फिल्म ‘तारे जमीन पर’ आपको याद है, जिसमें फिल्म के मुख्य किरदार ईशान के माता पिता उसके डिस्लेक्सिया की पहचान नहीं कर पाते हैं. फिल्म में आपको उन पर गुस्सा आता है? बिल्कुल आता होगा, ईशान के प्रति उनकी शुरुआती उपेक्षा हर किसी को नाराज करती है. लेकिन डिस्लेक्सिया को नहीं पहचान पाने के लिए आप ईशान के माता पिता को दोष नहीं दे सकते हैं.
डिस्लेक्सिया की पहचान करना, आसान नहीं है. साइकॉलजिस्ट, स्पेशल एजुकेटर्स और कॉग्निटिव साइंटिस्ट दशकों से उन विभिन्न तरीकों पर रिसर्च कर रहे हैं, जिससे कि डिस्लेक्सिया को समझा जा सके और इससे निजात पाई जा सके. इस लर्निंग डिसऑर्डर की जटिलता के कारण ही पेरेंट्स और टीचर्स को अभी भी डिस्लेक्सिया की पहचान और इससे प्रभावित बच्चे की मदद करने में मुश्किल आती है.
यहां कुछ सामान्य रूप से पूछे जाने वाले सवाल हैं, जिससे कि बच्चों की देखभाल करने वालों को मदद मिल सकती है.
डिस्लेक्सिया क्या है?
यह एक दिमागी स्थिति है, जिसमें किसी व्यक्ति विशेष को पढ़ने या किसी वर्ड की सही स्पेलिंग बोलने में कठिनाई होती है. यह कठिनाई इसलिए होती है क्योंकि डिस्लेक्सिया प्रभावित ब्रेन को निश्चित प्रकार की इंफॉर्मेशन को प्रोसेस करने में मुश्किल होती है.
उदाहरण के लिए ‘b’ और ‘d’ में समानता होने के कारण ब्रेन हमेशा इन दोनों में अंतर नहीं कर पाता है. और वह इन दोनों को समान रूप में ही प्रयोग करता है.
इसलिए डिस्लेक्सिया से प्रभावित बच्चा हमेशा स्लो रीडर होता है. वह हमेशा इस तरह से नहीं पढ़ सकता है, जिससे लगे कि वह सामान्य है. प्रयास किए बिना उसे चीजों को समझने में परेशानी होती है.
तो अब तक ये जो कहा जाता रहा है कि डिस्लेक्सिया का इंटेलिजेंस से कोई लेना-देना नहीं है, ये बात उससे बिल्कुल उलट है.
डिस्लेक्सिया के लक्षण
स्पेलिंग गलत बोलना और पढ़ने में कठिनाई डिस्लेक्सिया के स्पष्ट लक्षण हैं. इससे प्रभावित बच्चे लेटर्स को मैच करने या उन्हें बोलने में अक्सर कन्फ्यूज हो जाते हैं. ऐसा पढ़ते समय या उन्हें बोलते समय होता है.
आपने यह गौर किया होगा कि जब डिस्लेक्सिया प्रभावित बच्चा पढ़ने की कोशिश करता है, तो पहले वह हर शब्द को अपने मन में पढ़ता है. और इसके बाद वह बाहर बोलता है. कभी-कभी वह थोड़े समय के लिए ही अपना ध्यान केंद्रित कर पाता है. इससे टीचर्स कन्फ्यूज हो जाते हैं कि कहीं बच्चा ख्यालों में तो नहीं खो गया है.
देखभाल करने वाले और टीचर्स को यह ध्यान देना होगा कि ऐसे बच्चे हावभाव और ऑबजर्वेशन के जरिये ही बेहतर तरीके से सीख सकते हैं. कभी-कभी डिस्लेक्सिया प्रभावित को पढ़ते समय देखने में कठिनाई हो सकती है. हालांकि ऐसे में आंखों की जांच से कुछ भी पता नहीं लग सकता है.
