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डॉ. बाबू के वी बनाम पतंजलि: झूठे मेडिकल विज्ञापन के खिलाफ एक डॉक्टर की लंबी लड़ाई

वे कहते हैं, ''मुझे इसकी उम्मीद थी... सुप्रीम कोर्ट के पास इस उल्लंघन पर ध्यान देने के अलावा कोई रास्ता नहीं था.''

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मंगलवार, 27 फरवरी को सुप्रीम कोर्ट ने मेडिसिनल इलाज के संबंध में भ्रामक विज्ञापन प्रकाशित करने के लिए (जबकि कंपनी ने नवंबर 2023 में ही अदालत को एक वचन दिया था कि वे ऐसे विज्ञापन बंद कर देंगे) पतंजलि आयुर्वेद के खिलाफ कंटेम्प्ट ​​नोटिस जारी किया.

सुप्रीम कोर्ट ने अंतरिम फैसला सुनाते हुए पतंजलि आयुर्वेद के सभी झूठे और भ्रामक विज्ञापनों को तुरंत बंद करने को कहा, साथ ही समय पर कार्रवाई नहीं करने के लिए केंद्र से सवाल भी किया.

कंपनी को अतीत में दिए गए नोटिस जिसमें नवंबर 2022 में उत्तराखंड के आयुर्वेद और यूनानी लाइसेंसिंग प्राधिकरण द्वारा दिया गया नोटिस भी शामिल है, केरल के एक डॉक्टर के निरंतर प्रयासों का नतीजा है.

केरल के कन्नूर के एक नेत्र रोग विशेषज्ञ और RTI कार्यकर्ता डॉ. बाबू के वी ने 24 फरवरी 2022 को ड्रग्स एंड मैजिक रेमेडीज (ऑब्जेक्शनेबल ऐड्वर्टिज्मेन्ट) एक्ट, 1954 का उल्लंघन करने के लिए पतंजलि आयुर्वेद लिमिटेड के तहत दिव्य फार्मेसी के खिलाफ अपनी पहली शिकायत दर्ज की थी.

तब से, उन्होंने यह सुनिश्चित करने के लिए कि कंपनी को उसके कानूनी उल्लंघनों के लिए जवाबदेह ठहराया जाए, पांच से अधिक शिकायतें और 150 से अधिक सूचना का अधिकार (RTI) अनुरोध दर्ज किए हैं.

वे कहते हैं, "सच कहूं तो मुझे इस फैसले की उम्मीद थी. सुप्रीम कोर्ट के पास इस उल्लंघन पर ध्यान देने के अलावा कोई रास्ता नहीं था."

इस मामले की अगली सुनवाई, जो 19 मार्च को होगी, से पहले फिट ने डॉ. बाबू केवी से पिछले दो वर्षों में उनके प्रयासों, जिनके कारण आखिरकार एपेक्स कोर्ट का आदेश आया, के बारे में बात की.

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'एक डॉक्टर के रूप में, मैंने इसे अपनी जिम्मेदारी समझी': मामले की शुरुआत कैसे हुई?

याद करते हुए, डॉ. बाबू कहते हैं कि पहली बार उन्होंने 2019 में इस लोकप्रिय ब्रांड का एक संदेहजनक विज्ञापन देखा था. "यह एक आई ड्रॉप का विज्ञापन था जिसमें मोतियाबिंद, ग्लूकोमा और रतौंधी जैसी कई आंखों की बीमारियों को ठीक करने का दावा किया गया था जबकि एक ही दवा से इन सब का इलाज करना संभव नहीं है."

एक आई एक्सपर्ट होने के रूप में, डॉ. बाबू तुरंत बता सकते थे कि यह विज्ञापन निराधार था. हालांकि, वे कहते हैं, यह आने वाले वर्षों में ब्रांड के विज्ञापनों का 'आधुनिक चिकित्सा विरोधी' कैम्पेन था, जिसने उन्हें कार्रवाई करने के लिए प्रेरित किया.

"ये विज्ञापन साइंटिफिक मेडिसिन पर आरोप लगा रहे थे कि यदि आप 'एलोपैथी' दवाएं लेते हैं तो ऐसे-ऐसे हानिकारक प्रभाव और दुष्प्रभाव होते हैं. मैं इस तरह का उत्तेजक विज्ञापन पहली बार देख रहा था जो साइंटिफिक मेडिसिन पर स्पष्ट रूप से हमला कर रहा था," वे बताते हैं.

"जब इस तरह के विज्ञापन बनते हैं, तो ये कहना चाहते हैं कि 'एलोपैथी' दवा लेना बंद कर दें और इन उत्पादों पर स्विच करें क्योंकि पहला हानिकारक है और दूसरा सुरक्षित और प्रभावी है."
डॉ. बाबू के वी
वे कहते हैं, ''मुझे इसकी उम्मीद थी... सुप्रीम कोर्ट के पास इस उल्लंघन पर ध्यान देने के अलावा कोई रास्ता नहीं था.''

