मकर संक्रांति, लोहड़ी, पोंगल, पेड्डा पंडुगा या माघ बिहू, पूरे भारत में मनाया जाने वाला फसलों का त्योहार. परंपरागत रूप से ये त्योहार रबी की फसल की कटाई के साथ जुड़ा है. ये पतंग, नाव, मेले और अलाव का त्योहार भी है, जो सर्दियों के अंत को दर्शाता है.
ग्रेग्रोरियन कैलेंडर के अनुसार ये त्योहार हर साल लगभग एक ही तारीख को पड़ते हैं. इस दौरान सूर्य दक्षिणायण से उत्तरायण होने की अपनी यात्रा शुरू करता है.
भले ही हर क्षेत्र की धार्मिक परंपराएं अनूठी होती हैं, लेकिन त्योहारों पर तैयार किए जाने वाले व्यंजन समानता की एक ऐसी साझी डोर हैं, जो पूरे देश को बांधती है.
त्योहारों की थाली, जिसमें तिल और गुड़ के क्रंची लड्डू, खिचड़ी का जबरदस्त स्वाद, मौसमी सब्जियों का दिल को लुभाने वाला मिश्रण और घी के साथ बाजरे की रोटी का स्वाद है.
आयुर्वेदिक फिजिशियन डॉ अर्चना गांवकर कहती हैं, मौसम में बदलाव शरीर को प्रभावित करते हैं.
भारतीय कैलेंडर के अनुसार शिशिर ऋतु (सर्दियों का मौसम) सबसे ठंडी होती है. जैसे-जैसे बाहर ठंड होती है, अग्नि (पाचन शक्ति) बढ़ती है और इसके परिणाम स्वरूप बाल और स्किन ड्राई हो जाते हैं. खुद को बचाने के लिए हमें शरीर को गर्म रखने की जरूरत होती है. मकर संक्रांति के अवसर पर खाई जाने वाली चीजें आवश्यक पोषक तत्व प्रदान करती हैं.
तिल और गुड़
तिल को गुड़ और मेवों के साथ मिला कर रेवड़ी, लड्डू, तिलकुट और गजक बनाया जाता है. यह सर्दी के सीजन का सार होते हैं. भुने हुए तिल या तो साबूत या कुटे हुए होते हैं, जिन्हें सुनहरे रंग के गुड़ की चाशनी के साथ मिलाया जाता है और स्वाद बढ़ाने के लिए इस चाशनी में इलायची भी मिलाई जा जाती है.
गांवकर कहती हैं, 'आयुर्वेद, तिल और उसके तेल को बहुत महत्व देता है. ये मीठा, तीखा, कड़वा और कसैली प्रवृत्ति का होने के कारण वात दोष में संतुलन बनाता है, जिससे स्निगधता (लुब्रीकेशन) मिलती है.'
न्यूट्री एक्टिवेनिया की फाउंडर, न्यूट्रिशनिस्ट और वेलनेस कोच अवनी कौल कहती हैं, 'यह गर्माहट भी देता है, श्वसन प्रणाली के लिए अच्छा होता है, आयरन से भरपूर होता है और एक कार्डियक टॉनिक है.'
तिल कैल्शियम और जिंक से भरपूर होता है. इसमें सेसामोल नाम का एक एंटी-इंफ्लेमेटरी कंपाउंड होता है, जो एथेरोस्क्लेरोसिस (धमनी में वसा, कोलेस्ट्रॉल और दूसरे पदार्थों का निर्माण) को रोकता है. आयरन से भरपूर गुड़ खाने से प्रतिरोधक क्षमता (इम्यूनिटी) बढ़ती है और सर्दी-खांसी से बचाव होता है.
ये खाद्य पदार्थ सर्दी के दौरान गर्माहट प्रदान करते हैं और पाचन में सहायता करते हैं.
इन वस्तुओं को संतुलित रूप में लेना और फिजिकली एक्टिव होना एक हेल्दी फेस्टिवल की कुंजी है.अवनी कौल
खिचड़ी
चावल, मूंग दाल, सर्दियों में उगने वाली रंग-बिरंगी सब्जियां, जीरा, सरसों, काली मिर्च, दालचीनी या लौंग का मिश्रण है खिचड़ी. इसके साथ ही ऊपर से घी इसका स्वाद बढ़ा देता है.
आयुर्वेद के अनुसार, यह पौष्टिक व्यंजन पचने में आसान होने के साथ ही तीनों दोषों (वात, पित्त, कफ) को संतुलित करता है.
मिक्स वेजिटेबल
यह फूलगोभी, पत्ता गोभी और मटर, विभिन्न प्रकार की फलियां, कई साग और जड़ वाली सब्जियां जैसे गाजर और मूली का भरपूर आनंद लेने का मौसम है.
