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पूरे परिवार की साथ में सुसाइड से मौत, कौन से फैक्टर हैं जिम्मेदार?

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(अगर आपके मन में भी सुसाइड का ख्याल आ रहा है या आपके जानने वालों में कोई इस तरह की बातें कर रहा हो, तो लोकल इमरजेंसी सेवाओं, विशेषज्ञों, हेल्पलाइन और मेंटल हेल्थ NGOs के इन नंबरों पर कॉल करें.)

राजस्थान में घर के बेटे की मौत के पांच महीने बाद चार लोगों के पूरे परिवार की सुसाइड से मौत हो गई. यह घटना 21 फरवरी, 2021 के शाम की है.

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक परिवार (पति-पत्नी और दोनों बेटियां) ने घर के बेटे की मौत के बाद जिंदगी से निराश हो कर ये फैसला लिया. आसपास के लोगों ने बताया कि बेटे की मौत के बाद से पूरा परिवार अवसाद में था और दुनिया से कट गया था.

पूरे परिवार का सुसाइड से अंत का ये कोई पहला मामला नहीं है, अक्सर ऐसी खबरें आती हैं कि परिवार ने किसी वजह से एक-साथ सुसाइड का फैसला किया.

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पूरे परिवार के सुसाइड की घटना

सुसाइड मौत का एक प्रमुख कारण है और ऐसे कई कारक हैं, जो सुसाइड में योगदान देते हैं, लेकिन पूरे परिवार की एक साथ सुसाइड से मौत यानी एक ही जगह और वक्त पर एक ही वजह से दो या दो से अधिक लोगों की सुसाइड से मौत पर शोध कम हैं.

फैमिली सुसाइड: क्या कहते हैं आंकड़े?

परिवार के सदस्यों की एक साथ सुसाइड से मौत के मामलों की रिपोर्ट में बढ़ोतरी को देखते हुए, सरकार ने 2009 से इस तरह के मामलों का डेटा जुटाना शुरू कर दिया है.

इसके मुताबिक फैमिली सुसाइड से साल 2010 में 290 लोगों की जान गई और 2013 में ये संख्या 108 रही. सुसाइड की इस खास कैटेगरी की कोई रिपोर्ट नहीं होने यानी जानकारी न दिए जाने के कारण राष्ट्रीय आंकड़े असल से कम हो सकते हैं.

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पूरे परिवार की सुसाइड से मौत के लिए जिम्मेदार फैक्टर्स

भारत में फैमिली सुसाइड के मामलों में आमतौर पर आर्थिक तंगी मुख्य वजह देखी गई है. इसके अलावा अवसाद या दूसरी मानसिक बीमारियां और सामाजिक वजहें हो सकती हैं.

फैमिली सुसाइड की घटनाओं की वजहों में ज्यादातर अत्यधिक गरीबी और कर्ज सामने आती है, हालांकि दूसरे कारक जैसे परिवार के सदस्य की असाध्य बीमारी या मौत, परिवार के लिए अपमानजनक घटनाएं और अंधविश्वास का भी योगदान हो सकता है.

जसलोक हॉस्पिटल और रिसर्च सेंटर में साइकियाट्री डिपार्टमेंट की एसोसिएट डायरेक्टर डॉ शमसह सोनावाला कहती हैं,

“डिप्रेशन के कारण नाउम्मीदी और निराशा फैमिली सुसाइड के प्रमुख कारकों में से एक हैं. इसे ट्रिगर करने में वित्तीय नुकसान, पेशेवर कठिनाइयां, पारस्परिक कठिनाइयां जैसे हालात शामिल हैं.”

सुसाइड में आर्थिक संकट और मानसिक बीमारियों का योगदान

इंडियन लॉ सोसाइटी के सेंटर फॉर मेंटल हेल्थ लॉ एंड पॉलिसी के डायरेक्टर और कंसल्टेंट साइकियाट्रिस्ट डॉ सौमित्र पथारे कहते हैं कि सुसाइड और डिप्रेशन के बीच लिंक को लेकर जितने डेटा हैं, वो ज्यादातर पश्चिमी देशों के हैं, जिसके मुताबिक सुसाइड के करीब 80 फीसदी मामलों में डिप्रेसिव बीमारियों की बात सामने आई है, ये पश्चिमी देशों के लिए सही है, लेकिन भारत में ऐसा नहीं है.

भारत में पाया गया है कि सुसाइड के 50 फीसदी मामलों में मेंटल हेल्थ से जुड़ी समस्या हो सकती हैं, लेकिन बाकी के 50 फीसदी मामलों में ऐसा नहीं होता है.
डॉ सौमित्र पथारे

साल 2000 में केरल राज्य के चार जिलों से फैमिली सुसाइड के 32 मामलों पर की गई स्टडी में वित्तीय संकट को मुख्य कारण के तौर पर रिपोर्ट किया गया था. वित्तीय संकट 32 में से 11 यानी 34.4% घटनाओं में वजह पाया गया.

32 में से 5 यानी 15.6% मामलों में मानसिक बीमारी और 8 (22.6%) मामलों में सुसाइड में शामिल कम से कम किसी एक शख्स में बड़ी शारीरिक बीमारी नोट की गई.

साल 2018 में दिल्ली के बुराड़ी में एक ही परिवार के 11 लोगों की सुसाइड से मौत हो गई थी. इस सामूहिक सुसाइड के मामले में शेयर्ड साइकोटिक डिसऑर्डर से लिंक की जांच हुई थी.

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ऐसा क्या है, जिससे आखिर में लोग सुसाइड कर लेते हैं?

