बात करते हैं. हम यह पता लगाने की कोशिश करते हैं कि बुनियादी वजह क्या है. उसके हिसाब से हम यह जानने की कोशिश करते हैं कि कौन से अंग प्रभावित हैं, और वे कौन से अंग हैं जिन पर हमें काम करने की जरूरत है. इसके आधार पर हम काम करने के लिए प्रेशर प्वाइंट्स (pressure points) का चुनाव करते हैं."डॉ. आदिल खान, एक्यूपंक्चरिस्ट
“उदाहरण के लिए माइग्रेन को लेते हैं. माइग्रेन थकान से लेकर हाजमा संबंधी समस्याओं कई अलग-अलग वजहों से हो सकता है.”
डॉ. निहारिका सहमति जताते हुए कहती हैं, “माइग्रेन सिर्फ लक्षण है. हम वजह जानने पर ध्यान केंद्रित करते हैं.”
“उदाहरण के लिए, अगर माइग्रेन की शिकायत करने वाले मरीज में इमोशनल ब्लॉकेज, या हार्मोनल इनबैंलेंस है, तो एक्यूपंक्चर क्रमशः उस ब्लॉकेज को हटाने या हार्मोंस को बैलेंस करने के लिए इस्तेमाल किया जाएगा, जो परोक्ष रूप से माइग्रेन को भी ठीक करेगा.”डॉ. निहारिका
डॉ. खान इसे एक उदाहरण के साथ और समझाते हैं. “मान लीजिए कि अगर मरीज को सर्वाइकल स्पॉन्डिलाइटिस (cervical spondylitis) की वजह से माइग्रेन हो रहा है, तो हम उन प्वाइंट्स का चुनाव करते हैं जो स्पोनिलाइटिस का ट्रीटमेंट करेंगे और माइग्रेन को ठीक करने में मदद करेंगे.”
लेकिन क्या यह सचमुच काम करता है?
हालांकि सभी सहमत नहीं है. यहां तक कि कई अध्ययन भी हुए हैं, जो बताते हैं कि एक्यूपंक्चर प्लेसिबो या दिमागी अहसास (placebo) की तरह काम करता है.
एक्यूपंक्चर के समर्थकों का एक तर्क है कि, ‘अगर यह काम करता है, तो क्या फर्क पड़ता है?’
प्लेसिबो इफेक्ट को ऐसी घटना के रूप में परिभाषित किया जाता है, जहां किसी शख्स का शरीर एक ऐसे ट्रीटमेंट के लिए सकारात्मक (या नकारात्मक) प्रतिक्रिया करता है, जिसका हो सकता है कि थेरेपी के तौर पर कोई मूल्य नहीं हो. हालांकि प्लेसिबो इफेक्ट के पीछे का विज्ञान भी अपने आप में संदिग्ध है, इसे आमतौर पर ‘मन की शक्ति’ (power of the mind) से जोड़कर देखा जाता है.
लेकिन प्लेसिबो इफेक्ट के मामले में ऐसा है कि यह असल में शारीरिक प्रतिक्रियाओं की ओर ले जाता है. दर्द से परेशान लोगों के मामले में इसका मतलब यह होता है कि वे अब दर्द महसूस नहीं कर रहे होते हैं.
क्रोनिक पेन के मामले में निश्चित रूप से अंतिम मकसद तो यही होता है.
लेकिन ब्रेन जर्नल में प्रकाशित कार्पेल टनल सिंड्रोम (Carpel Tunnel Syndrome- CTS)– जो कि एक न्यूरोपैथिक पेन डिसऑर्डर है, के मरीजों पर किए गए अध्ययन भी हैं.
इस अध्ययन में पाया गया कि वास्तविक (real) और आभासी एक्यूपंक्चर (sham acupuncture) दोनों से मरीज के CTS लक्षणों में सुधार आया, जबकि शारीरिक सुधार सिर्फ रियल एक्यूपंक्चर के मामले में पाया गया था.
रियल एक्यूपंक्चर के मामले में ब्रेन रीमैपिंग भी हुई, जो CTS के लक्षणों में दीर्घकालिक सुधार दिखाती है.
असल में दुनिया भर में एक्यूपंक्चर का समर्थन करने वाले वैज्ञानिक सबूत इतने दमदार हैं कि इसे औपचारिक रूप से स्वीकार किया जाने लगा है.
भारत के स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा 2019 में चाइनीज एक्यूपंक्चर को एक अलग चिकित्सा पद्धति के रूप में मान्यता दी गई.