पतंजलि वेलनेस उत्पादों के लिए अखबार का एक विज्ञापन.

(फोटो स्रोत: एक्स/@इंदुलेखा_ए)

उन्होंने आगे कहा, "एक डॉक्टर के रूप में, मुझे लगा कि इसके खिलाफ कदम उठाना मेरी जिम्मेदारी है."

उल्लंघन के बाद उल्लंघन और RTI के बाद RTI

डॉ. बाबू ने अपनी पहली शिकायत 24 फरवरी 2022 को पतंजलि के एक उत्पाद लिपिडोम, जो कोलेस्ट्रॉल को नियंत्रित करने में मदद करने का दावा करता है, के खिलाफ ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया (DCGA) से की. "मुझे उस समय पता नहीं था कि कहां शिकायत करनी है, बस मुझे इसे अधिकारियों के ध्यान में लाना था."

उनका कहना है कि शिकायत आयुष मंत्रालय को भेज दी गई जिसने इसे उत्तराखंड राज्य लाइसेंसिंग अधिकारियों को भेज दिया.

"आयुष मंत्रालय ने मेरे द्वारा दायर RTI का तुरंत जवाब दिया."

अपनी शिकायत में डॉ. बाबू ने इस बात पर जोर दिया कि कैसे पतंजलि आयुर्वेद लिमिटेड के तहत दिव्य फार्मेसी ने कुछ उत्पादों के विज्ञापन, ड्रग्स एंड मैजिक रेमेडीज (ऑब्जेक्शनेबल ऐड्वर्टिज्मेन्ट) एक्ट, 1954 का उल्लंघन कर रहे हैं.

"आयुष मंत्रालय ने अपने RTI जवाब में सहमति व्यक्त की कि ‘प्राइमा फेसी’ सबूत से पता चलता है कि यह ड्रग्स एंड मैजिक रेमेडीज एक्ट का उल्लंघन करता है लेकिन उन्होंने स्वयं इस पर अमल नहीं किया. 14 अप्रैल 2022 को, उन्होंने जवाब देते हुए कहा कि उन्होंने उत्तराखंड लाइसेंसिंग अथॉरिटी को निर्देश दिया है इस पर उचित कार्रवाई करें.”
डॉ. बाबू केवी
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7 मई 2022 को, पतंजलि आयुर्वेद ने उत्तराखंड लाइसेंसिंग अथॉरिटी को कमिट्मेंट दी कि वे विज्ञापन वापस ले लेंगे.

"उस समय, मैंने सोचा था कि यह एक बहुत ही सरल प्रक्रिया थी और अब यह खत्म हो गई है लेकिन कंपनी ने 10 जुलाई को पहले ही जैसे दावों के साथ फिर से विभिन्न उत्पादों के विज्ञापन दिए और जनवरी 2023 तक ऐसा करना जारी रखा. फिर वे कुछ समय के लिए रुक गए लेकिन जून 2023 से नवंबर 2023, जब सुप्रीम कोर्ट का आदेश आया, तक उन्होंने विज्ञापन फिर से शुरू कर दिए.”

मंगलवार की सुनवाई के दौरान, इंडियन मेडिकल एसोसिएशन की ओर से पेश वरिष्ठ वकील पी एस पटवालिया ने कहा कि नवंबर 2023 में अदालत के आदेश के ठीक एक दिन बाद, बाबा रामदेव और आचार्य बालकृष्ण (पतंजलि आयुर्वेद के अध्यक्ष) ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की, जहां उन्होंने फिर से भ्रामक दावे किए और विज्ञापन प्रकाशित करना जारी रखा जिनमें उन्होंने दावा किया कि पतंजलि आयुर्वेद उत्पाद डायबिटीज, ब्लड प्रेशर, अस्थमा, गठिया और ग्लूकोमा जैसी बीमारियों का स्थायी इलाज प्रदान कर सकते हैं.

डॉ. बाबू कहते हैं, "जब भी उन्हें डांटा जाता है तो वे विज्ञापन कुछ दिनों के लिए रोक देते हैं और फिर से शुरू कर देते हैं. यह उनकी नीति रही है. मैंने दिसंबर में फिर से उत्तराखंड सरकार को लिखकर जवाब मांगने की कोशिश की और RTI भी जारी की लेकिन उनका कोई जवाब नहीं आया."

'डॉक्टर बच्चों से इंसुलिन बंद न करने की विनती कर रहे थे': क्यों उन्होंने अपनी कोशिश जारी रखी?

क्या उन्हें कभी ऐसा लगा कि यह सब व्यर्थ है और उन्हें इसे छोड़ देना चाहिए?

