पुरुषों में बड़े पैमाने पर नजरअंदाज किए गए पांच कैंसर- प्रोस्टेट, ब्लैडर, किडनी, टेस्टीक्यूलर और पेनिस कैंसर शामिल हैं. इसलिए वक्त पर इनका पता लगाने और इलाज करने के लिए इनमें से हर एक के कारणों, लक्षणों को जानना जरूरी है. हालांकि प्रोस्टेट कैंसर के बारे में सबसे ज्यादा बात की जाती है, लेकिन बाकी कैंसर की जानकारी रखना भी उतना ही महत्वपूर्ण है.
भारत के युवा लोगों में किडनी या रीनल कैंसर के मामले बढ़ रहे हैं. इसलिए किडनी कैंसर के बारे में वो बातें, जिन्हें जानना जरूरी है.
1. किडनी या रीनल कैंसर क्या है?
किडनी कैंसर ऐसी दशा है, जिसमें किडनी की कोशिकाएं खराब हो जाती हैं और ट्यूमर बना लेती हैं. यह किडनी में मौजूद छोटी ट्यूब्स की दीवारों में बनता है.
पहले ये बीमारी दशकों तक आमतौर पर सिर्फ उम्रदराज लोगों को शिकार बनाती थी, लेकिन भारत में अब यह नौजवान लोगों को भी शिकार बना रही है. किडनी कैंसर के करीब एक तिहाई मरीज 50 साल से कम के हैं और 12 फीसद मरीज 40 साल से कम उम्र के हैं.
शोध बताते हैं कि भारतीयों में कैंसर की बीमारी बढ़ने का कारण कुपोषण है. इस कैंसर के बारे में एक और कारक है जागरूकता की कमी, जिस कारण लोग डॉक्टरी सलाह लेने या नियमित चेकअप कराने नहीं जाते.
2. किडनी कैंसर के रिस्क फैक्टर क्या हैं?
गुर्दे के कैंसर के लिए आम रिस्क फैक्टर में स्मोकिंग, हाइपरटेंशन, मोटापा, जेंडर, जेनेटिक फैक्टर और डाइट शामिल हैं. नॉन स्मोकर्स की तुलना में स्मोकर्स को इसका खतरा दोगुना होता है.
महिलाओं की तुलना में पुरुषों को रीनल कैंसर होने का खतरा दोगुना है. बीमारी की फैमिली हिस्ट्री होने से भी खतरा दोगुना होता है, खासकर भाई-बहनों में. किडनी की बीमारी की एडवांस कंडीशन या लंबे समय से डायलिसिस कराने से भी जोखिम बढ़ जाता है.
किडनी कैंसर इम्युनिटी से संचालित होता है, जो कि कैंसर को रोकने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है. विकासशील देशों में नौजवान पीढ़ी की पोषण दशा, पश्चिमी देशों में अपने समकक्षों की तुलना में खराब है और विकसित देशों के उम्रदराज लोगों की पोषण दशा जैसा है.
3. किडनी कैंसर के लक्षण
किडनी कैंसर के शुरुआती लक्षणों में शामिल हैं:
- पेशाब में खून आना
- लगातार परेशान करने वाला दर्द या पीठ की तरफ किनारों पर भारीपन का अहसास
- अनजाना बुखार
- भूख न लगना
- एनीमिया
- बिना कारण वजन कम होना
- पांवों या पिंडलियों में सूजन
4. खुद को कैसे सुरक्षित रखें
- हेल्दी और संतुलित खाना खाएं
- ब्लड प्रेशर लेवल को काबू में रखें
- नियमित रूप से एक्सरसाइज करें
- स्मोकिंग और एल्कोहल लेना छोड़ दें
- तनाव से बचें
5. डायग्नोसिस
शुरुआती जांच पेट की अल्ट्रासोनोग्राफी से की जाती है. इसके बाद ज्यादा कंट्रास्ट वाला CT स्कैन किया जाता है. अगर किडनी ठीक से काम नहीं कर रही है तो उस हालत में MRI पर भी विचार किया जा सकता है. CECT स्कैन, सीने का एक्सरे और CT स्कैन से बीमारी की स्टेज का पता लगाया जा सकता है.
बीमारी और इसकी स्टेज का पता लगाने में PET स्कैन की सीमित भूमिका है, लेकिन मेटास्टेटिक कैंसर में इसकी खास भूमिका तब है, जब हम टार्गेट थेरेपी और इम्यूनोथेरेपी के असर का आकलन करते हैं.
किडनी कैंसर CT या MRI स्कैन से आसानी से पकड़ में आ जाता है. सर्जरी से पहले बायोप्सी की बहुत कम जरूरत पड़ती है.
6. इलाज और रोबोट असिस्टेड सर्जरी की भूमिका
ट्रीटमेंट में कैंसर ट्यूमर वाली किडनी को निकाल देना आदर्श विकल्प है. बची हुई इकलौती किडनी भी पूरी सामान्य जिंदगी के लिए काफी है.
अगर ट्यूमर छोटा है, तो किडनी के जिस हिस्से में ट्यूमर है, उसे निकाल कर बाकी हिस्सा बचाया जा सकता है. इस प्रक्रिया को आंशिक नेफ्रेक्टोमी कहते हैं, जो रोबोट असिस्टेड सर्जरी, लेपारोस्कोपीया या फिर ओपेन सर्जरी के माध्यम से की जा सकती है.
रोबोट असिस्टेड आंशिक नेफ्रेक्टोमी सबसे अच्छा ट्रीटमेंट है, क्योंकि इसमें न सिर्फ लेपारोस्कोपिक सर्जरी की तरह बहुत कम चीरफाड़ होती है बल्कि ये ज्यादा सटीक भी होती है. मरीज जल्द ठीक हो जाता है. रोबोट असिस्टेड सर्जरी के बारे में आम धारणा के उलट एक यूरोलॉजिस्ट रोबोटिक आर्म की मदद से सर्जरी करता है. गंभीर मामलों में कैंसर ग्रंथियों, फेफड़े, लिवर और हड्डियों में फैल सकता है. इसे ही मेटास्टेटिक किडनी कैंसर कहते हैं.
चूंकि कीमोथेरेपी और रेडिएशन थेरेपी कैंसर की इस किस्म में काम नहीं करती है, ऐसे में ट्यूमर को सर्जरी करके निकालना जरूरी हो जाता है. मेटास्टेटिक रीनल कैंसर को टार्गेट थेरेपी और इम्यूनोथेरेपी जैसी नई टेक्नीक से ठीक किया जा सकता है.
(डॉ अनिल मंधानी, M.S. MCh, DNB (Urology), FACS, मेदांता द मेडिसिटी, गुड़गांव में यूरोलॉजी एंड रीनल ट्रांसप्लांट के चेयरमैन हैं)
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