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World Organ Donation Day: जानिए आप कैसे कर सकते हैं अंगदान

जिंदा रहते हुए आप लिवर या पैंक्रियाज का कुछ हिस्सा डोनेट कर सकते हैं.

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अंगदान को जीवनदान और जीवनदान को महादान कहा गया है. इससे अच्छी और क्या बात हो सकती है कि आपके जाने के बाद आपके शरीर का कोई अंग किसी की जिंदगी बचा सके.

देश में ऐसे हजारों मरीज हैं, जो किसी न किसी अंग के खराब होने के कारण जिंदगी और मौत के बीच जूझ रहे हैं और ऑर्गन ट्रांसप्लांट के इंतजार में हैं.

विश्व अंगदान दिवस के मौके पर हम आपको बता रहे हैं अंगदान से जुड़ी जरूरी बातें और संभावित ऑर्गन डोनर बनने के लिए आप क्या कर सकते हैं.

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क्या है अंगदान?

जब इंसान के शरीर का कोई अंग काम करना बंद कर दे और उस अंग को ट्रांसप्लांट करने का ऑप्शन हो, तो किसी के द्वारा अंग दान की जरूरत पड़ती है. किसी दूसरे को अपना अंग देना ऑर्गन डोनेशन कहलाता है. जैसे किसी की किडनी फेल हो गई हो, तो किडनी डोनेशन से किडनी ट्रांसप्लांट किया जा सकता है.

अंगदान में शरीर का कोई अंग या ऊतकों का दान दोनों शामिल होता है.

किन अंगों और ऊतकों का दान किया जा सकता है?

अंगों में लिवर, किडनी, पैंक्रियाज, दिल, फेफड़े और आंत डोनेट किए जा सकते हैं. ऊतकों में कॉर्निया, हड्डी, त्वचा, हार्ट वाल्व, रक्त वाहिकाएं, नस और टेंडन का दान किया जा सकता है.

अंग दान करने वाला डोनर कहलाता है. डोनर लिविंग या डेड हो सकता है.

दो तरह का अंगदान

जीवित डोनर का ऑर्गन डोनेशन- कोई इंसान जिंदा रहने के दौरान ही अपनी एक किडनी दान कर सकता है, पैंक्रियाज और लिवर का कुछ हिस्सा डोनेट कर सकता है. लिविंग डोनर के मामले में किडनी या लिवर का दान ज्यादातर करीबी रिश्तेदारों में ही मुमकिन हो पाता है. फेफड़े के एक छोटे हिस्‍से को भी दान देना संभव है और बहुत कम मामलों में छोटी आंत का हिस्सा भी दान किया जा सकता है.

डेड डोनर का ऑर्गन डोनेशन- एक व्यक्ति की मौत के बाद उसके अंगों और ऊतकों का दान किया जा सकता है.

डेड डोनर के मामले में आंख (कॉर्निया), स्किन या हार्ट वॉल्व को छोड़कर बाकी अंगों का दान तभी हो सकता है, जब शख्स ब्रेन डेड हुआ हो. इसका मतलब है कि शख्स के दिमाग ने काम करना बंद कर दिया हो और उसके काम करने की संभावना भी न हो, लेकिन दिल की धड़कन चल रही हो.

साथ ही ब्रेन डेथ अगर हॉस्पिटल में हुई हो, तभी अंगों का दान संभव है क्योंकि हॉस्पिटल में ही शरीर को वेंटिलेटर पर रखा जा सकता है.

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क्या आप भी अंगदान करना चाहते हैं?

अगर आप भी संभावित अंगदाता (Potential Organ Donor) बनना चाहते हैं, तो ये बिल्कुल मुमकिन है.

1. आप किसी भी ऑर्गन डोनेशन एजेंसी के जरिए डोनर फॉर्म भर सकते हैं.

अपने अंग डोनेट करने की इच्छा का रजिस्ट्रेशन आप www.notto.nic.in वेबसाइट पर अंगदान की शपथ लेकर करा सकते हैं. आप www.organindia.org पर ऑनलाइन फॉर्म भी भर सकते हैं. दो हफ्तों के अंदर आपका डोनर कार्ड ऑर्गन इंडिया की ओर से भेज दिया जाएगा.

हालांकि डोनर कार्ड सिर्फ इस बात को जाहिर करता है कि मौत के बाद आप अपना अंग दान करना चाहते हैं.

2. आपको डोनर कार्ड हमेशा अपने साथ रखना होगा और इसके साथ ही अपने परिवार और दोस्तों को ये बताना होगा कि आप ऑर्गन डोनेट करना चाहते हैं.

3. भारत में कानूनी रूप से आपके परिजन ही तय करते हैं कि आपके अंगों का दान करना है या नहीं, भले ही आपने अपना ऑर्गन डोनेट करने का कार्ड बनवा रखा हो.