"जुलाई 2022 में, सभी प्रमुख समाचार पत्रों में एक विज्ञापन निकाला गया जिसमें दावा किया गया था कि पतंजलि के उत्पाद इंसुलिन-डिपेंडेंट डायबिटीज मेलिटस (IDDM) को ठीक कर सकते हैं."

क्या होता है जब किसी व्यक्ति को अपने जीवन में प्रतिदिन एक इंजेक्शन लेने और एक चूर्ण, जो उनकी स्थिति को पूरी तरह से ठीक कर सकता है, खाने के बीच का विकल्प दिया जाता है? ''इस तरह से जनता को प्रभावित करना और गुमराह करना विनाशकारी हो सकता है.''

उनका कहना है कि अगले कुछ दिनों में उन्होंने इस विज्ञापन का नतीजा देश भर के प्रतिष्ठित एंडोक्रिनोलॉजिस्ट और डायबिटीज विशेषज्ञों के ट्वीटों के रूप में देखा, जिसमें उन्होंने लोगों से, खासकर बच्चों से, इंसुलिन बंद न करने की अपील की.

"वह मेरे लिए निर्णायक मोड़ था. मैं समझ गया था कि यह एक बड़ा पब्लिक हेल्थ मुद्दा था और इसमें सरकार के इन्टर्वेंशन की आवश्यकता थी."
डॉ. बाबू के वी
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'मुझे भारतीय कानूनी व्यवस्था पर भरोसा है'

"एक डॉक्टर के रूप में, मेरा मानना ​​​​है कि उपयोग किए जाने वाले सभी हेल्थकेयर उत्पादों को उपयोग से पहले सावधानीपूर्वक साइंटिफिक स्टडी से गुजरना चाहिए. चाहे वह आयुर्वेद हो, आधुनिक चिकित्सा हो, या वेलनेस प्रोडक्ट हों, जो 'स्वास्थ्य को बढ़ावा देने' का दावा करते हैं."

"दुर्भाग्य से, हमारे देश का कानून ऐसी मांग नहीं करता है. हालांकि, इस मामले में, कानून का स्पष्ट उल्लंघन है और वे फिर भी किसी तरह बच निकलने में कामयाब हैं."
डॉ. बाबू के वी

इस साल की शुरुआत में, जब कंपनी ने 2023 में सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के बावजूद भ्रामक दावों के साथ अपने उत्पादों का विज्ञापन फिर से शुरू किया, तो डॉ. बाबू ने 15 जनवरी 2024 को प्रधान मंत्री कार्यालय (PMO) को लिखा.

वे कहते हैं, ''मुझे इसकी उम्मीद थी... सुप्रीम कोर्ट के पास इस उल्लंघन पर ध्यान देने के अलावा कोई रास्ता नहीं था.''

डॉ. बाबू केवी का पीएमओ को पत्र.

(फोटो: डॉ. बाबू केवी/फिट द्वारा सोर्स्ड)

वे कहते हैं, "यह पत्र केंद्रीय आयुष मंत्रालय को भेज दिया गया था, जिसने 2 फरवरी को उत्तराखंड आयुष मंत्रालय को लिखा था, लेकिन उन्होंने अब तक कोई कार्रवाई नहीं की है. उन्होंने ऐसा PMO कम्युनिकेशन के बावजूद किया."

वे कहते हैं, ''मुझे इसकी उम्मीद थी... सुप्रीम कोर्ट के पास इस उल्लंघन पर ध्यान देने के अलावा कोई रास्ता नहीं था.''

केंद्रीय आयुर्वेदिक और यूनानी सेवा मंत्रालय, उत्तराखंड का पत्र

(फोटो: डॉ. बाबू केवी/फिट द्वारा सोर्स्ड)

"एक कमिट्मेंट देने, कुछ महीनों तक उसका पालन करने और फिर बार-बार उसका उल्लंघन करने की इस प्रथा को जारी रखने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए. न्यायपालिका और रेग्युलेटरों को बहुत दृढ़ता से कार्य करना होगा."

"सुप्रीम कोर्ट की लेटेस्ट टिप्पणियां सही दिशा में एक कदम है और यह निश्चित रूप से उत्साहजनक है. मुझे भारतीय कानूनी लीगल सिस्टम पर भरोसा है. यह फैसला बताता है कि वे इसे गंभीरता से ले रहे हैं." डॉक्टर ने फोन काट कर अपने क्लिनिक में मरीजों को देखना शुरू करने से पहले कहा.

(फिट ने ईमेल पर प्रतिक्रिया के लिए पतंजलि आयुर्वेद से संपर्क किया है. अगर वे जवाब देते हैं, तो आर्टिकल को अपडेट किया जाएगा.)

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