ADVERTISEMENTREMOVE AD

नौजवानों को हार्ट अटैक: क्या वर्कआउट शुरू करने से पहले सीटी स्कैन जरूरी है?

Updated
heart
6 min read
story-hero-img
i
छोटा
मध्यम
बड़ा
Hindi Female

कभी हार्ट अटैक का खतरा सिर्फ बुढ़ापे में माना जाता था.

कन्नड़ अभिनेता पुनीत राजकुमार (Puneeth Rajkumar) की अफसोसनाक मौत घातक हार्ट अटैक का शिकार होने वाले उन नौजवानों की लिस्ट में सबसे नया नाम है, जो आमतौर पर सेहतमंद दिखते हैं. इस मामले ने हमें एक बार फिर बताया है कि अब वैसा नहीं है.

राजकुमार 46 साल के सेहतमंद नौजवान थे, जिंदगी के सबसे अच्छे दौर में थे... जिन्हें वर्कआउट करते समय सीने में तकलीफ हुई.

इसके बाद तो पैदा हुए डर के माहौल में इंटरनेट पर चौतरफा सुझावों, उपायों और बचाव के नुस्खों की बाढ़ आ गई.

ऐसी ही एक सलाह- प्राइम टाइम न्यूज शो में एक हेल्थ प्रोफेशनल की तरफ से आई कि 40 साल से ऊपर की उम्र के सभी लोगों को सीटी स्कैन (CT scan) कराना चाहिए, खासकर अगर आप वर्कआउट की शुरुआत करने जा रहे हैं.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

यह संकरी धमनियों से जुड़ी बीमारियों की जांच और रोकथाम के लिए है, क्योंकि ‘हम भारतीयों में दिल की बीमारियों की आनुवांशिक (genetic) प्रवृत्ति है.’

बिना लक्षण वाले (asymptomatic) और सेहतमंद दिखने वाले लोगों के लिए सीटी स्कैन की जरूरत है या नहीं, इसे सिलसिले में फिट ने पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष और एम्स में कार्डियोलॉजी विभाग के पूर्व प्रमुख प्रोफेसर के. श्रीनाथ रेड्डी और दिल्ली के मैक्स सुपर स्पेशियालिटी अस्पताल में गैस्ट्रोएंट्रोलॉजिस्ट और प्रोग्राम डायरेक्टर डॉ. अश्विनी सेतिया से बात की.

हार्ट अटैक की वजह क्या है?

डॉ. अश्विनी सेतिया कहते हैं कि ऐसे मामलों में हमेशा मौत की वजह सिर्फ हार्ट अटैक नहीं होती.

डॉ. सेतिया कहते हैं, “दिल के मामले में मौत की कई दूसरी वजहें भी हो सकती हैं, जिनमें कोरोनरी आर्टरी में गड़बड़ी (coronary artery anomalies), हार्ट की मांसपेशियों की कुछ बीमारियां, कुछ जन्मजात हार्ट सिंड्रोम और दिल की धड़कन की कुछ समस्याएं भी शामिल हैं.”

0

प्रो. श्रीनाथ रेड्डी इसे समझाते हुए कहते हैं, “हार्ट को ब्लड की सप्लाई करने वाली कोरोनरी आर्टरी में फैट जमा होने और इसके नतीजे में आर्टरी की अंदरूनी परत में प्लाक बन जाने से बीमारी हो सकती है.”

वह बताते हैं कि इसकी सबसे आम वजहों में खराब डाइट, शारीरिक गतिविधि की कमी और स्मोकिंग शामिल हैं.

उन सेहतमंद लोगों के बारे में क्या कहेंगे जिन्हें एक्सरसाइज करते समय हार्ट अटैक होता है?

प्रोफेसर रेड्डी इसे समझाते हुए कहते हैं, ‘किसी भी चीज की अति बुरी होती है और जरूरी है कि बहुत ज्यादा एक्सरसाइज न करें.’

“एक्सरसाइज ब्लड प्रेशर बढ़ाती है और बहुत ज्यादा एक्सरसाइज का दबाव प्लाक को तोड़ देता है. भले ही किसी शख्स में बड़ी रुकावट न हो, तो भी एक्सरसाइज के दौरान ब्लड प्रेशर अचानक बढ़ जाने से नरम प्लाक भी फट सकती है.”
प्रो के. श्रीनाथ रेड्डी, प्रेसिडेंट, पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया, एम्स में कार्डियोलॉजी विभाग के पूर्व प्रमुख
ADVERTISEMENTREMOVE AD

“हम नहीं जानते कि उस दिन उस शख्स के साथ क्या हुआ था,” इस बात के साथ वह समझाते हुए कहते हैं, यहां तक कि एक मामूली सूजन भी ब्लड प्रेशर में अचानक बढ़ोतरी के साथ मिल जाने से प्लाक फटना शुरू हो सकता है.

इस वजह से जब आपको सर्दी हो या आपका शरीर किसी संक्रमण से लड़ रहा हो, तब प्रोफेसर रेड्डी शरीर पर बहुत जोर देने वाली एक्सरसाइज नहीं करने की सलाह देते हैं.

