उपवास कई बीमारियों को रोकने, बचाव या इलाज का सबसे प्रभावी तरीका है. कई धार्मिक पुस्तकों और समुदायों में कई तरह के उपवास या व्रत का जिक्र किया गया है.
हाल के दिनों में छोटे अंतराल के उपवास यानी इंटरमिटेंट फास्टिंग ने काफी लोकप्रियता हासिल की है. यहां तक कि इसकी वैज्ञानिक स्वीकारोक्ति भी मिली है.
इंटरमिटेंट फास्टिंग, जिसे आप छोटे-छोटे उपवास के तौर पर समझ सकते हैं. इसमें आप उपवास करते हैं और फिर एक मकसद के साथ खाते हैं. ये कुछ उसी तरह है, जैसा रमजान में किया जाता है.
उपवास असल में बहुत ही स्वाभाविक रूप से हमारे साथ जुड़ा होता है. एक तरह से रात में 7 से 8 घंटे की नींद के दौरान भी हमारा शरीर उपवास की अवस्था में ही होता है या उस प्रक्रिया से गुजरता है. सोने के दौरान हमारा शरीर खुद ब खुद ही उपवास की दशा में आ जाता है और हमें डीटॉक्सिफिकेशन का मौका देता है. हमारी आंखों के किनारों पर जमा कीचड़, सुबह की सांस की गंध और हमारा पहला पेशाब जो गर्म और तेजाबी होता है, इस बात के लक्षण हैं कि शरीर ने रात में खुद को सफलतापूर्वक डी-टॉक्सिफाई किया है.
आखिर छोटे अंतराल का उपवास कैसे काम करता है
हमारे शरीर का पाचन तंत्र हमारे शरीर के चलते रहने के लिए इसकी ऊर्जा का तकरीबन 80 फीसद खर्च करता है. बाकी का 20 फीसदी शरीर के दूसरे कामों के लिए बचता है. क्या आपने कभी ध्यान दिया है कि जब आप बीमार पड़ते हैं, तो आपकी भूख कैसे अपने आप कम हो जाती है? यह हमारे शरीर का प्राकृतिक सुरक्षा तंत्र है, जो हमारे शरीर का इलाज करता है और ठीक करता है.
पाचन तंत्र हमारी भूख पर रोक लगाकर खुद को धीमा करता है और आखिर में खुद को बंद कर लेता है और इस तरह बचाई गई ऊर्जा को अच्छा होने में लगा देता है.
बुखार भी कुछ नहीं, यह हमारे शरीर का तापमान बढ़ाकर गर्मी के प्रति संवेदनशील रोगाणुओं (पैथोजन) को मारने की एक प्रक्रिया है. डायरिया भी हमारे शरीर से उन कीड़ों को निकालने का एक तरीका है, जो हवा या खाने के साथ हमारे शरीर में आ गए हैं.
उल्टी होने का मतलब भी यही है कि हमारे शरीर से जहरीला पदार्थ बाहर निकल रहा है. उल्टी और कुछ नहीं, बल्कि हमारे शरीर की प्राकृतिक प्रणाली है, जो जहरीली चीज बाहर निकाल रही है. इस तरह के लक्षणों को समझें तो ये दर्शाता है कि आपका शरीर अपना काम अच्छी तरह से कर रहा है.
दुर्भाग्य से, हम इंसान आराम और सुविधा के इस कदर आदी हो गए हैं कि 15 मिनट की तकलीफ भी सहन नहीं होती और फटाफट इसके फौरी उपाय तलाशने लगते हैं. हम एक गोली निगल लेते हैं और दीर्घकालिक रूप से प्रतिरोधक क्षमता से समझौता कर लेते हैं.
मैंने पाया कि बहुत से लोग उपवास के दौरान फल, जूस, नट्स, साबूदाना और पूड़ियां खाते हैं. यह बिल्कुल उपवास नहीं है. उपवास का मतलब उस दौरान किसी भी तरह की खाने-पीने की चीज से परहेज करना है. उपवास में सिर्फ पानी ले सकते हैं. इस दौरान न केवल चाय-काफी, बल्कि नींबू-पानी भी नहीं लेना है क्योंकि इसका मकसद अपने पाचन तंत्र को पूरी तरह से आराम देना है.
क्या आपको कभी-कभी उपवास रखना चाहिए
बहुत से अध्ययन इस बात की तरफ इशारा करते हैं कि विभिन्न बीमारियों को ठीक करने में उपवास खास भूमिका निभाते हैं. बालों का झड़ना, बढ़ती उम्र, घटता वजन, हार्मोंस का असंतुलन, प्रतिरक्षण बढ़ाने, डी-टॉक्सिफिकेशन से लेकर कैंसर के खतरे, मधुमेह के जोखिम को कम करने, हार्ट और किडनी की बीमारियों से लड़ने में छोटे-छोटे अंतराल पर रखे जाने वाले उपवास ज्यादा ऊर्जावान और अंदर से अच्छा महसूस कराते हैं.
