जुलाई 2017 में कार्तिक (बदला हुआ नाम) दिल्ली में दुर्घटना का शिकार हो गए. कार्तिक चेन्नई के रहने वाले थे. उन्हें तुरंत वसंत कुंज के फोर्टिस अस्पताल ले जाया गया.
डॉक्टरों ने उन्हें दिमागी तौर पर मृत घोषित (ब्रेन डेड) कर दिया. यानी वो अब जिंदा नहीं थे और वो फिर से जिंदा नहीं हो सकते थे, लेकिन फिर भी उनका दिल धड़क रहा था. बाकी अंगों को जिंदा रखने के लिए खून पहुंचा रहा था.
कार्तिक के अंगों का क्या हुआ?
जब एक मरीज को दिमागी तौर पर मृत घोषित कर दिया जाता है, तो स्थिति बहुत मुश्किल और महत्वपूर्ण हो जाती है. पहले परिवार को सूचना दी जाती है, उनका दुख बांटा जाता है, फिर काउंसलर्स और डॉक्टर्स उन्हें अंगदान का विकल्प बताते हैं.
डॉ. सूद कहते हैं कि कार्तिक के परिवार ने अद्भुत साहस दिखाया.
कार्तिक शादीशुदा नहीं था. परिवार के लिए ये बहुत बड़ा झटका था, क्योंकि वो पहले से ही कार्तिक के पिता को कैंसर होने के दुख से गुजर रहे थे. हालांकि, वे इतने साहसी और उदार थे, जो अंगदान के लिए इजाजत देने को तैयार हो गए.डॉ. (कर्नल) राजीव सूद, निदेशक, मूत्रविज्ञान, रोबोटिक्स और गुर्दा प्रत्यारोपण, फोर्टिस हॉस्पिटल
एक बार जब परिवार ने इसकी इजाजत दे दी, तो अंग बचाने की प्रक्रिया शुरू हो गई. पहला कदम राष्ट्रीय अंग प्रत्यारोपण एवं ऊतक संस्थान को सूचित करना होता है, जो एक राष्ट्रीय रजिस्ट्री है और फैसला करती है, कि कौन सा अंग किसे दिया जाए.
नियमों के अनुसार, जिस अस्पताल में दिमागी तौर पर मृत मरीज एडमिट होता है, उसे प्राथमिकता दी जाती है. चुना हुआ अस्पताल अंग प्राप्तकर्ता से बात करता है, उन्हें तैयार करता है और अंग मिलान के लिए जांच कराता है. इसके साथ ही पुलिस से अनापत्ति प्रमाण पत्र लिया जाता है.
तब तक, दिमागी तौर पर मृत मरीज को आईसीयू में रखा जाता है और उसके अंगों को मशीन के साथ ठीक हालत में रखा जाता है. जिसके बाद, प्राप्तकर्ता के अस्पताल से प्रत्यारोपण टीम पहुंचती है.
शव को क्रिटिकल केयर सेटिंग में वॉर्ड में रखा जाता है. एक बार फैसला लिए जाने के बाद शव को ऑपरेशन टेबल पर शिफ्ट किया जाता है और अलग-अलग अंग से संबंधित टीमें अंग निकालने का काम करती हैं. ज्यादातर मामलों में सबसे पहले दिल निकाला जाता है, उसके बाद जिगर और गुर्दा निकाले जाते है, क्योंकि ये नाजुक अंग हैं, जो रक्त प्रवाह का तनाव नहीं सह पाते.डॉ. (कर्नल) राजीव सूद
दिल लगभग चार घंटे तक जिंदा रहता है, इसलिए उसे प्राथमिकता दी जाती है. पहले रक्त वाहिकाओं को काट दिया जाता है, हृदय धमनियों को एक कोल्ड सॉल्यूशन के जरिए पंप किया जाता है. दिल को बर्फ पर एक बैग में रखा जाता है.
