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हमारे मानसिक स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाती है चीनी! जानिए कैसे

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क्या एक बुरे दिन के अंत में भाप छोड़ती हॉट चॉकलेट कप की बजाए आप कुछ और लेंगे?

चीनी हमारे मूड पर लगभग चमत्कारी असर डालती है और इसके ‘फौरन असरदार’ गुण हमें अच्छी तरह मालूम हैं (हम इसीलिए हॉट चॉकलेट लेते हैं). लेकिन चीनी खाने का सेहत पर असर किसी भी चर्चा में नहीं आता है और सिर्फ इसके ‘तरो-ताजा कर देने वाले’ गुणों पर ध्यान देना इसकी हकीकत को मुश्किल से ही जानने देता है.

हकीकत यह है कि, चीनी से हमें जो क्षणिक संतुष्टि मिलती है, वह असल में लंबे समय में हमारे स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचा सकती है. और यह नुकसान बड़े पैमान साबित हो चुके शारीरिक समस्याओं जैसे कि वजन बढ़ने या डायबिटीज और हृदय रोगों जैसी असाध्य बीमारियों के जोखिम तक सीमित नहीं है. यह अपेक्षाकृत कम मालूम है— बहुत ज्यादा चीनी खाने के सेहत पर वास्तविक असर हैं: यह हमारी मेंटल हेल्थ (मानसिक स्वास्थ्य) को नुकसान पहुंचा सकती है.

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चीनी की तड़प के पीछे क्या है

जसलोक हॉस्पिटल में चीफ डाइटीशियन और डिपार्टमेंट ऑफ न्यूट्रिशन एंड डाइटेटिक्स की हेड डेलनाज टी. चंदूवाडिया, फिट को बताती हैं, “किसी चीज में मिलाई गई चीनी का मन की दशा को बढ़ाकर मूड पर सीधा असर देखा गया है— जिसे ‘शुगर रश’ या ‘शुगर हाई’ कहा गया है. लेकिन चूंकि यह आसानी से पचती और घुलती है, इसलिए यह इतनी ही तेजी से चली भी जाती है. यह अचानक उतार-चढ़ाव मूड पर भी असर डाल सकता है.”

हम खुद को प्रफुल्लित पाते हैं क्योंकि चीनी डोपामाइन को बढ़ाने का काम करती है, जिससे हमें अच्छा महसूस होता है. हालांकि, यह लंबे समय तक नहीं रहता.
डेलनाज टी. चंदूवाडिया

असल में, वह डोपामाइन की रिलीज है जो दिमाग के रिवार्ड सर्किट को सक्रिय करके एक तरह से चीनी की लगभग लत लगा देती है.

फोर्टिस गुरुग्राम में मेंटल हेल्थ एंड बिहेवियरल डिपार्टमेंट की प्रमुख कामना छिब्बर इस बारे में बात करते हुए कहती हैं, “कई लोग तनाव, कमजोरी, चिड़चिड़ापन और गुस्सा या मूड खराब महसूस होने पर चीनी से बने उत्पादों की ओर रुख करते हैं. इन फूड आइटम में लत की क्षमता होती है, जो लोगों को उन पर बहुत निर्भर बना सकती है, जिससे उन्हें छोड़ना मुश्किल हो जाता है.”

लत को जबरदस्त तड़प से पहचाना जा सकता है और उन क्रेविंग या तड़प को इस तरीके से पूरा किया जाता है, जिसमें किसी चीज पर पूरी तरह से निर्भरता शामिल होती है. लत की किसी भी चीज के साथ हर अंतःक्रिया डोपामाइन या ‘फील-गुड’ हार्मोन रिलीज करती है. लेकिन समय के साथ, उस चीज की उतनी ही मात्रा पहले की तरह डोपामाइन का उत्पादन बंद कर देती है. इसलिए पहले अनुभव की गई खुशी और उत्साह की स्थिति में पहुंचने के लिए उसकी खुराक बढ़ाने की निश्चित रूप से जरूरत होती है.

कई विशेषज्ञ यहां तक कहते हैं कि चीनी की लत कोकीन की लत जैसी ही है.

चंदूवाडिया कहनी हैं, “यह बहुत आसान है. हमें चीनी को छोड़ना मुश्किल लगता है क्योंकि यह दिमाग में बहुत से तारों को सक्रिय करती है. ‘हाई' का यह अस्थायी एहसास है, जिसे आप चाहते हैं कि बार-बार वापस आए.”

