ऑटोइम्यून हेपेटाइटिस एक ऐसी बीमारी है जिसमें किसी अज्ञात कारण की वजह से लीवर में क्रोनिक सूजन आ जाती है. इस बीमारी में शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता फेल हो जाती है, जिससे व्यक्ति का इम्यून सिस्टम (प्रतिरक्षा प्रणाली) खुद ही लीवर की कोशिकाओं पर हमला करने लगता है.
लिवर शरीर के सबसे बड़े और अहम अंगों में से एक है. लिवर के मुख्य कार्य हैं- खून में से टॉक्सिन्स को साफ करना, डाइजेशन में मदद करना, दवाओं को घोलना और खून का थक्का जमने से रोकना होता है.
जेपी अस्पताल के लीवर ट्रांसप्लांट विभाग के वरिष्ठ कंसल्टेंट डॉ अभिदीप चौधरी का कहना है कि
ऑटोइम्यून हेपेटाइटिस (एआईएच) में शरीर का इम्यून सिस्टम खुद ही लिवर कोशिकाओं पर हमला क्यों करने लगता है, इसका कारण अब तक अज्ञात है. हालांकि, ऐसा माना जाता है कि रेड ब्लड सेल लिवर की कोशिकाओं को बाहरी मान लेती हैं और इन कोशिकाओं पर हमला करने लगती हैं. जिससे लिवर में सूजन आ जाती है
ऑटोइम्यून हेपेटाइटिस (एआईएच) के दो प्रकार के हैं. टाईप 1 (क्लासिक): यह बीमारी का सबसे आम प्रकार है. यह किसी भी उम्र में हो सकता है और पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं में ज्यादा होता है. एक तिहाई मरीजों में इसका कारण अन्य ऑटोइम्यून बीमारियों से जुड़ा होता है जैसे थॉयराइडिटिस, युर्मेटॉइड आथ्र्राइटिस और अल्सरेटिव कोलाइटिस.
टाईप 2 : हालांकि वयस्कों में टाईप 2 ऑटोइम्यून हेपेटाइटिस हो सकता है, यह लड़कियों में लड़कों की अपेक्षा अधिक पाया जाता है. यह अक्सर दूसरे ऑटोइम्यून बीमारियों से पीड़ित मरीजों में होता है. यह आमतौर पर ज्यादा गंभीर होता है और शुरुआती लक्षणों के बाद जल्द ही अडवान्स्ड लिवर रोग में बदल जाता है .
ऐसे कई कारक हैं जिनसे ऑटोइम्यून हेपेटाइटिस की संभावना बढ़ जाती है. अगर व्यक्ति के परिवार में मीजल्स (खसरा), हर्पीज सिम्पलेक्स या एपस्टीन-बार वायरस के संक्रमण का इतिहास हो तो ऑटोइम्यून हेपेटाइटिस की संभावना बढ़ जाती है. हेपेटाइटिस ए,बी या सी का संक्रमण भी इसी बीमारी से जुड़ा है .
इसमें आनुवंशिक कारण भी है. कुछ मामलों में यह बीमारी परिवार में आनुवंशिक रूप से चलती है. यानी ऑटोइम्यून हेपेटाइटिस का कारण आनुवंशिक भी हो सकता है. ऑटोइम्यून हेपेटाइटिस किसी भी उम्र में महिलाओं और पुरुषों दोनों को हो सकता है, लेकिन महिलाओं में इसकी संभावना अधिक होती है.
ऑटोइम्यून हेपेटाइटिस के लक्षण क्या हैं?
रोग के शुरुआती लक्षण हैं थकान, पीलिया, मितली, पेट में दर्द और आथ्रालजियस, लेकिन मेडिकल प्वाइंट से इसके लक्षण गंभीर रूप ले सकते हैं. बहुत से मरीजों में इसके कोई लक्षण दिखाई नहीं देते, और रूटीन लिवर फंक्शन टेस्ट में ही बीमारी का निदान होता है.
ऑटोइम्यून हेपेटाइटिस के निदान के लिए जांच जरूरी है. अगर लीवर एंजाइम में बढ़ोतरी होती है, तो इसका पता रक्त जांच से चल जाता है. इसके अलावा अन्य रक्त परीक्षणों के द्वारा एंटी-स्मूद मसल एंटीबॉडी, एंटीन्यूक्लियर फैक्टर एंटीबॉडी और एंटी एलकेएम एंटीबॉडी की जांच की जाती है. रक्त में इम्यूनोग्लोब्यूलिन जी का स्तर बढ़ सकता है. निदान की पुष्टि के लिए लिवर बायोप्सी भी की जा सकती है.
ऑटोइम्यून हेपेटाइटिस का इलाज क्या है?
ऑटोइम्यून हेपेटाइटिस ऐसे कुछ लीवर रोगों में से एक है जो थेरेपी के लिए बहुत अच्छी प्रतिक्रिया देता है. इलाज के लिए मुख्य रूप से कॉर्टिकोस्टेरॉयड इस्तेमाल किए जाते हैं. ये दवाएं लिवर की सूजन को कम करती हैं. इसके अलावा एजाथियोप्रिन, मायकोफिनॉलेट मोफेटिल, मेथोट्रेक्सेट या टेक्रोलिमस जैसी दवाओं का इस्तेमाल भी किया जाता है. हालांकि, कुछ मरीजों में बीमारी निष्क्रिय होती है, उन्हें कुछ विशेष इलाज की जरूरत नहीं होती, लेकिन ऐसे मरीजों को नियमित फॉलो अप करवाना चाहिए. अगर अंतिम अवस्था में रोग का निदान हो तो भी लिवर ट्रांसप्लान्ट से इलाज संभव है.
अगर ऑटोइम्यून हेपेटाइटिस का इलाज न किया जाए तो यह सिरहोसिस या लिवर फेलियर का कारण बन सकता है. हालांकि, जल्दी निदान और उपचार के द्वारा मरीज को इस स्थिति से बचाया जा सकता है. किसी भी अवस्था में इलाज संभव है, यहां तक कि सिरहोसिस के बाद भी रोग पर काबू पाया जा सकता है.
जीवनशैली में किस तरह के बदलाव लाए जाएं?
बीमारी की अवस्था में शराब का सेवन न करें, क्योंकि यह लिवर को नुकसान पहुंचाती है. थोड़ी शराब की मात्रा भी मरीज की स्थिति को बिगाड़ सकती है.
मरीज को सेहतमंद और संतुलित आहार का सेवन करना चाहिए. नियमित रूप से व्यायाम करें, वजन पर नियन्त्रण रखें, क्योंकि मोटापे से फैटी लिवर डिजीज की संभावना बढ़ जाती है, जिससे ऑटोइम्यून हेपेटाइटिस जटिल रूप ले सकता है.
(इनपुट:IANS)
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