ऐसे बुजुर्ग जिन्हें अक्सर नींद के लिए संघर्ष करते और रात में बार-बार जागते देखा जाता है, उनमें डिमेंशिया यानी मनोभ्रंश विकसित होने या किसी भी कारण से जल्दी मरने का जोखिम अधिक हो सकता है. एक नए अध्ययन के नतीजे यही बताते हैं.
सीएनएन की रिपोर्ट के मुताबिक जर्नल ऑफ स्लीप रिसर्च में छपी स्टडी के मुताबिक जिन लोगों ने नियमित रूप से सोने में कठिनाई का अनुभव किया, उनमें मनोभ्रंश का जोखिम 49 प्रतिशत अधिक था और जो लोग अक्सर रात में जागते थे और उन्हें फिर से सोने में कठिनाई होती थी, उनमें भी मनोभ्रंश का जोखिम 39 प्रतिशत अधिक पाया गया.
हार्वर्ड मेडिकल स्कूल की शोधकर्ता रेबेका रॉबिन्स ने कहा,
"हमें नींद आने में लगातार कठिनाई और रात के समय जागना और मनोभ्रंश और किसी भी कारण से जल्दी मौत के बीच एक मजबूत संबंध मिला, भले ही हमने अवसाद, लिंग, आय, शिक्षा और लंबी समय की स्वास्थ्य स्थितियों जैसी चीजों को नियंत्रित किया हो."
अध्ययन के लिए, टीम ने नेशनल हेल्थ एंड एजिंग ट्रेंड्स स्टडी (NHATS) के डेटा का विश्लेषण किया, जो 6,376 मेडिकेयर लाभार्थियों के राष्ट्रीय प्रतिनिधि सैंपल के साथ सालाना व्यक्तिगत साक्षात्कार आयोजित करता है.
नए अध्ययन के लिए 2011 और 2018 के बीच के डेटा की जांच की गई, जिसमें सबसे ज्यादा जोखिम वाली कैटेगरी के लोगों पर ध्यान केंद्रित किया गया था. उन लोगों ने कहा कि उन्हें ज्यादातर रातें या लगभग हर रात नींद की समस्या थी.
अध्ययन में प्रतिभागियों द्वारा खुद से रिपोर्ट की गई नींद की कठिनाइयों की तुलना तब हर प्रतिभागी के मेडिकल रिकॉर्ड से की गई.
अध्ययन में पाया गया कि जिन लोगों को ज्यादातर रातों को सोने में परेशानी होती थी, उनमें किसी भी कारण से जल्दी मौत का जोखिम लगभग 44 प्रतिशत अधिक था.
जिन लोगों ने कहा कि वे अक्सर रात में जागते हैं और सोने के लिए संघर्ष करते हैं, उनमें किसी भी कारण से जल्दी मौत का जोखिम कुछ अधिक (56 प्रतिशत) होता है.
रॉबिन्स ने कहा, "ये परिणाम बताते हैं कि नींद हर रात, तंत्रिका संज्ञानात्मक गिरावट और मृत्युदर के लिए हमारे दीर्घकालिक जोखिम को कम करने के लिए एक बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है."
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