ऐसा क्या है, जिससे कोई आखिर में खुदकुशी का कदम उठा लेता है, इस पर डॉक्टर कोई एक कारण या साफतौर पर किसी वजह का उल्लेख नहीं करते हैं. शायद कोई एक कारण होता ही नहीं है. इसके साथ ब्रेन में क्या चल रहा होता है, भावनात्मक झुकाव, व्यक्तित्व, जीवन के अनुभव और जिंदगी की हकीकत- सभी की भूमिका होती है.

ऐसे लोग जो जिंदगी में निगेटिव घटनाओं या मनोरोग संबंधी विकार या किसी भी तरह के मनोवैज्ञानिक संकट या निराशा का सामना करते हैं, उनमें आत्महत्या की प्रवृत्ति का विकास होता है.

यह निराशा की भावना है, जो किसी को इस दिशा में ले जाती है.

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करीबी की मौत के गम से उबर न पाना

किसी अपने की मौत के बाद उसके बगैर जीवन बेकार महसूस होना, जीवन में कोई मकसद महसूस न होना दुःख की जटिलता को उजागर करता है.

कुछ लोगों के लिए, शोक की प्रक्रिया लंबे समय तक चल सकती है और ये तब अधिक होती है, जब किसी बेहद करीबी की मौत हुई हो. कभी-कभी यह जटिल दु:ख का रूप ले लेता है. जब कोई लंबे समय तक प्रियजन को खोने के गम से बाहर नहीं निकल पाता, इसे जटिल दुःख कहते हैं.

प्रियजन की मौत से पूरा परिवार प्रभावित होता है. हर परिवार का इससे मुकाबला करने के अपने तरीके होते हैं, परिवार का दृष्टिकोण और प्रतिक्रिया सांस्कृतिक और आध्यात्मिक मूल्यों के साथ-साथ परिवार के सदस्यों के बीच आपसी संबंध पर निर्भर करती है. एक शोक संतप्त परिवार को अपना संतुलन हासिल करने में समय लगता है.

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दु:ख, अवसाद और इनके बीच का अंतर

दु:ख और अवसाद के बीच भेद करना हमेशा आसान नहीं होता है, लेकिन अंतर बताने के तरीके हैं. याद रखें, शोक एक रोलर कोस्टर हो सकता है. इसमें कई तरह की भावनाएं और अच्छे और बुरे दिनों का मिश्रण शामिल है. जब आप दुख की प्रक्रिया के बीच में होते हैं, तब भी आपके पास खुशी या खुशी के क्षण होंगे. दूसरी ओर, अवसाद के साथ शून्यता और निराशा की भावनाएं निरंतर रहती हैं.

अगर इससे न उबरा जाए तो जटिल दु:ख और अवसाद महत्वपूर्ण भावनात्मक क्षति, जीवन के लिए खतरनाक स्वास्थ्य समस्याओं और यहां तक कि सुसाइड तक का कारण बन सकते हैं.

लक्षण जो अवसाद का संकेत देते हैं, न कि केवल दु:ख

  • अपराधबोध की तीव्र भावना
  • सुसाइड के विचार
  • निराशा या निर्थक जीवन की भावना
  • मूवमेंट और स्पीच की धीमी गति
  • घर या बाहर कोई भी काम करने में असमर्थ महसूस करना
  • उन चीजों को देखना या सुनना जो वहां नहीं है

अगर आप जटिल दु:ख या क्लीनकल डिप्रेशन के लक्षणों का अनुभव कर रहे हैं, तो तुरंत एक मानसिक स्वास्थ्य पेशेवर से बात करें.

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क्या फैमिली सुसाइड को रोका जा सकता है?

डॉ शमसह सोनावाला के मुताबिक अक्सर, ऐसी संभावना रहती है कि कम से कम परिवार के एक सदस्य ने सुसाइड के इरादे को अपने किसी परिचित के सामने जाहिर किया हो.

सुसाइड के इरादे के हर उल्लेख को बहुत गंभीरता से लेना महत्वपूर्ण है, ऐसे में उसकी बात संवेदना और सहानुभूति के साथ सुनना और पेशेवर मदद लेने के लिए व्यक्ति से आग्रह किया जाना चाहिए.
डॉ शमसह सोनावाला, एसोसिएट डायरेक्टर, साइकियाट्री डिपार्टमेंट, जसलोक हॉस्पिटल और रिसर्च सेंटर, मुंबई

वहीं अपने किसी करीबी को खोने के बाद हर किसी को इमोशनल सपोर्ट की जरूरत होती है. यही सपोर्ट गम से उबर पाने और हालात को अपनाने में मददगार हो सकता है.

किसी गम से उबरने के लिए पेशेवर मदद

परिवार के सदस्य, दोस्त, सपोर्ट ग्रुप, सामुदायिक संगठन या मानसिक स्वास्थ्य पेशेवर (थेरेपिस्ट या काउंसलर) सभी से मदद मिल सकती है.

Bereavement काउंसलिंग एक खास तरह की प्रोफेशनल मदद है. इस तरह की काउंसलिंग से संकट के उस स्तर में कमी देखी गई है, जिससे शोक करने वाले अपने प्रियजन की मृत्यु के बाद गुजरते हैं. यह उन्हें दु:ख के चरणों से आगे बढ़ने में मदद कर सकता है.

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एक ग्रीफ काउंसर या पेशेवर चिकित्सक से संपर्क करें अगर:

  • ऐसा महसूस हो कि जीवन जीने लायक नहीं है
  • अगर उस करीबी के साथ खुद भी मरने जैसे विचार आएं
  • अपने करीबी को न बचा पाने के लिए खुद को दोषी महसूस कर रहे हों
  • कुछ हफ्तों से अधिक समय तक दुनिया से कट गए हों
  • दूसरों पर भरोसा करने में कठिनाई हो रही हो
  • अपनी सामान्य दैनिक गतिविधियों को करने में असमर्थ हों

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