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कार्डियक सर्जरी में क्या होता है? जानिए इससे जुड़ी जरूरी बातें

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जर्नल ऑफ द अमेरिकन कॉलेज ऑफ कार्डियोलॉजी में छपी एक स्टडी के मुताबिक, पिछले 15 वर्षों में अमेरिका में हृदय रोगों (कार्डियोवैस्कुलर डिजीज या CVD) के कारण मृत्यु दर में 41 प्रतिशत की कमी आई है, जबकि भारत में यह 34 प्रतिशत बढ़ गई है.

इस रुझान का संबंध हाइपरटेंशन, डायबिटीज, डिरेंज्ड ब्लड लिपिड, स्मोकिंग, शारीरिक निष्क्रियता और मोटापे की बढ़ती घटनाओं से है, ये सभी हृदय रोग में योगदान कर रहे हैं.

प्रतिकूल जीवनशैली और आपके खान-पान, आप कितनी बार एक्सरसाइज करते हैं, आपका वजन कितना है और आप तनाव का किस तरह सामना करते हैं, इन चीजों को दुरुस्त करके हृदय रोग को नियंत्रित किया जा सकता.

हालांकि, एक बार बीमारी हो जाए तो मरीज की जरूरतों के मुताबिक इलाज की ही जरूरत होती है.

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कोरोनरी हार्ट डिजीज के कुछ मरीजों के मामले में हार्ट सर्जरी की जरूरत होती है. कई मरीजों को जन्मजात हार्ट डिजीज, वॉल्वुलर हार्ट डिजीज (दिल से जुड़ी एक या एक से अधिक बीमारी), हार्ट फेल के मामलों में इलाज की जरूरत होती है और हार्ट बीट को नियमित रखने के लिए डिवाइस इम्लांट करने की भी जरूरत होती है.

कार्डियक सर्जरी में क्या होता है?

कार्डियक सर्जरी एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें रोगी के सीने को चीर कर खोल दिया जाता है और हार्ट की मांसपेशियों, वॉल्व या आर्टरीज (धमनी) की सर्जरी की जाती है. हार्ट को एक हार्ट-लंग बाईपास मशीन या बाईपास पंप से जोड़ दिया जाता है. मशीन हार्ट और लंग के कामकाज का जिम्मा संभाल लेती है.

इसके बाद एक हेल्दी आर्टरी (धमनी) या वेन (शिरा) को ब्लॉक आर्टरी के चारों ओर नया रास्ता बनाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है. इसके बाद जिस जगह चीरा लगाया गया था, उसको सिल दिया जाता है.

कोरोनरी आर्टरी सर्जरी की जगह अब नई पंप बाईपास सर्जरी ने ली है, जिसके लिए हार्ट को रोकने की जरूरत नहीं होती है और हार्ट लंग बाईपास मशीन भी नहीं लगानी पड़ती है.

इससे कई संभावित समस्याओं से बचा जाता है और यह कुछ सेंटर्स में इस तकनीक के माहिर सर्जनों द्वारा की जाती है.

कोरोनरी आर्टरी बाईपास ग्राफ्ट (CABG) सबसे आम ओपन-हार्ट सर्जरी है. यह कोरोनरी आर्टरीज में रुकावटों को दूर करने के लिए की जाती है.

क्या इस सर्जरी में जोखिम है?

हालांकि CABG को एक सुरक्षित प्रोसीजर के रूप में जाना जाता है, फिर भी इस सर्जरी से जुड़े कुछ जोखिमों में इंफेक्शन, अंगों को नुकसान, स्ट्रोक, किडनी फेल और निमोनिया शामिल हैं. गंभीर हार्ट डिजीज वाले मरीजों को सर्जरी के दौरान और बाद में समस्याओं का अधिक खतरा होता है. लेकिन अनुभवी विशेषज्ञों के हाथों, समस्याओं की आशंका बहुत कम होती है.

सर्जरी की तैयारी

ओपन हार्ट सर्जरी कराने वाले व्यक्ति को अस्पताल में करीब एक हफ्ते से 10 दिन तक रहना पड़ता है.

सर्जरी से पहले, एक व्यापक शारीरिक परीक्षण किया जाता है और किडनी, लिवर और ब्रेन सहित इससे जुड़ी किसी भी बीमारी का पता लगाने के लिए कई तरह की जांच की जाती हैं. सर्जरी से पहले डायबिटीज, हाई ब्लड प्रेशर या किसी अन्य संबंधित बीमारी को नियंत्रित किया जाता है. ये कदम एक सुगम सर्जरी और सर्जरी के बाद ठीक से रिकवरी के लिए जरूरी हैं.

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पोस्ट ऑपरेटिव रिकवरी

ओपन हार्ट सर्जरी में लगातार निगरानी और तत्काल पोस्ट ऑपरेटिव सपोर्ट की जरूरत होती है. कार्डियोवैस्कुलर और रेस्पिरेटरी सिस्टम के सामान्य होने तक लगातार निगरानी के लिए मरीज को कुछ दिनों के लिए इंटेंसिव केयर यूनिट (आईसीयू) में रखा जाता है. एक बार हालत स्थिर हो जाने के बाद, मरीज को एक सामान्य कमरे में स्थानांतरित कर दिया जाता है.

डिस्चार्ज होने के बाद, सर्जिकल घाव की अच्छी तरह से देखभाल की जानी चाहिए और अगर घाव के आसपास लाली या रिसाव जैसे संक्रमण के कोई लक्षण दिखाई देते हैं, तो फौरन अपने डॉक्टर को बताना चाहिए. जिस जगह चीरा लगाया गया था, उसको सूखा रखना चाहिए. 

सर्जरी के बाद रिकवरी धीरे-धीरे होती है, ऐसे में मरीज को सब्र रखना चाहिए. सामान्य जिंदगी वापस आने में कुछ महीने लग सकते हैं. मामूली शारीरिक श्रम और नियमित कामों में सर्जिकल साइट पर दर्द और थकान हो सकती है.

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मरीज को मांसपेशियों के अलावा गले में भी दर्द हो सकता है. ऐसे हालात के लिए दर्द की हल्की दवाएं दी जाती हैं. सर्जरी के बाद रिकवरी में फिजियोथेरेपी की मदद ली जाती है. नियमित ब्लड टेस्ट, हार्ट स्कैन और स्ट्रेस टेस्ट किए जाते हैं, ताकि सेहत की तात्कालिक और दीर्घकालिक स्थिति की निगरानी की जा सके.

ओपेन हार्ट सर्जरी के बाद सुगम रिकवरी में मदद के लिए, कुछ उपायों पर अमल की सलाह दी जाती है:

  • संतुलित, हेल्दी डाइट लें
  • ज्यादा नमक, फैट और शुगर फूड सीमित मात्रा में लें
  • नियमित व्यायाम करें
  • स्मोकिंग ना करें
  • एल्कोहल का सीमित सेवन
  • ब्लड प्रेशर और कोलेस्ट्रॉल नियंत्रण

इन नसीहतों पर अमल करके सुगम रिकवरी और धीरे-धीरे सक्रिय व कामकाजी जिंदगी में वापसी सुनिश्चित की जा सकती है.

(डॉ नरेश त्रेहन मेदांता, हार्ट इंस्टीट्यूट के चेयरमैन और मैनेजिंग डायरेक्टर हैं.)

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