भारत के ग्रामीण क्षेत्र में पीरियड्स के समय महिलाओं को होने वाली समस्या और पैड की अनुपलब्धता को लेकर बनी एक शॉर्ट फिल्म ‘ पीरियड : द एंड ऑफ सेंटेंस’ को ‘डॉक्यूमेंट्री शॉर्ट सब्जेक्ट’ कैटेगरी में ऑस्कर अवॉर्ड मिला है.
इस फिल्म की डायरेक्टर रायका जेहताबची हैं और इसे गुनीत मोंगा के सिख्या एंटरटेंनमेंट ने प्रोड्यूस किया है.
जेहताबची ने ऑस्कर अवॉर्ड स्वीकार करते हुए कहा, ‘मैं इसलिए नहीं रो रही हूं कि मेरा माहवारी चल रहा या कुछ भी. मुझे विश्वास नहीं हो रहा है कि माहवारी को लेकर बनी कोई फिल्म ऑस्कर जीत सकती है.'
ये फिल्म पीरियड्स को लेकर भारत में गहराई तक पैठे झिझक के खिलाफ महिलाओं की लड़ाई के बारे में है.
26 मिनट की इस फिल्म में उत्तर भारत के हापुड़ की महिलाओं और उनके गांव में लगाई गई एक पैड मशीन के साथ उनके अनुभवों को फिल्माया गया है.
दुनिया भर में लाखों महिलाएं आज भी पीरियड्स के दौरान बालू, राख, जूट, गंदे कपड़े और यहां तक की गाय के गोबर का इस्तेमाल करती हैं.
भारत में हालात और भी खराब हैं. साल 2011 में किए गए एक सर्वे के मुताबिक केवल 12 फीसदी भारतीय महिलाएं ही सैनिटरी पैड्स का इस्तेमाल करती हैं.
इसके अलावा पीरियड्स को लेकर खुलकर बातचीत पर भी एक तरह की सामाजिक पाबंदी सी रहती है. ऐसे में 'पैडमैन' या ‘पीरियड : एंड ऑफ सेंटेंस’ जैसी फिल्में और अहम हो जाती हैं.
इस फिल्म का क्रिएशन 'द पैड प्रोजेक्ट' नाम की एक संस्था ने किया है. इस संस्था की शुरुआत लॉस ऐंजिलिस के ओकवुड स्कूल के स्टूडेंट ग्रुप और उनकी टीचर मेलिसा बर्टन ने की है.
(इनपुट: पीटीआई और आईएएनएस)
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