इस्केमिक पीरियड का मतलब है कि दिल को खून नहीं मिल रहा है. इसलिए, एक बार जब हम दिल में रक्तप्रवाह बंद कर देते हैं, तो इस अवधि को कम से कम रखना होता है, ताकि दिल की मांसपेशियों को कोई नुकसान न पहुंचे.- डॉ. जेड.एस. मेहरवाल, निदेशक और समन्वयक, कार्डियोवस्कुलर सर्जरी विभाग, फोर्टिस एस्कॉर्ट्स हार्ट इंस्टीट्यूट
ऑर्गन का सफर
इस आइस बॉक्स में क्या कोला या ठंडी बीयर है? नहीं, इस पिकनिक बॉक्स में बेहद अहम चीज है यानी दिल.
एक बार जब दिल को आइस बॉक्स में डाल दिया गया, तो कम से कम समय में इसे रोगी के भीतर प्रत्यारोपित कर देना चाहिए. प्रत्यारोपण करने वाली टीम दिलल लेकर जल्दी से एंबुलेंस के माध्यम से उस अस्पताल तक जाती है, जहां रोगी प्रत्यारोपण का इंतजार कर रहा होता है. इसके लिए सबसे कम व्यस्त रास्ता (ग्रीन कॉरिडोर) चुना जाता है.
ग्रीन कॉरिडोर वह रास्ता है, जहां सारी स्ट्रीट लाइट ग्रीन होती हैं. एक पायलट पुलिस कार, जो एंबुलेंस के आगे चलती है, उसे अस्पताल तक सबसे छोटे रास्ते से लेकर जाती है. ऐसे समय में एक घंटे तक तय की जाने वाली दूरी केवल 18 मिनट में तय की जाती है.- डॉ. सिद्धार्थ यादव
जैसे-जैसे घड़ी की सुई आगे बढ़ती है, अस्पताल में अंग प्रत्यारोपण के इंतजार में बैठी टीम अपनी तैयारी करने लगती है. अस्पताल के अंदर दूसरा ग्रीन कॉरिडोर इस बात को सुनिश्चित करता है कि बिना किसी देरी के बक्से को प्राप्त किया जाए. कार्तिक के हार्ट ने 24 साल के एक युवा को जीवन दिया, जिसे दिल संबंधी समस्या थी.
शरीर के बाहर प्रत्येक अंग का अपना जीवनकाल होता है.
- दिल और फेफड़े बर्फ में 6 घंटे तक जिंदा रह सकते हैं.
- लिवर, पैंक्रियाज और इंटेस्टाइन 12 घंटे तक बर्फ में रह सकता है.
- किडनी 30 घंटे तक बर्फ में रह सकती है.
लीवर एक मात्र अंग है, जिसे दो भागों में बांटकर दो लोगों की जिंदगी बचाई जा सकती है. इसका छोटा हिस्सा एक बच्चे के लिए उपयोग में लाया जा सकता है, तो दूसरा बड़ा हिस्सा किसी बड़ी उम्र वाले व्यक्ति के लिए उपयोग किया जा सकता है.- डॉ. विवेक विज, लिवर प्रत्यारोपण सर्जन, फोर्टिस हॉस्पिटल
फिर शुरू होती हैअंग की नई जिंदगी
कार्तिक ने 5 लोगों की जिंदगी बचाई. उनका दिल एक 24 साल के युवा के दिल में धड़क रहा है, तो उनकी दो किडनी वसंत कुंज के फोर्टिस और बीएलके अस्पताल के रोगियों के काम आई. उनका लीवर गंगाराम अस्पताल के एक रोगी को दिया गया. उनकी कॉर्निया को ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस (एम्स) को भेजा गया है.
भारत में अंग दान अभी शुरुआती स्टेज में है. पांच लाख से ज्यादा रोगियों को अंगदाताओं की तलाश है. साल 2016 में 750 से भी कम शवों से ट्रांसप्लांट किया गया.
हम लोगों ने बस शुरू किया है. जब हम अमेरिका जैसे देश की बात करते हैं, जहां के 20 प्रतिशत लोग अंग दान करते हैं, तो हमारी स्थिति केवल एक प्रतिशत है. हम लोगों के लिए अभी इसकी शुरुआत है. जब हम आगे बढ़ेंगे तभी इसके प्रति जागरुकता बढ़ेगी.- भवदीप सिंह, सीईओ, फोर्टिस हेल्थकेयर लिमिटेड
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