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एयर पॉल्यूशन से निपटने के वो कदम जो सरकार को नहीं, आपको उठाने हैं

दुनिया में हर 10 में से 9 लोग प्रदूषित हवा में सांस ले रहे हैं.

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एयर पॉल्यूशन पूरी दुनिया के सामने एक चुनौती बनकर उभरा है. दुनिया के सबसे ज्यादा प्रदूषित 20 शहरों में 14 शहर भारत के हैं. विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट के मुताबिक 2016 में वायु प्रदूषण के कारण सबसे ज्यादा एक लाख बच्चों की मौत भारत में हुई.

दुनिया भर के एक्सपर्ट, पॉलिटिकल लीडर्स और संस्थाएं वायु प्रदूषण को लेकर चिंता जाहिर कर रहे हैं.

संयुक्त राष्ट्र संघ की ओर से 25 उपाय बताए गए हैं ताकि 2030 तक एशिया और पेसिफिक क्षेत्र के लोगों को साफ हवा नसीब हो सके. लेकिन इन सब के बीच इस वैश्विक चुनौती से निपटने और इसे कंट्रोल करने के लिए आप क्या कर सकते हैं, ये बेहद अहम है.

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पॉल्यूशन के सोर्स को समझें

पर्यावरणविद् और सोशल एक्शन फॉर फॉरेस्ट एंड एन्वायरमेंट (SAFE) के सदस्य विक्रांत तोंगड़ कहते हैं कि इसमें पब्लिक का काफी अहम रोल हो सकता है. एयर पॉल्यूशन से लड़ने के लिए सबसे पहले ये समझने की जरूरत है कि पॉल्यूशन का सोर्स क्या है.

जैसे गाड़ियों से निकलने वाले धुएं, सड़कों के किनारे धूल के कण, खुले में कचरे को जलाना, जिसमें पराली जलाना भी शामिल है.

कदम जो सरकार को नहीं, आपको उठाने हैं:

1. साइकिलिंग, वॉकिंग, पूलिंग

अगर हो सके तो आसपास की दूरी पैदल चल कर तय करें. ये आदत न सिर्फ आपको फिट रखेगी बल्कि इस हवा को साफ रखने में भी मदद करेगी. विक्रांत तोंगड़ कहते हैं कि सड़कों पर गाड़ियों की संख्या जितनी ज्यादा होगी एमिशन भी उतना ही होगा.

साल 2016 में दिल्ली में एयर पॉल्यूशन और ग्रीन हाउस गैसों पर किए गए IIT कानपुर के अध्ययन के मुताबिक पीएम 2.5 और NOx उत्सर्जन में वाहनों का योगदान 20% और 36% था.

इसलिए हमें पब्लिक ट्रांसपोर्ट का इस्तेमाल करना चाहिए. अगर अपना वाहन लेकर निकल रहे हैं, तो पूलिंग को बढ़ावा दिया जाना चाहिए.

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2. कूड़े-कचरे को भूलकर भी ना जलाएं

विक्रांत तोंगड़ कहते हैं कि हमारे यहां कूड़ा जलाने का स्वभाव सा बना हुआ है. कहीं भी कचरा इकट्ठा हुआ नहीं कि आग लगा दी. लेकिन प्रदूषण से निपटने के लिए हम सभी को ओपन बर्निंग से परहेज करना ही होगा.

किसानों को पराली पर नियंत्रण रखना चाहिए, उसे जलाने की बजाए कंपोस्टिंग करें. अगर कहीं कूड़े-कचरे में आग लगी दिखे, तो तुरंत लोकल अथॉरिटीज को सूचित करें.
विक्रांत तोंगड़, सोशल एक्शन फॉर फॉरेस्ट एंड एन्वायरमेंट
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3. खाना पकाने के लिए क्लीन एनर्जी

घरेलू वायु प्रदूषण से हर साल 40 लाख लोगों की मौत होती है. इसकी वजह कुकिंग, हीटिंग और लाइटिंग के लिए प्रदूषण फैलाने वाले ईंधनों और तकनीक का इस्तेमाल है. आज भी कई इलाकों में खाना पकाने के लिए लकड़ी, कोयले को जलाकर खाना पकाने का चलन है.

दुनिया भर में 3 अरब से ज्यादा लोग खाना पकाने के लिए प्रदूषण फैलाने वाले ईंधनों का इस्तेमाल करते हैं.
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4. कंपोस्टिंग

रोजाना किचन से निकले कचरे जैसे सब्जियों के छिल्के, चायपत्ती, खाने की बची हुई चीजों से खाद तैयार की जा सकती है. विक्रांत तोंगड़ किसानों के लिए भी यही सलाह देते हैं कि फसलों के अवशेष जलाने की बजाए उससे खाद तैयार किया जा सकता है.

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5. वेस्ट मैटेरियल को रीसाइकिल करना

कूड़े-कचरे का सही तरीके से मैनेजमेंट न किए जाने से ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन होता है. इसलिए आपको अपने स्तर पर कचरे को मैनेज करने की कोशिश करनी चाहिए, जिसमें रीसाइकिलिंग काफी अहम होती है.

घर के आसपास धूल पर पानी का छिड़काव करें, ताकि ये कण उड़े नहीं. घर की सफाई के वक्त भी इस बात का ध्यान रखें. 
विक्रांत तोंगड़, सोशल एक्शन फॉर फॉरेस्ट एंड एन्वायरमेंट
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6. बेवजह लाइट और इलेक्ट्रॉनिक चीजें ऑन न रखें

आपको ऐसा लग सकता है कि लाइट, पंखे या इलेक्ट्रिक चीजों का इस्तेमाल वायु प्रदूषण से कैसे जुड़ा है. लेकिन ये मत भूलिए कि फिलहाल हमारे देश में बिजली उत्पादन का सबसे बड़ा स्रोत थर्मल पावर प्लांट्स हैं, जो कोयला, गैस और डीजल पर आधारित हैं. इसलिए बिना जरूरत बिजली उपकरणों को ऑन नहीं रखना चाहिए.

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7. पटाखों को बढ़ावा ना दें

विक्रांत तोंगड़ सलाह देते हैं कि चाहे ग्रीन पटाखे हों या नॉन ग्रीन इनको बढ़ावा ना दें.

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वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन की ओर से वायु प्रदूषण से निपटने के लिए और भी तरीके बताए गए हैं. जैसे इलेक्ट्रिक वाहनों का इस्तेमाल, घर की बिजली के लिए ऊर्जा के नवीकरणीय स्रोतों का प्रयोग, व्यस्त समय में ड्राइव न करना, रोजाना वायु प्रदूषण का स्तर चेक करना.

सोशल एक्शन फॉर फॉरेस्ट एंड एन्वायरमेंट (SAFE) के विक्रांत तोंगड़ कहते हैं कि इलेक्ट्रिक वाहन अच्छा सुझाव है. हालांकि हमारा मानना है कि इन्हें बढ़ावा देने की बात होती है, लेकिन इस पर अभी भारत में बहुत खास काम नहीं हो पाया है. ये आज भी लोगों की पहुंच से बहुत दूर है और काफी महंगी भी है.

हालांकि ई-रिक्शा पर बहुत अच्छा काम हुआ है. कुछ ई-कारें भी हैं, लेकिन बहुत महंगी पड़ती हैं. साथ ही ई-वेस्ट निस्तारण की अभी कोई पुख्ता व्यवस्था नहीं है. ई-वाहनों के लिए सड़कों की स्थिति सुधारने के साथ सरकारी नीतियों, राष्ट्रीय और अंतरर्राष्ट्रीय निवेश की जरूरत है.

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