सीटी स्कैन कराएं या नहीं

तो, क्या इसका मतलब यह है कि हर किसी को सिर्फ आशंका दूर करने के लिए एक्सरसाइज की शुरुआत करने से पहले डायग्नोस्टिक स्क्रीनिंग करानी चाहिए?

क्या सीटी स्कैन ऐसे हादसे को रोक सकता है?

डॉ. अश्विनी सेतिया कहते हैं,

“बिना लक्षण वाले मरीजों में हार्ट अटैक की भविष्यवाणी करने में सीटी कोरोनरी एंजियोग्राफी (CT coronary angiography) के कारगर होने को लेकर भारत में बड़ी आबादी पर कोई अध्ययन नहीं किया गया है.”
ADVERTISEMENTREMOVE AD

उनका यह भी कहना है कि जॉन्स हॉपकिन्स यूनिवर्सिटी का खासतौर पर इस विषय पर एक शोध है– जो इसके उलट नतीजे दिखाता है.

“जॉन हॉपकिन्स यूनिवर्सिटी के कुछ साल पहले प्रकाशित शोध पत्र में निष्कर्ष था कि बिना लक्षण वाले मरीजों में सीटी एंजियोग्राफी स्क्रीनिंग से सीधे फायदे के बिना किसी शख्स को ज्यादा दवाएं, टेस्ट और प्रोसीजर से गुजरना पड़ता है.”

“अध्ययन में शामिल लोगों की हार्ट अटैक या कार्डियक डेथ की घटनाएं बराबर थीं, चाहे मरीजों ने सीटी एंजियोग्राफी टेस्ट कराया था या नहीं.”
डॉ. अश्विनी सेतिया, प्रोग्राम डायरेक्टर, मैक्स सुपर स्पेशियालिटी हॉस्पिटल, दिल्ली

प्रो. रेड्डी बताते हैं कि इसके अलावा सीटी स्कैन सॉफ्ट प्लाक को पकड़ पाने में कामयाब नहीं हो सकता है, और जैसा कि हमने पहले कहा है, यह भी जानलेवा साबित हो सकता है.

लेकिन ऐसा भी नहीं कि इसका कोई फायदा नहीं है. डॉ. सेतिया उन खास हालात की बात करते हैं, जिनके तहत सीटी स्कैन फायदेमंद हो सकता है.

ADVERTISEMENTREMOVE AD
“CT कोरोनरी एंजियोग्राम (CTCA) का इस्तेमाल बिना लक्षण वाले पुरुष मरीजों में कोरोनरी आर्टरी डिजीज (CAD) के लिए क्लीनिकल रूप से जरूरी स्क्रीनिंग के लिए किया जा सकता है, खासतौर से बीमारी की फैमिली हिस्ट्री वाले या डायबिटीज, हाई ब्लड प्रेशर और एबनॉर्मल लिपिड प्रोफाइल जैसे 3 से ज्यादा जोखिम कारकों वाले संभावित हाई रिस्क मरीजों के लिए.”
डॉ. अश्विनी सेतिया, प्रोग्राम डायरेक्टर, मैक्स सुपर स्पेशियालिटी हॉस्पिटल, दिल्ली

उनका यह भी कहना है, “40 साल से ऊपर की बताई गई आबादी में CTCA करने की भारी लागत के चलते इसको अमल में लाना नामुमकिन विकल्प लगता है.”

डॉ. सेतिया का निष्कर्ष है,

“इसलिए, जबकि एक तरफ सावधानी के लिए कार्डियक टेस्ट कराने की सिफारिश बिना लक्षण वाले उन मरीजों के एक खास सबसेट के लिए सही हो सकती है, जो हाई इन्टेन्सिटी एक्सरसाइज करना चाहते हैं, लेकिन इसे बड़े पैमाने पर सबके लिए जरूरी कर आम चलन नहीं बनाया जा सकता है.”
ADVERTISEMENTREMOVE AD

‘भारतीय हार्ट डिजीज जीन’

प्रोफेसर रेड्डी का कहना है कि, भारतीयों में हार्ट अटैक और कोरोनरी डेथ का ज्यादा आनुवांशिक जोखिम होता है, यह सोच 50 के दशक में दूसरे देशों में हुए अध्ययन से आती है.

वह कहते हैं. “तब यह पाया गया कि भारतीयों में डायबिटीज होने की संभावना अधिक है. इनमें पेट की चर्बी होने की अधिक संभावना है.”

प्रो. रेड्डी का कहना है कि लेकिन इसके बाद किए गए अध्ययन लाइफस्टाइल को बहुत ज्यादा जिम्मेदार बताते हैं.

वह कहते हैं, “हम ग्रामीण भारतीयों की तुलना शहरी भारतीयों से करते हैं, और शहरी भारतीयों की तुलना प्रवासी भारतीयों से करते हैं. जोखिम का एक निश्चित अनुपात दिखता है.”

