नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे 4 के मुताबिक उत्तर प्रदेश में 12 से 23 महीने के लगभग आधे (48.9%) बच्चों का पूरा टीकाकरण नहीं हुआ है. बिहार में ये आंकड़ा 39.3% है.
उत्तर प्रदेश और बिहार टीकाकरण के मामले में देश के सबसे पिछड़े राज्यों में से हैं. देश के दूसरे राज्यों में भी कई जिले ऐसे हैं, जहां टीकाकरण से छूट गए बच्चों की भारी संख्या है.
ऐसे ही इलाकों में टीकाकरण बढ़ाने के लिए केंद्र सरकार ने 31 अक्टूबर को ‘सघन मिशन इंद्रधनुष 2.0’ यानी ‘इंटेन्सिफायड मिशन इंद्रधनुष 2.0’ (IMI) का उद्घाटन किया. ये मिशन इसी साल दिसंबर से लागू किया जाएगा.
क्या है मिशन इंद्रधनुष?
मिशन इंद्रधनुष, केंद्र सरकार की एक मुहिम है जिसके जरिए जिन बच्चों और गर्भवती महिलाओं का टीकाकरण हुआ ही नहीं है या अधूरा रह गया है, उनका टीकाकरण किया जाता है.
‘सघन मिशन इंद्रधनुष 2.0’ इसी मुहिम का दूसरा चरण है. इस चरण में देश भर के 29 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के 271 जिलों में टीकाकरण किया जाएगा. इन सभी जिलों में टीकाकरण का कवरेज 70% से भी कम है.
इन 271 जिलों के साथ ही इस योजना का खास ध्यान उत्तर प्रदेश और बिहार पर होगा. दोनों राज्यों के 109 जिलों के 652 ब्लॉक में इस योजना के तहत टीकाकरण किया जाएगा.
उत्तर प्रदेश और बिहार में टीकाकरण के आंकड़े
नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे 4 के आंकड़ों के अनुसार उत्तर प्रदेश में 2005-06 में 12 से 23 महीने के 77% बच्चों का पूरा टीकाकरण नहीं हुआ था, ये आंकड़ा 2015-16 में घट कर 48.9% पर आ गया. 2015-16 तक शहरी इलाकों में 46.4% और ग्रामीण इलाकों में 49.6% बच्चों का पूरा टीकाकरण नहीं हुआ.
बिहार में 2005-06 में 12 से 23 महीने के 67.2% बच्चों का पूरा टीकाकरण नहीं हुआ था, ये आंकड़ा 2015-16 में घटकर 38.3% पर आ गया. बिहार के शहरी इलाकों में ये आंकड़ा 40.3% और ग्रामीण इलाक़ों में 38.10% है.
उत्तर प्रदेश, राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के टीकाकरण और बाल स्वास्थ्य के जनरल मैनेजर, डॉ वेद प्रकाश कहना है कि उत्तर प्रदेश ने पहले के मुकाबले अब काफी सुधार किया है.
उन्होंने बताया कि स्वास्थ्य मंत्रालय के तहत आने वाले हेल्थ मैनेजमेंट इंफॉरमेशन सिस्टम (HMIS) के हाल के आंकड़ों के हिसाब से उत्तर प्रदेश में 2019 में पूर्ण टीकाकरण कवरेज बढ़कर 87% हो गया है.
वेद प्रकाश ने ये भी बताया कि यूपी और बिहार में आंकड़ों में कमी का एक कारण पलायन भी है. उन्होंने कहा,
ज्यादातर मजदूर जो अपने ठिकाने बदलते रहते हैं, उनके बच्चों को कभी कभी टीका नहीं लग पाता है और कुछ ना कुछ पर्सेंट छूटता रहता है.
देश में टीकाकरण के आंकड़े
नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे 4 के अनुसार भारत में 12 से 23 महीने के 38% बच्चों का पूरा टीकाकरण नहीं हुआ है.
स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय की जनवरी 2019 की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में पिछले तीस साल से टीकाकरण पर काम हो रहा है. इसके बावजूद 12 से 23 महीने के बच्चों के टीकाकरण की दर बहुत ही धीमी गति से आगे बढ़ रही है.