डायबिटीज के मरीजों के लिए डॉक्टर की निगरानी में नियमित उपवास रखना इंसुलिन सेंसेटिविटी बढ़ने में मदद करता है. हालांकि ये जरूरी है कि उपवास के दौरान मरीज के शुगर लेवल पर निगरानी रखी जाए.
आंतरिक उपवास आध्यात्मिक स्वास्थ्य में भी सुधार लाता है क्योंकि खाली पेट ध्यान सबसे ज्यादा फायदेमंद होता है. ध्यान लगाने का काम तभी अच्छी तरह से हो सकता है, जब पाचन तंत्र और इसके दिमाग के साथ संचार को पूरी तरह आराम दिया जाए.
मैक्सिको में फास्टिंग पॉड होते हैं, जिन्हें फास्ट इनक्यूबेटर्स कहा जाता है. इसमें लोग प्राकृतिक माहौल के बीच रखे जाते हैं और उन्हें हर तरह के खाने की गंध व शोर से अलग रखा जाता है. लोग यहां 10-30 दिन तक उपवास रख सकते हैं. मैंने देखा है कि लोगों में बीमारियों को ठीक करने, दृष्टि और सुनने में काफी सुधार आया.
अगर आप जीवन की गुणवत्ता बढ़ाने के उपाय तलाश रहे हैं और उम्र लंबी करना करना चाहते हैं तो कैलोरी प्रबंधन काफी कारगर तरीका है. इसका कतई मतलब भूखा रहना नहीं है, लेकिन इसमें जरूरी है कि यह मतलब है कि ठीक वही खाएं, जिसकी आपके शरीर को जरूरत है और कभी-कभी उपवास रख कर शरीर को रिपेयर और रिकवरी का मौका देना है.
उपवास रखने के दौरान नई कोशिकाएं पैदा होने के साथ ही इम्यूनिटी में भी सुधार होता है, इसीलिए उपवास शरीर की इम्यूनिटी के लिए बहुत अच्छा है.
तो इसे कैसे किया जाए?
वास्तविक चिकित्सीय लाभ के लिए लगातार तीन दिन 12-16 घंटे का उपवास महीने में दो बार किए जाने की सलाह दी जाती है.
इसके भी दो चरण हैं. पहला एलिमिनेशन (समापन) जिसमें कि सिर्फ पानी के सेवन के साथ उपवास करना है. दूसरा बिल्डिंग (निर्माण) जिसमें शरीर को खाने की अनुमति दे कर अगले उपवास की तैयारी करना है. शुरुआत 12 घंटे के उपवास से की जा सकती है और धीर-धीरे 16 घंटे तक बढ़ाई जा सकती है. उदाहरण के तौर पर, रात का खाना 8 बजे लेते हैं, तो सुबह के 8 बजे तक का टाइम 12 घंटे का हुआ. इसमें 4 घंटे और जोड़ दिए जाएं, तो ये 16 घंटे का हो जाएगा, जिसका मतलब ये है कि आप अपना पहला खाना दोपहर में लेंगे.
मैं अच्छे नतीजे के लिए ज्यादातर 3 दिन के उपवास की सलाह देता हूं. इसे सप्ताहांत के बाद हर सोमवार या मंगलवार को किया जा सकता है या फिर छुट्टियों या फेस्टिव सीजन के बाद, जो भी आपकी लाइफस्टाइल के हिसाब से ठीक लगता है करें.
आप में से ज्यादातर को पहले दिन तेज भूख का एहसास होगा. दूसरे दिन सुबह की चाय या नाश्ते की तलब लगेगी, लेकिन तीसरे दिन आपको बहुत खुशी का एहसास होगा, क्योंकि आप अपने शरीर की क्षमता को जान चुके होंगे.
इस पद्धति के बारे में इतनी सारे बातें कहने-सुनने के बाद भले ही यह शरीर की बीमारियों के इलाज का एक बेहतरीन तरीका लगता हो, लेकिन इसे हर व्यक्ति का लाइफस्टाइल, शरीर का प्रकार और खास मौके पर मानसिक स्वास्थ्य के मुताबिक ढालना जरूरी है. चूंकि हर एक शरीर की बनावट अलग तरह की होती है, तो इसे तात्कालिक स्वास्थ्य की स्थिति के हिसाब से कस्टमाइज करना होगा. उपवास रखने से पहले प्रोफेशनल्स की सलाह लेना भी जरूरी है.
[ ल्यूक कॉटिन्हो अल्टरनेटिव मेडिसन (इंटिग्रेटिव एंड लाइफ स्टाइल ) एमडी हैं और होलिस्टिक न्यूट्रिशनिस्ट हैं. ल्यूक कैंसर के मामलों के स्पेशलिस्ट हैं. इस आर्टिकल में छपे विचार उनके अपने हैं.]
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