4. इसलिए जब आप एक अंग दाता होने के लिए कहीं भी रजिस्ट्रेशन कराते हैं, तो ये बहुत जरूरी है कि आप अपने परिवार के साथ अपने अंग दान करने की इच्छा पर चर्चा करें.

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मेडिकल रिसर्च के लिए देह दान

मेडिकल रिसर्च और एजुकेशन के उद्देश्य से मृत्यु के बाद आपकी पूरी बॉडी डोनेट की जा सकती है, इसे देह दान कहते हैं. मेडिकल स्टूडेंट और रिसर्चर्स के लिए इंसानी शरीर की समझ विकसित करने और विज्ञान की प्रगति के लिए देह दान जरूरी होता है.

अगर आप भी चाहते हैं कि मृत्यु के बाद आपका शरीर मेडिकल रिसर्च और एजुकेशन के लिए दान हो सके, तो आप अपनी ये इच्छा पास के मेडिकल कॉलेज या बॉडी डोनेशन NGO में रजिस्टर करा सकते हैं.

आपकी मौत के बाद आपकी फैमिली या नजदीकी रिश्तेदार को ही बॉडी डोनेट करने की प्रक्रिया पूरी करनी होगी. इसलिए जरूरी है कि आपके फैसले में वो भी शामिल हों, उन्हें आपकी इच्छा के बारे में पता हो.

चिकित्सा अनुसंधान के लिए अपना शरीर दान करने वाले कुछ प्रसिद्ध भारतीयों में कानूनविद लीला सेठ, माकपा नेता सोमनाथ चटर्जी, पश्चिम बंगाल के पूर्व मुख्यमंत्री ज्योति बसु, और जनसंघ के नेता नानाजी देशमुख शामिल हैं.
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अंगदान और ट्रांसप्लांट

डेड डोनर का अंगदान

  • किसी शख्स की ब्रेन डेथ होने पर उसके परिवार या नजदीकी रिश्तेदार या दोस्त से अंगदान की मंजूरी ली जाती है.
  • अगर किसी ने ऑर्गन डोनेशन के बारे में फॉर्म भर रखा है, तो भी उसकी मौत के बाद परिवार या नजदीकी संबंधी की मंजूरी ली जाती है और अगर किसी ने ऑर्गन डोनेशन का फॉर्म नहीं भरा है, फिर भी उसके परिवार की मंजूरी से ऑर्गन डोनेशन हो सकता है.
  • कानूनी प्रक्रिया पूरी करने के बाद शरीर के अंगों को निकालने की प्रक्रिया शुरू की जाती है. ब्रेन डेड की स्थिति में अगर डोनर या उसके परिवार वाले चाहते हैं कि उसका कोई खास अंग ही डोनेट किया जाए, तो ऐसा ही होता है. ऑर्गन डोनेशन कार्ड पर इस बात का उल्लेख किया जा सकता है.
  • ऑर्गन ट्रांसप्लांट करने वाले हॉस्पिटल्स में किसी अंग के ट्रांसप्लांटेशन की जरूरत वाले मरीजों की एक लिस्ट होती है, जिसका नंबर पहले होता है, उसमें वह अंग प्रत्यारोपित किया जाता है.
  • अंग ट्रांसप्लांट करने से पहले मैचिंग के लिए कुछ टेस्ट किए जाते हैं, अगर मैचिंग नहीं होती है, तो लिस्ट में अगले पेशेंट के साथ मैच किया जाता है.
  • डोनेटेड अंगों को सबसे पहले राज्य में वितरित किया जाता और अगर कोई मिलान नहीं पाया जाता है, तो इन्हें पहले क्षेत्रीय और फिर राष्ट्रीय स्तर पर प्रस्तावित किया जाता है, जब तक कोई रिसीवर नहीं मिल जाता.

जीवित डोनर का अंगदान

  • जीवित अंगदाता के जरूरी मेडिकल चेकअप कराए जाते हैं. जिस पेशेंट में ऑर्गन ट्रांसप्लांट करना होता है, उसके साथ मेडिकल अनुकूलता पहले ही चेक कर ली जाती है.
  • डॉक्टर की पुष्टि और सभी टेस्ट पॉजिटिव आने के बाद जीवित डोनर से ट्रांसप्लांट का फैसला लिया जाता है.
  • सर्जरी के बाद डोनर को कुछ दिनों के लिए मेडिकल देखरेख में रखा जाता है.
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ऑर्गन डोनेशन को लेकर भारत में जागरुकता लाए जाने की जरूरत है क्योंकि जानकारी की कमी, कई सामाजिक मिथ और भ्रांतियों के कारण अंगदान के मामले में भारत काफी पिछड़ा हुआ है.

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