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कम उम्र में ही भारत के लोग हो रहे हैं किडनी की बीमारी के शिकार

वेस्टर्न खानपान की आदत है बहुत गंभीर मुद्दा है

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विकसित देशों के मुकाबले भारत में लोगों को 15 साल पहले किडनी की बीमारी अपने चपेट में ले रहा है. नेफ्रोप्लस के मेडिकल रिसर्च में सामने आए आंकड़ों से यह चौंकाने वाला खुलासा हुआ है. भारत में औसतन 52 साल की उम्र में लोगों को डायलिसिस की जरूरत पड़ती है तो वहीं विकसित देशों में इसकी जरूरत 67 साल के बाद शुरू होती है.

नेफ्रोप्लस के फाउंडर और सीईओ विक्रम वुप्पला ने एक इंटरव्यू में मीडिया को बताया कि, "एक रिसर्च में पता चला है कि अमेरिका और ब्रिटेन के मुकाबले भारत में 52 साल की उम्र के मरीजों को डायलिसिस की जरूरत शुरू हो जाती है, जबकि उन देशों में इसकी जरूरत 67 साल की उम्र के बाद शुरू होती है. सबसे जरूरी बात यह है कि भारत में विकसित देशों के मुकाबले 15 साल पहले ही यह बीमारी देश पर हमला कर रही है.

रीनल फेलियर (गुर्दे का फेल) होना एक बड़ी चिंता है. अगर भारत में उम्र की सीमा 67 साल है, तो आखिरी के 15 साल बहुत महत्वपूर्ण रहेंगे.

नेफ्रोप्लस ने पिछले चार सालों में 18 राज्यों के 82 शहरों में अपने 128 केंद्रों पर 21759 मरीजों की जांच की. जिसमें 70 फीसदी पुरुष (15437) को डायलिसिस को जरूरत हुई. वहीं इसमें महिलाओं की संख्या 30 फीसदी 6322 है

विक्रम ने कहा, "हम सोच रहे थे कि यह अंतर दो से तीन फीसदी का होगा, लेकिन रिपोर्ट में यह 70 और 30 फीसदी सामने आया है. यह बहुत चौंकाने वाला है. महंगा इलाज होने के कारण सामाजिक देखभाल क्षेत्र में महिलाओं को कम महत्व दिया जाता है.

उन्होंने कहा, "गुर्दे के खराब होने का पहला कारण विदेशों के मुकाबले भारत में डायबिटीज और हाईब्लड प्रेशर का बहुत तेजी से बढ़ना है. भारत के जेनेटिक कोड में डायबिटीज और हाइ ब्लडप्रेशर को ग्रहण करने की अपार क्षमता है. दूसरे देशों के फास्ट फूड में डायबिटीज और हाई ब्लडप्रेशर से लड़ने की क्षमता होती है, लेकिन भारत में फास्ट फूड डायबिटीज और हाई ब्लडप्रेशर को बहुत तेजी से बढ़ाता है.

हमारा जेनेटिक कोड दूसरे देशों के मुकाबले ज्यादा खतरनाक है. जब जेनेटिक कोड और फास्ट फूड का मेल होता है, तो डायबिटीज और हाई ब्लड प्रेशर का खतरा बहुत बढ़ जाता है. जिसके कारण हमारे देश में 20 साल की उम्र से लेकर 30 साल के भी मरीज हैं जिनके गुर्दे खराब हो गए हैं."

नेफ्रोप्लस के फांउडर ने कहते हैं कि,

बात करें हमारी लाइफस्टाइल की तो भारत में ज्यादातर काम बैठ कर करने, देर रात खाना खाने, कभी कभार खाने को छोड़ देना और वेस्टर्न खानपान अपनाना हमारी सेहत के लिए खतरनाक सिद्ध हो रहा है.

उदारण देते हुए उन्होंने कहा कि

दिल्ली एक हवाई अड्डे पर फूड कोर्ट में खाने पीने की तीन दुकाने हैं जहां सबसे ज्यादा भीड़ एक पर लगती है क्योंकि वहां सस्ता और जल्दी खाना मिल जाता है दरअसल हमें जब भूख लगती है तो हम बस खाना चाहते हैं. और वो बना बनाया खाना पकड़ा देते हैं. यह जो वेस्टर्न खानपान की आदत है बहुत गंभीर मुद्दा है. जिसपर सरकार ध्यान नहीं देती है, लोग ध्यान नहीं देते. क्योंकि यह सस्ता और जल्दी मिल जाता है. अगर देखा जाए तो सब्जियों की करी एक बर्गर से ज्यादा महंगी है. उन्होंने कहा, “जो सस्ता और तेज होता है तो वह हमारी आबादी को आकर्षित करता है.

उन्होंने बताया, "बात करें मोटापे की तो भारत में बच्चों में मोटापे की समस्या तेजी से बढ़ रही है. वो पिज्जा, चीप्स, बर्गर, सोडा का यूज कर रहे हैं जिससे डायबिटीज और हाइब्लडप्रेशर का खतरा तेजी से बढ़ रहा है. इन चीजों का यूज करने से 5 से 10 साल में गुर्दे पूरी तरह से खराब हो जाते हैं और उन्हें डायलिसिस की जरूरत पड़ती है या गुर्दे ट्रांसप्लांट कराने पड़ते हैं, जो काफी महंगे हैं. महंगा होने के कारण लोग इलाज नहीं कर पाते और उनकी उम्र कम हो जाती है.

उन्होंने कहा, "बहुत जल्दी डायबिटीज हो जाना, बहुत जल्दी गुर्दे की बीमारी आना और उसके बाद बहुत जल्दी गुर्दे खराब हो जाना भारत में विकसित देशों के मुकाबले 15 साल पहले हो रहा है.

विक्रम ने कहा, "पॉलिसी मेकर को यह देखना चाहिए कि 15 साल पहले देश में हो रहे इस घटनक्रम को रोकने के लिए फास्टफूड पर रोक लगानी चाहिए, सरकार के लिए यह काफी महंगा साबित हो सकता है. देश में 7 करोड़ लोग डायबिटीज से ग्रस्त हैं. अगर उनकी देखभाल नहीं करेंगे तो उन्हें गुर्दे की बीमारी होगी. भारत के पास उतना पैसा नहीं है कि इनके इलाज का खर्च उठाया जा सके.

(इनपुट:IANS)

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