पतंजलि आयुर्वेद ने COVID-19 के लिए आयुर्वेदिक दवा कोरोनिल और श्वासारि लॉन्च की. योग गुरु बाबा रामदेव ने दावा किया कि ये कोरोना की एविडेंस बेस्ड पहली आयुर्वेदिक औषधि है. लेकिन क्या इसे कोरोना की दवा कहने के लिए पर्याप्त प्रमाण हैं? मेडिकल एक्सपर्ट इसपर सवाल उठाते हैं. हमने MGIMS के डायरेक्टर प्रोफेसर-मेडिसिन डॉ. एसपी कलंत्री और मंगलुरु के येनेपोया यूनिवर्सिटी में बायोएथिक्स के एडजंक्ट प्रोफेसर और रिसर्चर अनंत भान से बात की.
डॉ. एसपी कलंत्री ट्रायल को लेकर कुछ अहम बातों पर ध्यान देने को कहते हैं.
“दवा के बुनियादी स्टडी डिजाइन से संबंधित कई मुद्दे हैं. स्टडी में कई पूर्वाग्रह हैं. क्लिनिकल ट्रायल के लिए जो सैंपल साइज लिया गया, वो पर्याप्त नहीं है. उसके लिए कुछ नियमों का पालन करना चाहिए. क्लिनिकल ट्रायल रजिस्ट्री ऑफ इंडिया (CTRI) के पास स्टडी प्रोटोकॉल जमा करना चाहिए.”डॉ. एसपी कलंत्री, डायरेक्टर प्रोफेसर-मेडिसिन, MGIMS, मेडिकल सुप्रिटेंडेंट, कस्तूरबा हॉस्पिटल
“20 मई को ट्रायल के लिए रजिस्ट्रेशन कराया गया. 29 मई को पहला मरीज भर्ती किया गया. मरीज के 14 दिन के फॉलो-अप के साथ कुछ जानकारी देनी होती है. इन सब के बावजूद 120 मरीजों के सैंपल साइज के साथ 23 जून को असर का दावा चौंकाता है. इसका मतलब है कि एक महीने से कम समय में उन्होंने स्टडी खत्म कर, डेटा एनलाइज किया और पेश कर दिया.”अनंत भान, बायोएथिक्स एडजंक्ट प्रोफेसर और रिसर्चर, येनेपोया यूनिवर्सिटी, मंगलुरु
बता दें, रामदेव का दावा है कि इस दवा से कोरोना का संक्रमण खत्म हो सकता है और महामारी से बचाव भी संभव है. हालांकि अब तक किसी दवा को कोरोना के इलाज या बचाव के तौर पर मंजूरी नहीं मिली है. दुनिया भर में फिलहाल ट्रायल चल रहे हैं.
आयुष मंत्रालय ने पतंजलि आयुर्वेद लिमिडेट से इस दवा को लेकर की गई सारी रिसर्च और बाकी के सबूत मांगे हैं. मंत्रालय ने पतंजलि को कहा है कि जब तक इस दावे की पुष्टि नहीं हो जाती है तब तक इस दवा को लेकर हर तरह के प्रचार पर रोक लगाई जाए.
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