हर साल टीकाकरण में 1% की दर से बढ़त हो रही है. साल 1992-93 में देश में टीकाकरण का कवरेज 35% से 2015-16 में 62% तक पहुंच पाया है.
टीकाकरण क्यों महत्वपूर्ण है?
UNICEF के अनुसार भारत का नियमित टीकाकरण कार्यक्रम 2.7 करोड़ शिशुओं और 3 करोड़ गर्भवती महिलाओं तक पहुंचा है और इसके कारण हर साल भारत में 400,000 बच्चों की जान बची है.
स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के अनुसार टीकाकरण की वजह से 5 साल से कम उम्र के बच्चों की मृत्यु दर में काफी कमी आई है.
1990 में पांच साल से कम उम्र के 33 लाख बच्चों की मृत्यु हुई जो कि 2015 तक, टीकाकरण की वजह से, घट कर 12 लाख रह गई.
वर्ल्ड बैंक का कहना है कि भारत एक ऐसा देश है जहां स्वास्थ्य पर होने वाला 65% खर्च सीधे आम आदमी को अपनी जेब से उठाना पड़ता है. ऐसे में टीकाकरण लोगों को बड़ी बीमारियों और उसके इलाज में होने वाले और भी बड़े खर्च से बचाता है.
टीकाकरण से जुड़ी चुनौतियां
तमाम कोशिशों के बावजूद नतीजों में तेजी से बदलाव नहीं आ पा रहे हैं. स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण राज्य मंत्री, अश्विनी कुमार चौबे ने लोकसभा में 21 जून 2019 को एक सवाल के जवाब में बताया कि बच्चों का टीकाकरण ना होने या अधूरा छूटने का सबसे बड़ा कारण लोगों में टीकाकरण के फायदों को लेकर जानकारी की कमी है.
इसके साथ ही उन्होंने और कुछ कारण भी गिनाए जिसमें टीकाकरण के तुरंत बाद होने वाले प्रतिकूल प्रभाव, जैसे बुखार, टीके से जुड़ी भ्रांतियां, बच्चे का एक जगह ना रह पाना, टीका लगवाने से साफ इंकार करना और क्रियान्वयन की खामियां शामिल हैं.
जागरुकता फैलाने के नए तरीके
राष्ट्रीय सुरक्षा मिशन के वेद प्रकाश ने बताया कि अब नई तकनीक के जरिए नई तरह से बात कहने की जरूरत है.
उन्होंने कहा, “जिन इलाकों में बच्चे टीका नहीं लगवाते और जिन परिवारों का रुझान टीका लगवाने से इंकार करने का है, उनकी अब हम पहचान करने लग गए हैं. लोकल स्तर पर जागरुकता बैठक की जाती है, जिन बच्चों का पूर्ण टीकाकारण हो चुका है, उनकी सराहना की जाती है, ये सब काफी समय से हो रहा था. अब हमने आशा और आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं को सामाजिक लामबंदी की ट्रेनिंग दे कर तैयार कर दिया है. साथ ही कुछ जिलों में नुक्कड़ नाटक किए जाते हैं, दीवारों पर लिखाई की जाती है.”
वेद प्रकाश के मुताबिक अब सोशल मीडिया का इस्तेमाल भी शुरू किया है. लोगों को टीके की जरूरत नहीं महसूस होती है, तो वो टीका नहीं लगवाते हैं. इसलिए अब कम्युनिकेशन स्ट्रैटेजी में बदलाव किए गए हैं.
जो विज्ञापन अब हम दे रहे हैं, वो बीमारी के खतरे पर केंद्रित है, ताकि लोगों को लगे कि अगर हम टीका नहीं लगवाएंगे तो बड़ा नुकसान हो जाएगा. इसका काफी अच्छा असर देखने को मिल रहा है.वेद प्रकाश
उन्होंने ये भी बताया कि लोगों तक नए टीकों से जुड़ी जानकारी और जागरुकता पहुंचाना जरूरी है.
(इस आर्टिकल को इंडियास्पेंड से लिया गया है. साधिका इंडियास्पेंड में विशेष संवाददाता हैं. यहां पढ़ें पूरा आर्टिकल.)
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