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COVID-19: क्यों मुश्किल होता है एंटीवायरल दवाइयों का विकास?

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कोरोना महामारी की शुरुआत के साथ COVID-19 के खिलाफ कई एंटीवायरल दवाइयों की चर्चा रही, लेकिन क्लीनिकल ट्रायल के फाइनल नतीजों में कोई भी दवा असरदार नहीं पाई गई. हाल ही में विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की एक स्टडी में साफ किया गया कि न तो रेमडिसिविर (Remdesivir) और न ही हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन (HCQ) से COVID-19 के कारण अस्पताल में भर्ती मरीजों की रिकवरी में मदद मिलती है.

वायरल संक्रमण से लड़ने वाली दवाओं को एंटीवायरल ड्रग्स कहा जाता है. COVID-19 ही नहीं बल्कि कई वायरल संक्रमणों के लिए कोई प्रभावी एंटीवायरल दवाएं नहीं हैं.

डेंगू, जीका वायरस और अब कोरोना वायरस डिजीज (COVID), कितनी ही वायरल बीमारियों का इलाज लक्षणों से राहत देने के आधार पर किया जाता है.

मुंबई के जसलोक हॉस्पिटल एंड रिसर्च सेंटर के इन्फेक्शियस डिजीज डिपार्टमेंट में कंसल्टेंट डॉ. माला कनेरिया कहती हैं कि बैक्टीरियल इन्फेक्शन के इलाज के लिए कई एंटीबायोटिक्स मौजूद हैं, लेकिन वायरल बीमारियों के खिलाफ एंटीवायरल दवाइयां कम हैं.

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आखिर एंटीवायरल दवाइयां बनाना मुश्किल क्यों है?

वायरस को टारगेट करना बैक्टीरिया के मुकाबले कठिन होता है. डॉ. माला कनेरिया कहती हैं, "बैक्टीरिया के खिलाफ एंटीबायोटिक्स विकसित करना आसान है क्योंकि बैक्टीरिया संपूर्ण जीवित कोशिकाएं होती हैं, जिन्हें जीवित रहने के लिए मेटाबॉलिक प्रक्रियाओं की आवश्यकता होती है, इसलिए इन पर अटैक के कई टारगेट मिल जाते हैं."

यह वायरस के साथ विशेष रूप से कठिन है क्योंकि वायरस हमारी कोशिकाओं को हाईजैक कर अपनी कॉपी बनाते हैं. इसलिए कोशिकाओं को नुकसान पहुंचाए बगैर वायरस को रोकना एक चुनौती होती है.

एक एंटीवायरल दवा के लिए वायरस के रेप्लिकेशन की प्रक्रिया के किसी हिस्से को टारगेट करने की जरूरत होती है. ये भी जरूरी है कि एंटीवायरल मानव की कोशिका को नुकसान पहुंचाए बगैर अपना काम करे.

हालांकि, इन्फ्लूएंजा के लिए कई एंटीवायरल दवाएं हैं, हर्पीजवायरस के लिए कुछ दवाएं हैं, और HIV और हेपेटाइटिस C संक्रमण के इलाज के लिए कुछ नई एंटीवायरल दवाइयां आई हैं.

एंटीवायरल दवाइयां कैसे काम करती हैं?

एंटीवायरल दवाइयों का निर्माण दो अलग-अलग तरीकों पर केंद्रित हो सकता है:

  1. वायरस या उसके रेप्लिकेशन प्रक्रिया के किसी हिस्से को टारगेट करना

  2. मेजबान कोशिकाओं के कारकों को टारगेट करना

मुख्य रूप से किसी एंटीवायरल दवा का मकसद वायरस को अपनी कॉपी बनाने से रोकना यानी वायरस को रेप्लिकेट होने से रोकना होता है.

वायरस के रेप्लिकेशन की प्रक्रिया:

  • वायरस पहले होस्ट की कोशका से अटैच होता है

  • कोशिका के अंदर घुसता है

  • उस कोशिका को वायरल जीन की कॉपी करने और वायरल प्रोटीन बनाने के लिए ट्रिक करता है

  • इसके बाद नए बने वायरस दूसरी कोशिकाओं को टारगेट करते हैं

हर स्टेप पर वायरल जीन या प्रोटीन को होस्ट यानी मेजबान के विभिन्न अणुओं के संपर्क में आने की जरूरत होती है और ये हरेक संपर्क की प्रक्रिया एंटीवायरल दवाइयों के लिए एक मौका हो सकती है.

वायरस को कोशिकाओं के बाहर टारगेट कर संख्या बढ़ाने से रोका जा सकता है, लेकिन ये काफी कठिन होता है.

एंटीवायरल दवाएं अक्सर उन मेजबान अणुओं की तरह पेश आती हैं, जिनके संपर्क में वायरल जीन आते हैं.

