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क्या आप चलते-फिरते खाते हैं? जानिए इसके नुकसान

कभी सोचा है, इत्मिनान से बैठकर खाना खाने को क्यों कहा जाता है?

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“खाने के समय ही तुम्हें सबसे ज्यादा जल्दी होती है, दो कौर मुंह में डालते हो और घर से निकल जाते हो.”  

हम सभी ने कभी न कभी अपने घर में ये बातें जरूर सुनी होंगी. असल में हमें इन बातों को सुनकर नजरअंदाज करने की आदत सी पड़ गई है.

हम अक्सर देखते हैं कि लोग अपने काम में इतना व्यस्त हो जाते हैं कि ठीक से खाने का वक्त तक नहीं निकाल पाते हैं.

बहुत बार तो ऐसा भी होता है कि हम या तो अपने ऑफिस की डेस्क पर या कार चलाते समय, या चलते हुए और दूसरे हाथ में फोन पर बात करते हुए भी खाना खा लेते हैं.

आइए जानें कि क्या वास्तव में इसमें कोई तथ्य है कि खाना आराम से खाना चाहिए या ये सिर्फ कोरी बातें हैं.

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क्यों दी जाती है बैठकर खाने की सलाह?

भोजन हमें एक जगह बैठ कर, स्थिरता से और बहुत आराम से खाना चाहिए.

प्रमाण के तौर पर बहुत से वैज्ञानिक तथ्य हमारे सामने हैं. विश्व में लगभग सभी स्थानों पर और सभी संस्कृतियों में चलते-फिरते खाना बुरा माना गया है. बल्कि, अगर यह कहें कि चलते-फिरते खाना वर्जित माना गया है, तो अतिशयोक्ति नहीं होगी.

इसके पीछे वैज्ञानिक कारण यह है कि चलने-फिरने पर जो खून का प्रवाह है, वह प्राकृतिक रूप से स्वतः ही हमारे हाथों-पैरों की ओर मुड़ (डाइवर्ट) हो जाता है और भोजन के लिए, जो पर्याप्त मात्रा में खून हमारे पाचन तंत्र को चाहिए, वहां पर नहीं पहुंच पाता.

हमारे शरीर में किसी भी तंत्र को अपना पूरा काम अच्छी तरह से करने के लिए बिल्कुल उपयुक्त मात्रा में रक्त प्रवाह की आवश्यकता होती है.

भोजन जब अमाशय में पहुंचता है तो कम से कम तीन प्रकार की क्रियाएं होती हैं. एक तो भोजन को पचाने के लिए एंजाइम्स की सेक्रेशन; दूसरा अमाशय में एंजाइम और भोजन का सही प्रकार से मिश्रण करने के लिए उसकी गति का संचालन और तीसरा, भोजन के पच जाने के बाद उसका रक्त में समावेश या जज्ब होना.

पाचन तंत्र में रक्त सही मात्रा में न पहुंचने पर पाचन क्रिया में दुष्प्रभाव पड़ने की संभावना बहुत अधिक हो जाती है. दूसरी ओर भोजन बैठ के खाने पर अमाशय की क्षमता बिल्कुल ठीक रहती है और उसका रक्त प्रवाह भी सही रहता है.
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प्राचीन भारतीय संस्कृति में और आयुर्वेद के अनुसार भी ऐसा माना गया है कि भोजन जमीन पर आलती-पालथी लगाकर अर्थात सुखासन में बैठकर खाना चाहिए.

इसके पीछे भी वैज्ञानिक कारण है कि बैठ जाने पर सभी मांसपेशियां सही टोन में आ जाती हैं और कुछ एक्यूप्रेशर बिंदु ऐसे हैं, जिनके ऊपर दबाव पड़ने से पूरे पाचन तंत्र का रक्त प्रवाह बिल्कुल ठीक हो जाता है.

जिन लोगों को GERD यानी रिफ्लक्स डिजीज है, उनके लिए एक विशेष उपयोगी आसन वज्रासन है. केवल एक वज्रासन ऐसा आसन है, जिसे भोजन के बाद करने की सलाह दी जाती है.

वज्रासन में बैठने से खाद्य नली यानी इसोफागस और अमाशय के बीच का वाल्व तंग (टाइट) हो जाता है, जिससे पेट का अम्ल यानी एसिड मुख की ओर नहीं आ पाता.

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शांत मन से खाना खाएं

आराम से बैठकर खाने में पाचन क्रिया को सक्षम बनाने में जिसका सबसे बड़ा हाथ है, वह है मन का भी ढीला और शांत होना.

कहा जाता है-'जैसा अन्न वैसा मन' और अगर मन में भोजन करते हुए स्वस्थ रहने की भावना जुड़ जाए, तो पूरे शरीर पर उस का बड़ा उत्तम प्रभाव पड़ता है.

बैठकर ही संभव है माइंडफुल ईटिंग

सभी वैज्ञानिक यह मानते हैं कि भोजन करते समय आपका ध्यान केवल भोजन में ही होना चाहिए. इसे ही माइंडफुल ईटिंग कहते हैं और यह केवल बैठकर ही संभव है.

क्वांटम मेडिसिन ( जो कि क्वांटम फिजिक्स की तरह विज्ञान की एक विधा है) के अनुसार विकसित देशों में बढ़ते हुए मोटापे का एक कारण माइंडफुल ईटिंग का न होना है.

जापान में एक अनुसंधान में यह पाया गया है कि खाना खाने के बाद अगर कुछ देर लेट कर विश्राम किया जाए तो वसायुक्त भोजन जल्दी हजम होता है और मालअब्जॉर्प्शन बहुत कम होता है यानी खाना अच्छे से शरीर में जज्ब होता है.

लेकिन सभी डॉक्टर इस बात पर बहुत बल देते हैं कि रात के खाने और सोने के बीच कम से कम 2 घंटे का अंतराल (गैप) अवश्य हो.

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(डॉ अश्विनी सेतिया दिल्ली के मैक्स सुपर स्पेशियलिटी हॉस्पिटल में गैस्ट्रोएंटरोलॉजिस्ट और प्रोग्राम डायरेक्टर हैं. इनसे ashwini.setya@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है.)

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