“ग्रामीण भारतीयों में उस स्तर का जोखिम नहीं है. शहरी भारतीयों में जोखिम का स्तर ज्यादा है और प्रवासी भारतीय जो पश्चिमी देशों को गए थे, लाइफस्टाइल में बदलाव के चलते निश्चित रूप से उनको बहुत ज्यादा जोखिम है.”
प्रो. के श्रीनाथ रेड्डी, प्रेसिडेंट, पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया, एम्स में कार्डियोलॉजी विभाग के पूर्व प्रमुख
ADVERTISEMENTREMOVE AD

प्रोफेसर रेड्डी उन अध्ययनों के बारे में भी बात करते हैं, जो हाल ही में शहर आए कारखानों के कामगारों की तुलना अब भी गांवों में रह रहे उनके भाई-बहनों से करते हैं. इसके दिलचस्प नतीजे सामने आए थे.

“लोगों में कार्डियोवस्कुलर जोखिम की वजहें शहरी क्षेत्रों में हैं और उनके जोखिम कारक लंबे समय से शहर में रहने वालों को चपेट में ले रहे हैं और इसलिए, ट्रॉमा में कोरोनरी रिस्क ज्यादा है.”
प्रो. के. श्रीनाथ रेड्डी, चेयरमैन, पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया, एम्स में कार्डियोलॉजी विभाग के पूर्व प्रमुख

फिर जेनेटिक्स की क्या भूमिका है?

प्रो. रेड्डी बताते हैं, “इसके साथ ही ढेर सारी जेनेटिक्स स्टडी की गई हैं. ऐसा कोई भी एक जीन पहचाना नहीं गया है और यहां तक कि अगर कई जीन को एक साथ मिलाया गया तो भी वे 10 फीसद से ज्यादा जोखिम की हिस्सेदारी नहीं रखते हैं.”

ADVERTISEMENTREMOVE AD

वह जेनेटिक्स और हार्ट डिजीज के बीच संबंध को पूरी तरह से नकारते नहीं हैं. वह कहते हैं, “इसकी संभावना हो सकती है, भले ही साफ तौर पर परिभाषित न किया जा सके. लेकिन हम यह बात जानते हैं कि पर्यावरण और हमारे जीने का तरीका ही मुख्य कारण है.

निष्कर्ष

“ऐसी बहुत सी चीजें हैं, जिन पर हमें केवल यह कहने के बजाए सोचने की जरूरत है कि किसी को एक्सरसाइज शुरू करने से पहले ऐसा करने या कोई खास डायग्नोस्टिक टेस्ट कराने की जरूरत है.”
प्रो. के श्रीनाथ रेड्डी, चेयरमैन, पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया, एम्स में कार्डियोलॉजी विभाग के पूर्व प्रमुख

वह कहते हैं, “हर किसी को औसत दर्जे की एक्सरसाइज करनी चाहिए. और अगर जोखिम मौजूद है तो आपको रूटीन टेस्ट कराकर जांच करानी चाहिए और दूसरी सावधानियों पर अमल करना चाहिए.”

प्रो. रेड्डी के सुझाए गए रूटीन टेस्ट में ब्लड प्रेशर, ब्लड शुगर और ब्लड लिपिड टेस्ट शामिल हैं.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

डॉ. सेतिया कहते हैं, “उन लोगों के लिए जिनको दिल की बीमारियों के लिए निश्चित हाई-रिस्क फैक्टर हैं, उनके लिए एक विस्तृत कार्डियक चेक-अप सहित सालाना हेल्थ चेकअप सही से होना चाहिए. इन हाई-रिस्क फैक्टर को दुरुस्त करना जरूरी है.”

डॉ. सेतिया और प्रो. रेड्डी दोनों ही सेहतमंद लाइफस्टाइल पर जोर देते हैं जो हार्ट के लिए सबसे अच्छा उपाय है.

“नियमित खाना और कम शुगर व कार्बोहाइड्रेट्स वाली बैलेंस डाइट कुल जरूरी कैलोरी के 50 फीसद से ज्यादा नहीं होना, नियमित लेकिन औसत दर्जे की एक्सरसाइज, 7 घंटे की नींद और स्मोकिंग और ज्यादा अल्कोहल से परहेज करना (ये सभी मददगार हो सकते हैं).”
डॉ. अश्विनी सेतिया, प्रोग्राम डायरेक्टर, मैक्स सुपर स्पेशियालिटी हॉस्पिटल, दिल्ली

प्रोफेसर रेड्डी ‘शहरी लाइफस्टाइल’ के एक और बाई प्रोडक्ट की ओर इशारा करते हैं, जो इसके लिए जिम्मेदार है. वह कहते हैं, “हमने महसूस किया है कि तनाव (stress) उन बड़े कारकों में से एक है जो ब्लड में कैटेकोलामाइन (catecholamines) को बढ़ा सकते हैं और इस तरह सॉफ्ट प्लाक को तोड़ सकते हैं.”

(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

Published: 
सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
अधिक पढ़ें