एंटीवायरल को वायरस के रेप्लिकेशन में हस्तक्षेप करने के लिए वायरल प्रोटीन में संलग्न या फिट होने के लिए मेजबान अणुओं की तरह पेश आने की आवश्यकता होती है. यह चुनौतीपूर्ण है क्योंकि एंटीवायरल के संभावित आकार सीमित संख्या में होते हैं.
डॉ. माला कनेरिया, कंसल्टेंट, डिपार्टमेंट ऑफ इन्फेक्शियस डिजीज, जसलोक हॉस्पिटल एंड रिसर्च सेंटर, मुंबई
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कोरोना के खिलाफ एंटीवायरल दवा का निर्माण और भी चुनौती भरा है

डॉ. माला कनेरिया बताती हैं कि COVID-19 के लिए एंटीवायरल दवाओं की स्थिति विशेष रूप से चुनौतीपूर्ण है.

एक वायरस के खिलाफ तैयार की गई दवाएं अक्सर दूसरों के खिलाफ काम कर सकती हैं क्योंकि वायरस जीनोम की कॉपी के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले पोलीमरेज़ (एंजाइम) कई तरह के वायरस के लिए समान होते हैं. हालांकि, कोरोना वायरस अधिक पेचीदा हैं क्योंकि इनमें एक दूसरा प्रोटीन होता है, जो पोलीमरेज़ के काम की निगरानी करता है.
डॉ. माला कनेरिया, कंसल्टेंट, डिपार्टमेंट ऑफ इन्फेक्शियस डिजीज, जसलोक हॉस्पिटल एंड रिसर्च सेंटर, मुंबई

दिल्ली के क्रिटिकल केयर स्पेशलिस्ट डॉ. सुमित रे बताते हैं कि तेजी से संक्रमण करने वाले वायरस के मामले में एंटीवायरल का बहुत फायदा कभी भी नहीं मिला है.

जब तक एंटीवायरस दिया जाता है, तब तक इतना रेप्लिकेशन हो गया रहता है कि डैमेज शुरू हो चुका होता है और इम्यून रिस्पॉन्स इस तरह ट्रिगर हो चुका होता है कि वही गड़बड़ कर रहा होता है.
डॉ. सुमति रे

एंटीवायरल ने स्लो रेप्लिकेटिंग वायरस में बेहतर काम किया है क्योंकि एंटीवायरल को काम करने का वक्त मिलता है.

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वहीं एंटीवायरल ट्रीटमेंट जल्द शुरू करना महत्वपूर्ण होता है, जब वायरल संख्या कम रहे क्योंकि एंटीवायरल सीधे वायरस को खत्म नहीं करते हैं - वे उन्हें कोशिका से कोशिका या एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में फैलने से रोकते हैं और इनका खात्मा शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली पर निर्भर करता है.

यूनिवर्सिटी ऑफ नॉर्थ कैरोलिना की वायरोलॉजिस्ट मार्क हाइज साइंटिफिक अमेरिकन की इस रिपोर्ट में कहती हैं, "जितनी तेजी से आप दवा ले सकते हैं, उतना ही आप वायरस के फैलने की क्षमता को सीमित कर सकते हैं."

मूल रूप से हेपेटाइटिस C के इलाज के लिए विकसित की गई रेमडेसिविर को COVID के उपचार में सुझाया गया था, लेकिन क्लीनिकल ट्रायल से पता चला कि इसका कोरोना वायरस के खिलाफ सीमित प्रभाव ही है.

COVID-19 के खिलाफ Remdesivir के बारे में डॉ. कनेरिया कहती हैं कि ये मरीज की रिकवरी में तेजी लाने में मदद कर सकती है, लेकिन मरीजों की जान बचाने में ये कारगर नहीं पाई गई है.

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COVID-19: हमें एंटीवायरल दवा की जरूरत क्यों है?

COVID से मौत का जोखिम घटाने के लिए डेक्सामेथासोन (dexamethasone) और टोसीलिजुमैब (tocilizumab) जैसी एंटी-इन्फ्लेमेटरी दवाइयां हैं, जो केवल गंभीर COVID से पीड़ित लोगों को दी जा सकती हैं. लेकिन ऐसी कोई दवा नहीं है, जो घर पर, गोली के रूप में ली जा सके, जो कोरोना संक्रमित होने पर गंभीर रूप से बीमार पड़ने से बचा सके.

वैक्सीन के साथ एंटीकोरोना दवा उन लोगों के लिए महत्वपूर्ण हो सकती हैं, जिनके शरीर में वैक्सीन के लिए एक मजबूत प्रतिक्रिया नहीं होती है, वहीं वैक्सीनेशन के बावजूद कोरोना संक्रमण के मामले और उन लोगों के लिए जिन्हें वैक्सीन नहीं लगी है, उनके लिए कोरोना के खिलाफ काम करने वाली दवाइयों का विकास महत्वपूर्ण है.

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