ऐसे बच्चे बोलने में कमजोर होते हैं. वे शुरुआती तौर पर इमेज के रूप में (शब्द में नहीं) सोचते हैं. अपनी सोच को शब्दों में रखने में होने वाली कठिनाई के कारण ही वे रुक-रुक कर बोलते हैं.
इसमें दो बातें याद रखनी है. इस संबंध में हमेशा प्रोफेशनल्स से ही सलाह लें. दूसरा, दो डिस्लेक्सिया प्रभावित व्यक्तियों में एक समान लक्षण नहीं होते हैं.
क्या डिस्लेक्सिया जेनेटिक है?
हां, ऐसा हो सकता है क्योंकि डिस्लेक्सिया एक बायोलॉजिकल बेस्ड डिसऑर्डर है, इसके परिवार में किसी अन्य के होने की आशंका अधिक होती है. अगर पेरेंट्स या किसी अन्य बुजुर्ग को डिस्लेक्सिया रहा हो, तो बच्चे की बेहतरी के लिए आप शुरुआत में ही प्रोफेशनल हेल्प ले सकते हैं.
हम मदद के लिए क्या कर सकते हैं?
डिस्लेक्सिया से जूझ रहे बच्चे की क्लासरूम के साथ-साथ घर पर भी कई तरीके से मदद की जा सकती है. लेकिन सबसे पहले ये भी ख्याल रखना चाहिए कि डिसऑर्डर एडवांस स्टेज पर ना पहुंचा हो. शुरुआत में ही इस डिसऑर्डर का पता लगना व इस संबंध में मदद मिलना, बच्चे के एस्टीम और परफॉर्मेंस के लिए बेहतर होता है.
टीचर्स और पैरेंट्स को बच्चों के साथ समय देना चाहिए. इससे वह शुरुआती स्तर पर बच्चे को लिखना सिखा सकेंगे. लिखने की प्रैक्टिस कराना बहुत जरूरी है. रिसर्च में भी सामने आ चुका है कि मैनुस्क्रिप्ट लेसन बच्चों को पढ़ने में मदद करता है. बच्चा जितनी जल्दी लिखना और एल्फाबेट पढ़ना सीख जाएगा, वह उतना ही कुशल होगा.
डिस्लेक्सिया प्रभावितों में चीजों को रिपीट करना प्रमुख रूप से होता है. ऐसे में देखभाल करने वाले को धैर्य रखना चाहिए. यह याद रखना सबसे महत्वपूर्ण है कि यह एक धीमी प्रक्रिया है. शुरू से परफेक्शन की उम्मीद न रखें और कभी हिम्मत न हारें.
डिस्लेक्सिया के अलावा और कौन से लर्निंग डिसऑर्डर हैं?
नहीं, ऐसा नहीं है. हालांकि डिस्लेक्सिया सबसे कॉमन लर्निंग डिसऑर्डर है, लेकिन आमतौर पर इनमें और दूसरे डिसऑर्डर में कन्फ्यूजन हो जाता है. दूसरे डिसऑर्डर इस प्रकार हैं.
डिस्कैलकुलियाः यह डिस्लेक्सिया जैसा ही है, लेकिन यह नंबर से संबंधित है. इसमें बच्चों को नंबर्स को पढ़ने में, मैथमैटिकल सिंबल और कंसेप्ट्स समझने में कठिनाई होती है. यहां तक कि नंबर्स और सवालों को लिखने और कॉपी करने में भी मुश्किल होती है.
डिस्ग्राफियाः इसमें बच्चों को लिखने में कठिनाई होती है. यह डिस्लेक्सिया से अलग है. इसमें बच्चे को पढ़ने और स्पेलिंग की तुलना में लिखने के प्रोसेस और मैकेनिक्स को समझने में अधिक दिक्कत होती है.
(लेखक प्राची जैन एक साइकॉलजिस्ट, ट्रेनर, ऑप्टिमिस्ट, रीडर और रेड वेल्वेट्स लवर हैं.)
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