नहीं, नहीं, हम कोई फिल्म समीक्षा नहीं कर रहे. लेकिन हर सुबह बड़ी तादाद में भारतीय अपनी टॉयलेट सीट पर यही करते दिखते हैं. दुनिया भर में कब्ज का मतलब है कि हफ्ते में तीन से कम बार शौच करना, या कड़ा मल आना, या शौच करने में ताकत लगाना.
हालांकि, भारत में ये लोगों को जमकर व्यस्त रखता है, खासकर बुजुर्गों को, क्योंकि उन्हें सुबह की शौच के बाद भी ‘खालीपन’ नहीं महसूस होता और वो दिन में 2-3 बार टॉयलेट जाने को मजबूर होते हैं.
ये अपने आप में कोई बीमारी नहीं है, लेकिन एक लक्षण है, जो किसी संभावित गंभीर बीमारी का कारण और प्रभाव दोनों हो सकता है. मिसाल के लिए, कुछ बीमारियों जैसे बवासीर, भगंदर और डाइवर्टिक्युलोसिस के लिए कुछ हद तक कब्ज को जिम्मेदार माना जाता है.
दूसरी तरफ, ट्यूमर्स, पॉलिप्स या तपेदिक जैसे रोग भी कब्ज को जन्म देते हैं. इसके पीछे कुछ मनोवैज्ञानिक कारकों का भी हाथ होता है. मिसाल के लिए, सफर के दौरान या कहीं भी किसी गंदे टॉयलेट को इस्तेमाल करने का विचार भी पेट खाली करने की इच्छा को बिगाड़ देता है.
आयुर्वेद में माना जाता है कि अस्वच्छ पाचन तंत्र की वजह से शरीर में जमा अशुद्धता, गंदगी या विषैले तत्व कई बड़ी बीमारियों का कारण बनते हैं. इसलिए, आयुर्वेद में हर इलाज के लिए साफ पेट पर सबसे ज्यादा जोर दिया गया है.
बीमारियों के अलावा, कब्ज कभी-कभी सामाजिक शर्मिंदगी की वजह भी बन जाता है क्योंकि पेट में जमा मल ज्यादा गैस बनाता है, जिसकी आवाज या गंध को काफी कोशिशों के बाद भी छिपाया नहीं जा सकता. और आप फिर अपनी‘अंदरूनी आवाज’ को सुनने के लिए मजबूर होते हैं!
तो फिर इसका उपाय क्या है? ये उपाय नीचे दिए गए हैं.
· हर दिन कम से कम 2 लीटर पानी पिएं.
· एक दिन में कम से कम फल और कच्ची सब्जियों के 5 सर्विंग* लें.
· हफ्ते में 6 दिन कम से कम 45 मिनट कसरत करें.
· अपने भोजन में रेशेदार चीजों की मात्रा बढ़ाएं, जैसे मल्टीग्रेन आटा.
· शौचालय में ज्यादा वक्त ना बिताएं. भारतीय शैली के शौचालयों का इस्तेमाल करें क्योंकि उनमें बैठने का तरीका पेट खाली करने में मदद करता है.
· पेट साफ करने के लिए लघु संख प्रक्षालन नाम की यौगिक क्रिया करें, लेकिन एक प्रशिक्षित योग शिक्षक से अच्छी तरह सीखने के बाद.
और इन बातों का भी ध्यान रखें:-
· जंक फूड को ना कहें.
· मैदे जैसे रिफाइंड आटे के इस्तेमाल से बचें.
· तली हुई चीजें ज्यादा ना खाएं.
· धूम्रपान ना करें.
· शौच मुलायम करने वाली कड़ी दवा बिना डॉक्टरी सलाह के ना लें. बहुत जरूरी है तो ईसबगोल का इस्तेमाल करें.
· ‘प्राकृतिक’ उपचारों पर ज्यादा भरोसा ना करें. उनकी कार्यकुशलता को लेकर पक्के तौर पर कुछ नहीं कहा जा सकता. प्रोबायोटिक भले ही नुकसानदेह नहीं दिखते, कुछ प्रोबायोटिक्स सूजन या मतली पैदा कर सकते हैं.
अगर आप 6 महीने से ज्यादा समय से ये सब कर रहे हैं और फिर भी पेट ‘खाली’ नहीं हो पा रहा तो डॉक्टर के पास जाएं.
*(अमेरिकन हार्ट एसोसिएशन के मुताबिक, सब्जियों की एक सर्विंग का मतलब है कच्ची पत्तेदार सब्जियों का एक कप,दूसरी सब्जियों का आधा कप या वेजिटेबल जूस का आधा कप. और फलों के लिए: एक मध्यम आकार का फल; आधा कप कटा हुआ या पका हुआ फल; या आधा कप जूस.)
(डॉ.अश्विनी सेतिया दिल्ली के मैक्स सुपर स्पेशियालिटी हॉस्पिटल में पेट रोग विशेषज्ञ और प्रोग्राम डायरेक्टर हैं. उनका प्रयास है कि लोग बिना दवाओं के सेहतमंद जीवन बिताएं. उनसे ashwini.setya@gmail.com पर संपर्क कर सकते हैं)
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