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प्रसव के बाद मां का काम पर तुरंत लौटना ‘मिसाल’ या सेहत से खिलवाड़?

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हाल ही ये वीडियो खूब वायरल हुआ जिसमें एक महिला ट्रैफिक पुलिस कॉन्स्टेबल अपने छोटे से बच्चे के साथ ड्यूटी करती दिख रही है. ट्वीट का कैप्शन कहता है- “हैट्स ऑफ स्पिरिट” यानी “जज्बे को सलाम”.

अक्टूबर 2020 में इसी से मिलती जुलती एक और तस्वीर सोशल मीडिया पर खूब वायरल हुई थी. गाजियाबाद की एसडीएम सौम्या पांडे ने डिलीवरी के 14 दिन के अंदर अपना काम संभाल लिया था. वो इस वजह से सुर्खियों में रहीं.

जब कोई कामकाजी महिला या अफसर अपने नवजात शिशु या छोटे बच्चे के साथ काम करती दिखती हैं, उनकी काफी तारीफ होती है. उन्हें ‘रोल-मॉडल’ या मिसाल की तरह पेश किया जाता है.

लेकिन क्या डिलीवरी(Delivery) के बाद तुरंत महिलाओं का काम पर लौटना सहज होता है? एक नई मां और शिशु के स्वास्थ्य पर इसके क्या प्रभाव पड़ सकते हैं? ये समझना बेहद जरूरी है.

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उससे पहले यहां मैटरनिटी लीव(Maternity leave) का जिक्र भी अहम हो जाता है. इसे लागू करने के कुछ मेडिकल और बायोलॉजिकल आधार हैं.

दरअसल, बहुत सारी आशंकाओं और दुविधाओं की वजह से कुछ महिला कर्मचारी नौकरी छोड़ देती हैं क्योंकि गंभीर हेल्थ कंडिशन उन्हें प्रेग्नेंसी(Pregnancy) के दौरान और उसके बाद कुछ समय तक काम जारी रखने की इजाजत नहीं देते हैं.

लेकिन सरकार मैटरनिटी लीव यानी मातृत्व अवकाश का पुरजोर समर्थन करती है. एक महिला अब सभी महत्वपूर्ण लाभ उठा सकती है और अपनी प्रेग्नेंसी और मैटरनिटी लीव पर सोच-विचारकर फैसला ले सकती है. ये गर्भवती महिलाओं को उनकी नौकरी की सुरक्षा के साथ-साथ उनके जीवन के सबसे सुखद दौर और परिवार के साथ शांतिपूर्ण समय बिताने के लिए होता है.

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मैटरनिटी (अमेंडमेंट) बिल 2017
मैटरनिटी (अमेंडमेंट) बिल 2017 के तहत 26 सप्ताह तक छुट्टियां मिलती हैं. प्रेग्नेंट कर्मचारी छुट्टी को पोस्ट और प्री-डिलीवरी के रूप में बांट सकती है. 8 सप्ताह की छुट्टी डिलीवरी से पहले और बाकी डिलीवरी के बाद लेने का विकल्प चुन सकती है. तीसरे बच्चे की उम्मीद करने वाली महिलाओं के लिए, मैटरनिटी लीव 12 सप्ताह है.

इस समय का महत्व है और ये आसानी से महिलाओं के हिस्से में नहीं आई है.

फरीदाबाद के फोर्टिस एस्कॉर्ट्स में गायनेकॉलोजी (Gynaecology) डिपार्टमेंट की एचओडी और डायरेक्टर डॉ. इंदु तनेजा कहती हैं- डिलीवरी के तुरंत बाद या कुछ दिनों के भीतर काम पर लौटना इनकी पर्सनल चॉइस है या मजबूरी हम नहीं जानते लेकिन इसे ग्लोरिफाई नहीं करना चाहिए.

प्रसव के बाद का समय ढेरों चुनौतियों के साथ आता है. आपका शरीर शारीरिक और भावनात्मक रूप से,अनेक बदलावों से गुजरता है. आप प्रसव के बाद कितनी जल्दी ठीक हो जाती हैं, ये अलग-अलग महिलाओं में अलग-अलग हो सकता है.