न्यूरोसाइंटिस्ट निकोल एवेना ने एक टेड-एड वीडियो में बताया, “इस रिवार्ड सिस्टम को ओवर-एक्टिवेट करने से दुर्भाग्यपूर्ण घटनाओं की एक श्रृंखला बनती है, जैसे नियंत्रण का अभाव, क्रेविंग और ज्यादा चीनी लेने की बढ़ती इच्छा.”

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चीनी और डिप्रेशन

हालांकि इस पर अभी बड़े पैमाने पर शोध चल रहे हैं, शुरुआती नतीजे बताते हैं कि ऐडड चीनी के अधिक सेवन से लोगों को एक उम्र के बाद डिप्रेशन (अवसाद) होने का खतरा बढ़ सकता है.

इस संबंध में सबसे महत्वपूर्ण अध्ययनों में से एक 8,000 से ज्यादा वयस्कों का विश्लेषण है, जिनका 22 वर्षों तक अध्ययन किया गया था. साइंटिफिक रिपोर्ट्स जर्नल में प्रकाशित निष्कर्षों से पता चला कि जिन पुरुषों ने रोजाना 67 ग्राम या इससे ज्यादा चीनी का सेवन किया था, उनमें अध्ययन की शुरुआत के पांच साल बाद क्लीनिकल डिप्रेशन होने की आशंका 23% अधिक थी. भले ही वे अधिक वजन वाले थे या नहीं.

हालांकि पिछले शोधों में भी चीनी और डिप्रेशन के बीच संबंध पाया गया था, हमेशा हानिकारक असर की संभावना के साथ कि लो-मूड वाले लोग अधिक मात्रा में चीनी का सेवन करते हैं, जिससे कि नतीजे प्रभावित हुए हों. संबंधित अध्ययन इसलिए खास है क्योंकि यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन के शोधकर्ता ज्यादा चीनी के सेवन और लो-मूड के बीच संबंध का पता लगने से इस संभावित ‘रिवर्स कॉजएशन (प्रतिगामी कारक)’ को पकड़ पाने में कामयाब रहे थे.

हमारे अध्ययन के निष्कर्ष इस परिकल्पना के अनुरूप हैं कि ज्यादा चीनी का सेवन अनियमित और लगातार अवसाद व आम मानसिक बीमारियों दोनों के जोखिमों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है.
अध्ययन के लेखक

हालांकि, लेखक फिर भी कोई निश्चित दावा करने को लेकर सतर्क थे, सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि यह एक रैंडम ट्रायल नहीं था. शोध पत्र की एक प्रमुख लेखिका अनिका ने क्वार्ट्ज में छपी रिपोर्ट में कहा, “समय-समय पर मिले खुद के रिपोर्ट किए हेल्थ डेटा पर आधारित अध्ययन स्वाभाविक रूप से त्रुटिपूर्ण होते हैं क्योंकि प्रतिभागी अगर अपनी तरफ से पूरी ईमानदारी बरतें भी तो भी वे जो खाते हैं उसके बारे में ठीक से याद नहीं होता है.”

उन्होंने कहा कि चूहों पर हुए रिसर्च से यह भी पता चला है कि फैट और चीनी ज्यादा लेने से दिमाग में BDNF नाम के प्रोटीन का उत्पादन कम हो सकता है. BDNF इंसानों में एंग्जाइटी और डिप्रेशन से जुड़ा है.

कामना छिब्बर फिट से बातचीत में कहती हैं,

हां, हाल ही में शोध आया है जिसमें चीनी ज्यादा लेने और मेंटल हेल्थ से जुड़ी समस्याओं के बीच संबंध के बारे में बात की गई है, लेकिन फिलहाल इसकी गहराई से जांच चल रही है. निश्चित रूप से कहने में कुछ समय लग सकता है कि सटीक संबंध क्या है.

लेकिन डिप्रेशन के अलावा भी, वैज्ञानिक कॉग्निटिव डिसफंक्शन और अल्जाइमर जैसी न्यूरोडीजेनेरेटिव बीमारियों के होने में चीनी की बहुत ज्यादा खपत की भूमिका की बात से सहमत हैं.

उदाहरण के लिए Diabetologia जर्नल में छपे एक अध्ययन में एक दशक तक 5000 से अधिक व्यक्तियों का अध्ययन किया गया और पाया कि ज्यादा ब्लड शुगर वाले लोगों में सामान्य ब्लड शुगर वाले लोगों की तुलना में कॉग्निटिव क्षमता में गिरावट की दर तेज थी.

सिर्फ यही नहीं, यह भी दिखाने के लिए पर्याप्त सबूत हैं कि टाइप 1 और टाइप 2 दोनों तरह के डायबिटीज मरीज को अल्जाइमर होने की आशंका अधिक हो सकती है.

