मेडिकल डिवाइस इंडस्ट्री पर पहली बार की गई वैश्विक जांच में ये बात सामने आई है कि लाखों मरीजों को ऐसे डिवाइस इंप्लांट किए गए, जिनकी अच्छी तरह से टेस्टिंग नहीं की गई थी. बाजार में जो डिवाइस मिलती हैं, वो कितनी बेहतर हैं, इसे लेकर कोई पारदर्शिता नहीं है.
दुनिया भर की हेल्थ अथॉरिटीज लाखों लोगों को ठीक तरीके से टेस्ट न किए गए इंप्लांट से बचाने में नाकामयाब रही हैं, जो बीमारी, विकलांगता और मौत की वजह बन सकते हैं.
इंटरनेशनल कंसोर्टियम ऑफ इंवेस्टिगेटिव जर्नलिज्म (ICIJ) के साल भर चले एक इंवेस्टिगेशन में पाया गया कि पिछले दशक 17 लाख चोट या घाव और करीब 83 हजार मौतें गलत मेडिकल इंप्लांट टेस्ट से जुड़ी हो सकती हैं.
ये स्टडी 36 देशों के 250 से अधिक पत्रकारों की मदद से की गई है.
रेगुलेशन की कमी के कारण मरीजों को अंगों में गड़बड़ी, हड्डियों में फ्रैक्चर, शरीर में जहरीली चीजें रिलीज होना और शॉक जैसे नुकसान झेलने पड़े. कई लोगों की मौत तक हो गई.
कुछ ऐसे ही मामले इस साल भारत में भी चर्चा में आए, जब मेडिकल उपकरण बनाने वाली जॉनसन एंड जॉनसन पर हजारों मरीजों में गलत तरीके से डिजाइन किए गए हिप इंप्लांट का आरोप लगा. इसकी वजह से मेटर प्वॉजनिंग, सुनाई न देना, दर्द और मौत हो जाने तक की बात सामने आई थी.
ICIJ के पत्रकारों ने दुनिया भर में सैकड़ों इंटरव्यू लिए, जिससे ये बात सामने आई है कि कैसे मेडिकल डिवाइस इंडस्ट्री ने मरीजों को छला है. उन्हें डिवाइस से जुड़े जोखिम और जटिलताओं से अनजान रखा.
भारत में ICIJ ने विजय वोझाला से बात की. मुंबई में रहने वाले विजय पहले हॉस्पिटल उपकरणों के सेल्समैन रह चुके हैं. इससे पहले फिट से बात करते हुए विजय ने अपनी तकलीफों की चर्चा यूं की थी:
‘मेरी जीवनशैली काफी सक्रिय थी, लेकिन अप्रत्याशित परिस्थितियों के कारण मुझे साल 2008 में हिप रिप्लेसमेंट सर्जरी करानी पड़ी. एक मेडिकल रेप्रेजेंटेटिव होने के नाते, मैं कई डॉक्टरों से मिला और इस क्षेत्र में नया और बेहतर क्या है उसके बारे में पता किया. मैंने मेटल-ऑन-मेटल हिप इंप्लांट कराने का निर्णय लिया क्योंकि डॉक्टरों ने मुझे बताया कि एक बार रिप्लेसमेंट करा लेने के बाद मैं दौड़ने से लेकर टेनिस खेलने तक सबकुछ कर सकूंगा. लेकिन इसके बाद जो हुआ, वह किसी बुरे सपने से कम नहीं था. मुझे मेटल प्वाइंजनिंग हो गई. थकान के साथ-साथ मुझे कुछ कम सुनाई देने लगा. इसके साथ ही मिला कभी न खत्म होने वाला दर्द.’
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट बताती है कि साल 2014 से मेडिकल डिवाइस से जुड़ी 903 घटनाएं सामने आईं. इनमें से 325 कार्डियक स्टेंट, 145 ऑर्थोपेडिक इंप्लांट, 83 इंट्रायूटेराइन कॉन्ट्रासेप्टिव डिवाइस, 58 इंट्रावेनस कैन्यल, 21 कैथेटर और 271 दूसरी मेडिकल उपकरणों से जुड़ी थीं.
गार्जियन के मुताबिक यूके में साल 2015 से 2018 तक ऐसे 62 हजार मामले सामने आए. इनमें 1,004 लोगों की मौत तक हो गई.
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