पुणे शहर की आधी जनसंख्या में कोरोना वायरस संक्रमण का फैलाव हो चुका है. शहर के पहले सीरो सर्वे में पाया गया है कि स्टडी में शामिल 51.5% लोगों ने कोरोना वायरस एंटीबॉडी डेवलप कर ली है.
20 जुलाई से 5 अगस्त के बीच सावित्रीबाई फुले पुणे यूनिवर्सिटी (SPPU), इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस एजुकेशन एंड रिसर्च (IISER) पुणे, ट्रांसलेशनल हेल्थ साइंस एंड टेक्नोलॉजी इंस्टीट्यूट (THSTI) और क्रिश्चियन मेडिकल कॉलेज (CMC), वेल्लोर के वैज्ञानिकों और एपिडेमियोलॉजिस्ट (महामारी विज्ञानियों) द्वारा ये सर्वे किया गया.
सर्वे में रैंडम तरीके से 5 प्रभागों (चुनावी वार्ड) का चुनाव कर वहां के लोगों की सहमति से ब्लड सैंपल लिए गए और आईजीजी एंटीबॉडी की मौजूदगी के बारे में पता लगाया गया.
क्या होता है सीरो सर्वे और कैसे करता है काम?
इसके लिए तैनात टीमें चुनिंदा इलाकों में जाकर सैंपल कलेक्ट करती हैं, जिनकी जांच के नतीजों के आधार पर ये पता चलता है कि कोरोना के खिलाफ एंटीबॉडीज किस तरह डेवेलप हो रही हैं और उनके डेवेलप होने की दर क्या है? ये कोरोना के प्रसार का अनुमान लगाने के लिए किया जाता है.
सर्वे में क्या आया सामने?
सर्वे रिपोर्ट में कहा गया है, "स्टडी से संकेत मिलता है कि 5 प्रभागों में संक्रमण का व्यापक फैलाव हुआ है: सभी तरह के आवासों में रहने वालों के बीच संक्रमण का दर 36.1% से 65.4% तक रहा है."
- बंगलों में रहने वाले लोगों के बीच 43.9% पॉजिटिविटी देखी गई, जबकि टेनमेंट या झुग्गीनुमा आवास में रहने वालों के बीच ये 56 से 62% है.
- जो लोग अपार्टमेंट में रहते हैं उनमें कुछ हद तक कम प्रसार (33%) है.
- टॉयलेट शेयर करने वालों में 62.3% और उनकी तुलना में टॉयलेट शेयर न करने वालों में 45.3% संक्रमण का प्रसार है.
- पुरुषों (52.8%) और महिलाओं (50.1%) में संक्रमण के फैलाव को लेकर ज्यादा अंतर नहीं है, जबकि ज्यादा उम्र (66 से ऊपर) के लोगों में कम फैलाव (39.8%) है.
COVID-19 इम्युनिटी को लेकर इस सर्वे से क्या समझा जा सकता है?
ये ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि एंटीबॉडी टेस्ट डायग्नॉस्टिक टेस्ट नहीं हैं, लेकिन सामान्य आबादी में संक्रमण के प्रसार की जांच के लिए उपयोग किए जाते हैं. ये सर्वे सबसे सही तरीके से समुदाय में बीमारी के संभावित प्रसार का संकेत देते हैं और अधिकारियों को बेहतर रणनीति बनाने में मदद करते हैं.
वे हमें किसी व्यक्ति में एंटीबॉडी की मौजूदगी या अनुपस्थिति दिखाते हैं - वे हमें मात्रा नहीं बताते हैं, और वे पहचान नहीं सकते हैं कि ये एंटीबॉडीज न्यूट्रलाइजिंग एंटीबॉडी हैं या नहीं. विशेषज्ञ मानते हैं कि COVID-19 के खिलाफ इम्युनिटी और शरीर में एंटीबॉडी की मौजूदगी को जरूरत से ज्यादा जोड़कर देखा जाता है.
फिट से बातचीत में पहले भी एक्सपर्ट ने बताया है कि सीरो सर्वे के आधार पर हर्ड इम्युनिटी के बारे में अनुमान लगाने के खतरे हो सकत हैं.
“हम नहीं जानते कि ये एंटीबॉडी किस स्तर तक इम्युनिटी को बढ़ावा देंगे या कितने समय तक इम्युनिटी बनी रहेगी. उदाहरण के लिए, इन्फ्लूएंजा एंटीबॉडी लंबे समय तक नहीं रहती है. हमें ये भी जानना होगा कि क्या हमें सेल इम्युनिटी की जरूरत है या क्या ये एंटीबॉडी पर्याप्त हैं.”डॉ के के श्रीनाथ रेड्डी, पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया (PHFI) के अध्यक्ष
ISSER के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. अर्नब घोष ने द हिंदुस्तान टाइम्स को बताया, “इस स्टडी से ये साबित नहीं होता है कि जिन लोगों के पास एंटीबॉडी होती है, वे वायरस के खिलाफ इम्यून्ड होते हैं. उसके लिए हमें एक अलग स्टडी की जरूरत है जो ज्यादा महंगा और समय लेने वाला होता है. हालांकि स्टडी निश्चित रूप से साबित करता है कि वायरस का प्रसार सभी सामाजिक-आर्थिक स्तरों पर है.”
पुणे ने मुंबई को भी कोरोना संक्रमित लोगों की संख्या के मामले में पीछे छोड़ दिया है. सोमवार को जारी आंकड़ों के हिसाब से पुणे में 1.32 लाख कुल केस है जबकि मुंबई में 1.29 लाख है लेकिन कोरोना से हुई मौत के मामले में मुंबई पुणे के मुकाबले काफी आगे है. पुणे में कोरोना से अब तक 3247 मौत हो चुकी जबकि मुंबई में 7173 लोगों की मौत वजह से हुई है.
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