गांवकर बताती हैं, 'जड़ों, कंदमूल, हरे चने और बेर (फल) के साथ तैयार की गई मिक्स सब्जी, बाजरे की रोटी के साथ खाई जाती है. यह हर अंग को पोषण देती है और हमारे शरीर को शुद्ध करती है.'
स्थानीय और मौसमी सब्जियों के कारण पूरे भारत में संक्रांति के पारंपरिक उत्सव में एक अनूठी क्षेत्रीय विशेषता होती है.
गुजरातः उंधियू
गुजरात में, उंधियू, एक सब्जी है जो परंपरागत रूप से मिट्टी के बर्तनों में पकाई जाती थी. यह मकर संक्रांति का फ्लेवर है. अपनी रेसिपी शेयर करते हुए अहमदाबाद की पूर्णिमा पटेल बताती हैं,
बैंगन में मसाले, आलू, शकरकंद और ताज़े अरहर के बीज, पापड़ी और वालर भर कर उसे अजवायन के साथ तड़का लगाया जाता है. इसे हरी मिर्च, अदरक और लहसुन के पेस्ट के साथ पकाया जाता है. लास्ट में, मुठिया, कटे हुए मेथी के छोटे तले हुए गोले, गेहूं का आटा, बेसन और मसाले भी मिलाए जाते हैं. डिश को कटा हुआ धनिया और पीसे हुए नारियल के साथ गार्निश किया जाता है.
महाराष्ट्र: भोगीची भाजी
महाराष्ट्र में, मकर संक्रांति के दिन एक मिक्स सब्जी की डिश "भोगीची भाजी" जरूर बनाई जाती है. माई फूड कोर्ट की माधुली अजय बताती हैं, 'भोगची भाजी को पारंपरिक रूप से मकर संक्रांति से एक दिन पहले गाजर, आलू, बैंगन, हरे चने और बेर के साथ बनाया जाता है. कभी-कभी गन्ने के टुकड़े भी डाले जाते हैं. मोटे तौर पर भुनी हुई मूंगफली और तिल का पाउडर एक क्रंच और सोंधा स्वाद प्रदान करता है.' इसे बाजरा भाकरी के साथ परोसा जाता है.
तमिलनाडु: कुझाम्बु
बेंगलुरु की काउंसलर चंद्रिका आर कृष्णन कहती हैं, पोंगल एक फसल उत्सव है, घर में उगाई जाने वाली सब्जियां कदंबा कूटू या कुझाम्बु, एक मिक्स वेज ग्रेवी बनाने के लिए प्रयोग की जाती थी.
'हम कच्चे केले, शकरकंद, सीताफल, कद्दू, याम, अरबी, बैंगन, लोबिया, सेम और दूसरे बीन्स, आलू और वैकल्पिक सब्जियों जैसे सहजन, चाउ-चाउ और भिंडी का यूज करते हैं.'
- ग्रेवी का मसाला सूखी लाल मिर्च, धनिया के बीज, भुना हुआ बंगाल चना और ताजा नारियल से तैयार किया जाता है. इन्हें पीसकर बारीक पाउडर बना लिया जाता है.
- इस रेसिपी में सब्जियों को समान आकार में काटना और प्रेशर कुकर में पकाना शामिल है. इसके अलावा इसमें भिंडी, सहजन और अरबी शामिल हैं, जिन्हें अलग से पकाने की जरूरत होती है.
- एक बार सब्जी तैयार हो जाने के बाद इसमें इमली का पेस्ट, नमक, हल्दी पाउडर, उबली हुई अरहर की दाल और मसाले का मिश्रण डाला जाता है. फिर इसे सरसों, मेथी, हींग और करी पत्ते के साथ तड़का लगाया जाता है.
इन व्यंजनों में छह स्वादों, मीठा, खट्टा, नमकीन, कड़वा, तीखा और कसैला का मिश्रण होता है. इसका उल्लेख आयुर्वेद में भोजन को पूर्ण और संपूर्ण बनाने के लिए किया गया है. हमारे पूर्वजों ने इष्टतम पोषण प्रदान करने और मौसमी खाद्य पदार्थों का सेवन सुनिश्चित करने के लिए इसे त्योहार के साथ जोड़ा है.
पीढ़ियों से चली आ रही ये रेसिपीज एक सतत जीवन शैली का समर्थन कर हमें हमारी जड़ों से जोड़ती हैं, जो मौजूदा समय में जरूरी है.
(नूपुर रूपा एक फ्रीलांस राइटर हैं और मदर्स की लाइफ कोच हैं. ये पर्यावरण, भोजन, इतिहास, पालन-पोषण और यात्रा पर लेख लिखती हैं.)
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