केरल के कोट्टायम की 40 वर्षीय स्मिता एंथोनी तीन बच्चों की मां हैं. उनके पास सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाने का एक अभूतपूर्व (unprecedented) कारण है. वह सुप्रीम कोर्ट से अपने पांच लोगों के परिवार की 'मर्सी किलिंग' (mercy killing) की अनुमति लेना चाहती हैं.
वह कहती हैं, "यह हमारा आखिरी उपाय है. अगर केंद्र और राज्य सरकारें सहायता के अपने वादे को पूरा नहीं करती हैं, तो हमारे पास कोई उम्मीद नहीं बचेगी और यही हमारा एकमात्र विकल्प है."
उनके दो छोटे बच्चे, सेंट्रिन (9) और सैंटिनो (3) जन्मजात एड्रेनल हाइपरप्लासिया (CAH) से पीड़ित हैं, जो एक दुर्लभ ऑटोइम्यून बीमारी है, जिसका कोई इलाज नहीं है.
सेंट्रिन को गंभीर ऑटिज्म भी है. एंथोनी कहती हैं, "वह भारत का पहला बच्चा है, जिसे ये दोनों बीमारियां एक साथ हैं. इसके लिए जीवन भर इलाज की आवश्यकता होती है."
उन्हें इस स्थिति में क्यों धकेला गया?
सीएएच (CAH) जेनेटिक डिसऑर्डरों का एक समूह है, जो जन्म के समय मौजूद होता है और एड्रेनल ग्रंथियों को प्रभावित करता है. यह कोर्टिसोल, एल्डोस्टेरोन और एंड्रोजन जैसे जरुरी हार्मोन को रिलीज होने से रोकता है.
इसके अलावा, साल्ट-वेस्टिंग कंजेनिटल एड्रेनल हाइपरप्लासिया (SWCAH), जो कि दोनों बच्चों में है, सीएएच का सबसे गंभीर रूप है. SWCAH शरीर के लिए ब्लड में सोडियम के लेवल को कंट्रोल करना कठिन बना देता है.
एंथोनी ने फिट को बताया, "बच्चे मुख्य रूप से स्टेरॉयड का सेवन करते हैं, जिससे फंगल इन्फेक्शन, कब्ज और उल्टी जैसी समस्याएं पैदा होती हैं."
एंथनी के मुताबिक, बच्चों का मेडिकल खर्च हर महीने 50,000 रुपये तक जाता है.
स्मिता एंथोनी और उनके पति मनु जोसेफ वर्तमान में बेरोजगार नर्स हैं और पूरे समय अपने बच्चों की देखभाल कर रहे हैं.
वह कहती हैं, ''हमारे घर पर उनकी देखभाल करने वाला कोई नहीं है.''
उन्होंने अब तक और क्या प्रयास किया है?
दुर्लभ बीमारियों वाले बच्चों के लिए सरकारी सहायता
एंथनी का कहना है कि जब परिवार ने मांग की और इसके लिए दबाव डाला तब सीएएच को हाल ही में जनवरी 2023 में केंद्र सरकार की दुर्लभ बीमारियों की सूची में शामिल किया गया.
राष्ट्रीय दुर्लभ रोग नीति 2021 योजना (National Policy for Rare Diseases 2021 Scheme) के तहत, सूची में शामिल दुर्लभ बीमारियों वाले लोग निर्दिष्ट उत्कृष्टता केंद्र (Centre of Excellence) में 50 लाख तक की वित्तीय सहायता और इलाज के हकदार हैं.
स्मिता कहती हैं, "केरल में इस दुर्लभ बीमारी का कोई सीओई (CoE) नहीं है. नजदीकी सीओई बेंगलुरु में है."
वह आगे कहती हैं कि नजदीकी अस्पताल जहां वे इलाज करा सकते हैं वह थ्रीसुर (Thrissur) में है, जो कोट्टायम से लगभग 132 किमी दूर है.
वह कहती हैं, "एक बेटे के गंभीर ऑटिज्म के कारण, हम उसे ट्रेन या फ्लाइट से नहीं ले जा सकते. हमें उसे सड़क मार्ग से ले जाना होगा, जो एक मुश्किल और महंगा काम है."
"हमारे पास सारे पेपर हैं, उन पर कार्रवाई भी की गई है, लेकिन आज तक हमें उससे कुछ भी नहीं मिला है. सिर्फ हमें ही नहीं, बल्कि जो कोई भी इस कैटेगरी में आते हैं, उन्हें फिलहाल यह नहीं मिल रहा है."स्मिता एंथोनी
उनका दावा है कि उन्होंने बच्चों के मेडिकल रिकॉर्ड और सभी आवश्यक दस्तावेजों के साथ हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ.
एक जरुरी नौकरी की तलाश
उन्होंने आरोप लगाया कि जहां वे रहते थे, उसके पास नौकरी के लिए उन्होंने अपनी पंचायत से संपर्क किया था ताकि वे काम के घंटों के दौरान अपने बच्चों के करीब रह सकें.
पंचायत सदस्यों के ऐसा करने पर सहमत होने के बावजूद, उनका आरोप है कि अनुरोध अटका हुआ है क्योंकि आवश्यक कागजी कार्रवाई अभी तक राज्य सरकार को नहीं भेजी गई है.
एंथोनी ने फिट को बताया, "हमने अपनी सारी जमीन और सारे गहने बेच दिए. इसी तरह हम अब तक काम कर रहे हैं." उन्होंने आगे कहा, "हमने कर्ज भी लिया है, जिसे चुकाने का कोई साधन नहीं है."
चाइल्ड प्रोटेक्शन सेविसेज
एंथोनी का दावा है कि कोट्टायम की जिला बाल संरक्षण इकाई (District Child Protection Unit) ने दंपति से मुलाकात की थी और कहा था कि अगर दंपति बच्चों की देखभाल करने में असमर्थ हैं, तो वे बच्चों की कस्टडी ले लेंगे.
"उन्होंने कहा कि हमें अपने बच्चे उन्हें सौंपने होंगे. मैं अपने बच्चों को ऐसे कैसे दे सकती हूं?" वह कहती हैं, "हम चाहते हैं अगर वे हमारे बच्चों का भरण-पोषण और उनकी सुरक्षा करने में हमारी मदद कर दें ."
'हम बस वह सहायता चाहते हैं, जो हमें देनी चाहिए'
यहां बता दें, जोड़े ने अभी तक सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर नहीं की है.
"यह हमारे लिए अंतिम उपाय है. हमने यह निर्णय इसलिए लिया क्योंकि हमारे पहले किए हर प्रयास से कुछ नहीं निकला. हम जो तलाश कर रहे हैं वह हमारी समस्या का एक व्यवहार्य (viable) समाधान है."स्मिता एंथोनी
वह आगे कहती हैं, "हम केवल वह सहायता चाहते हैं, जिसका वादा हमारे बच्चों के इलाज और सुरक्षा के लिए किया गया था."
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