“साइंस के हिसाब से कम से कम 6 सप्ताह का समय एक मां को बॉडी रिकवरी के लिए चाहिए. ये जरूरी है क्योंकि प्रेग्नेंसी के दौरान शरीर में- ब्लड वॉल्यूम, स्किन, हार्ट ब्लड फ्लो समेत और कई हार्मोनल बदलाव आते हैं. डिलीवरी के बाद ये धीरे-धीरे नॉर्मल लेवल तक पहुंचते हैं. ये सीजेरियन और नॉर्मल डिलीवरी- दोनों के लिए समान है.”
डॉ. इंदु तनेजा

वहीं, लोकिया एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें प्रसव के बाद गर्भाशय की परत झड़ती है और पीरियड्स की ही तरह ब्लीडिंग होती है. ये करीब 6 सप्ताह तक होता है, जिस कारण नई मांओं को संक्रमण का खतरा हो सकता है.

अगर आप जल्दी काम पर लौटती हैं तो रिकवरी में समय लगेगा. कमजोरी महसूस हो सकती है. चूंकि शरीर कमजोर होता है तो मानसिक स्वास्थ्य पर भी असर पड़ सकता है.

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मां की शारीरिक और इमोशनल हेल्थ की समस्याओं को लेकर 204 महिलाओं पर हुई एक ऑस्ट्रेलियाई स्टडी में बच्चे को जन्म देने के 6 से 7 महीने बाद तक उच्च स्तर की थकावट, पीठ में दर्द, पेशाब में दिक्कत, यौन समस्याएं और पेरिनियल पेन(एनस और योनिमुख के बीच के भाग में दर्द) पाया गया. स्टडी में ये भी पाया गया कि इन शारीरिक समस्याओं से नई मांओ में डिप्रेशन का खतरा बढ़ गया.

एक्सपर्ट्स कहते हैं कि पहले कुछ सप्ताह तक अपने शिशु की देखभाल करने के अलावा कोई अतिरिक्त जिम्मेदारी लेने से बचें, ये काम आपको बहुत थका सकता है. पर्याप्त आराम और अच्छी नींद, एक मां की प्राथमिक जरूरतें हैं. नवजात शिशु को हर 3 घंटे में खिलाया, साफ किया और आराम करवाया जाता है. ऐसे में एक साथ 7-8 घंटे तक सोना आपके लिए व्यावहारिक रूप से मुमकिन नहीं है, अपनी नींद का समय बदलें. इसका महत्वपूर्ण नियम है “जब शिशु सो रहा होता है, तो आप भी सो जाएं”.

इसके अलावा डिलीवरी के बाद ब्रेस्ट फीडिंग और उसकी टाइमिंग महिला और बच्चे- दोनों के स्वास्थ्य के लिए अहम रोल निभाता है. डॉ. इंदु तनेजा कहती हैं - शुुरुआती दिनों में बच्चों को भूख लगने पर और फिर 2-2 घंटे के गैप पर ब्रेस्ट फीडिंग कराने की सलाह दी जाती है. जितना ज्यादा ब्रेस्ट फीड कराया जाता है मां के शरीर के अंग अपने नॉर्मल शेप में जल्दी आते हैं. अगर महिला काम पर लौटती है तो वर्कप्लेस पर उन्हें प्राइवेसी मिलनी चाहिए ताकि वे बच्चे को ब्रेस्ट फीड करा सकें. लेकिन ये हर कामकाजी महिला के लिए मुमकिन नहीं हो पाता.

बच्चे के स्वास्थ्य पर न पड़े असर

डॉ. इंदु तनेजा कहती हैं- “तुरंत काम पर लौटना न सिर्फ मां के सेहत पर असर डाल सकता है बल्कि शिशु की सेहत भी रिस्क पर होती है. 3 महीने तक नवजात शिशु को पानी भी नहीं देना होता है. कंप्लीट ब्रेस्ट फीड पर रहने वाले बच्चों के दिमाग का विकास अन्य बच्चों की तुलना में जल्दी होता है, साथ ही बच्चों का इम्यून सिस्टम मजबूत होता है. ऐसे में अगर आप बाहर ज्यादा रहती हैं, ब्रेस्ट फीड की जगह टॉप फीड देती हैं तो बच्चे में इंफेक्शन का खतरा हो सकता है. बाहर के वातावरण में बच्चे को एक्सपोज करना भी रिस्की है.”

इसलिए बेहतर है कि मां बनने के बाद खुद के और बच्चे की सेहत के लिए, भरपूर समय लें आराम करें, मैटरनिटी लीव का फायदा उठाएं और पूरी तरह से रिकवर होने पर ही काम को प्राथमिकता दें.

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