एम्स में न्यूरोलॉजिस्ट डॉ. मंजरी त्रिपाठी ने बताया,

हां, चीनी दिमाग और शरीर के लिए खराब है. यह बुजुर्गों में कॉग्निटिव क्षमता में गिरावट और बच्चों में ADHD हाइपर एक्टिविटी की ओर ले जा सकती है.
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इसे कैसे समझा जा सकता है?

चीनी का दिमाग पर कैसे असर पड़ता है, इसके कई संभावित तरीके स्पष्ट समझाए गए हैं.

चीनी का अधिक सेवन BDNF के स्तर को प्रभावित कर सकता है और दिमाग में सूजन पैदा कर सकता है. न्यूरोइन्फ्लेमेशन को डिप्रेशन के लक्षणों से जुड़ा माना जाता है.

उदाहरण के लिए, चीन के वुहान में हुआझॉन्ग यूनिवर्सिटी ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी के न्यूरोबायोलॉजी डिपार्टमेंट के शोधकर्ताओं के एक अध्ययन में डायबिटीज से ग्रस्त चूहों पर अध्ययन में दिखाया कि हाई ब्लड शुगर से सूजन और न्यूरॉन की क्षति होती है.

इंसुलिन प्रतिरोध और मोटापे के बीच संबंध की भी व्याख्या की जा सकती है. द अटलांटिक की एक रिपोर्ट के अनुसार, “सिंपल शुगक का ज्यादा सेवन कोशिकाओं को (जिसमें दिमाग की कोशिकाएं भी शामिल हैं) इंसुलिन प्रतिरोधी बना सकता है, जिससे मस्तिष्क की कोशिकाएं मर सकती हैं. इस बीच, सामान्य रूप से चीनी बहुत ज्यादा खाने से मोटापा हो सकता है. मोटे लोगों में अतिरिक्त फैट साइटोकाइन्स या सूजन पैदा करने वाले प्रोटीन रिलीज करता है, जिससे कॉग्निटिव क्षमता में गिरावट आ सकती हैं.”

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चीनी में कटौती कैसे करें?

मानसिक बीमारियों में चीनी की भूमिका के पक्के सबूत नहीं है, लेकिन अब तक मिले सबूत भी डॉक्टरों द्वारा खान-पाान में बहुत अधिक चीनी के प्रति सावधानी बरतने की सलाह देने के लिए पर्याप्त हैं

न्यूट्रिशनिस्ट डेलनाज टी. चंदूवाडिया विकल्प देती हैं कि कोई भी व्यक्ति चीनी की क्रेविंग पूरा सकता है, “फल, ग्रेनोला बार या यहां तक कि सूखे मेवे जैसे खजूर या अंजीर भी काम आ सकते हैं. लेकिन सबसे असरदार समाधान संपूर्ण भोजन है जो आपको अपने शुगर लेवल को बनाए रखने का मौका देता है. यह चीनी की तड़प को खत्म करता है क्योंकि शुगर लेवल में उतार-चढ़ाव की वजह से दर्द होता है. नींद और शरीर में विटामिन की मात्रा सही रखें. मैग्नीशियम और विटामिन डी जैसे विटामिन की कमी चीनी की क्रेविंग को बढ़ाने के लिए जाने जाते हैं.”

कुल मिलाकर, मानसिक स्वास्थ्य को ऐसे खाद्य पदार्थों से फायदा होता है जो एंटी-इन्फ्लेमेटरी होते हैं और मेवे, ऑयल सीड्स, मछली और फिश ऑयल लेना चाहिए जो ओमेगा 3 से भरपूर होते हैं. यह भी सुनिश्चित करें कि विटामिन और एंटीऑक्सिडेंट देने के लिए आपकी प्लेट फल और सब्जियों से भरपूर हो. अच्छी गुणवत्ता वाला प्रोटीन भी महत्वपूर्ण है.
डेलनाज टी. चंदूवाडिया

कामना छिब्बर की सलाह है, “अगर आप चीनी के सेवन पर अंकुश लगाना चाहते हैं, तो अपने लिए छोटे लक्ष्य तय करें. अपने खान-पान से चीनी को धीरे-धीरे कम या खत्म कर करने के लिए क्रमिक रूप से शुरुआत करना एक अच्छा तरीका हो सकता है. आप जो खाते हैं, उस पर ज्यादा ध्यान देने की जरूरत है, और सबसे जरूरी बात यह है कि उन फूड्स को किस वजह से खा रहे हैं. यह समस्या से निपटने और चेन को तोड़ने के लिए महत्वपूर्ण है.”

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