“अगर कोई शख्स बुरी तरह दर्द से परेशान था और अब चल-फिर सकता है व सीढ़ियां चढ़ सकता है और 5 साल बाद दर्द से मुक्त जिंदगी जी रहा है, तो आप इसे सिर्फ दिमागी अहसास (placebo) कह कर कैसे खारिज कर सकते हैं?”डॉ. निहारिका
इसके अलावा डॉ. खान का कहना है कि एक्यूपंक्चर को प्लेसिबो कहकर खारिज नहीं किया जा सकता है क्योंकि यह न केवल दर्द को दूर करने में मदद करता है, बल्कि फालिज (paralysis), डायबिटीज और दूसरी बीमारियों के मामले में भी मदद करता है.
वह आगे कहते हैं, “लोग कहते हैं कि हम दर्द को सुन्न कर देते हैं लेकिन अगर हम केवल दर्द को सुन्न कर रहे हैं, तो उन लोगों के बारे में क्या कहेंगे जो फालिज का शिकार हैं? एक्यूपंक्चर से हम उनकी संवेदना वापस पाने की कोशिश कर रहे हैं. मैं सिर्फ दिमागी अहसास से हार्मोनल असंतुलन या बांझपन का इलाज कैसे कर सकता हूं?”
एक्यूपंक्चर पर अभी भी शक करने की एक बड़ी वजह यह है कि हम अभी तक की (Qi), ‘यिन और यांग’ (Yin and Yang) और ‘ऊर्जा प्रवाह’ (energy flow) की प्राचीन चाइनीज अवधारणा का बायोलॉजी और मेडिसिन की हमारी आधुनिक समझ के साथ तालमेल बिठा पाने में नाकाम हैं.
डॉ. रंजन कहते हैं, “यह बहुत सूक्ष्म ऊर्जा है और इसे मुख्यधारा के मेडिकल उपकरणों से नहीं नापा जा सकता है.”
“ऐसे कुछ प्रयोग हुए हैं, जिनमें खास एनर्जी प्वाइंट्स में रेडियोपैक डाई (radioopaque dye) को इंजेक्ट किया गया, जो दर्शाता है कि यह ऊर्जा तमाम रास्तों से कैसे सफर करती है.”डॉ. एस. रंजन
मेरिडियन रूट्स को दिखाने की कोशिश में ऐसा ही एक अध्ययन पॉलीमर मर्कॉक्स (polymer Mercox)– जो एक तरह की वस्कुलर कास्टिंग डाई है, का इस्तेमाल करके चूहों पर किया गया था.
अध्ययन में पाया गया कि एक्यूपंक्चर मेरिडियन का रास्ता लसीका (lymphatic) रूट या रक्त वाहिनी (blood vascular) रूट दोनों से अलग था.
सही तरीके से अमल करना
किसी भी चिकित्सा पद्धति की तरह इसे करने का एक सही तरीका और एक गलत तरीका है.
“आपको सुइयां लगाने की जगह और गहराई का बहुत खास ख्याल रखना चाहिए. आपको उन एक्यूपंक्चर प्वाइंट्स पर खासतौर से सतर्क रहना होगा जो महत्वपूर्ण अंगों के आसपास हैं.”डॉ. आदिल खान, एक्यूपंक्चरिस्ट
डॉ. रंजन इसमें अपनी बात जोड़ते हैं, “थेरेपी की शुरुआत करने वाला आमतौर पर कोहनी या घुटने के नीचे के हिस्से पर काम करेगा. ये अपेक्षाकृत कम जोखिम वाले होते हैं.”
वह कहते हैं, “एक बार जब आप अच्छी तरह से ट्रेनिंग पा लेते हैं, तो आप छाती या चेहरे पर काम कर सकते हैं जहां ब्लड वेसेल या दूसरे महत्वपूर्ण अंगों को इंजरी की संभावना ज्यादा होती है.”
डॉ. खान किसी माहिर शख्स से इसे करवाने के अलावा कुछ ऐसे मामलों के बारे में भी बताते हैं, जहां एक्यूपंक्चर से बचना चाहिए, जैसे DVT (Deep Vein thrombosis)– के मामले में जो ऐसी स्थिति है जिसमें नसों में रक्त के थक्के जमते हैं.
वह कहते हैं, “कुछ ऐसे एक्यूपंक्चर प्वाइंट्स भी हैं, जो गर्भवती महिला के मामले में खतरनाक हैं. अगर शख्स को किसी तरह का संक्रमण या वायरल बीमारी है, तब भी हम एक्यूपंक्चर नहीं करते हैं.”
डॉ. खान यह भी कहते हैं कि ज्यादातर मामलों में ऐसा करना सुरक्षित है.
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